श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) अंजली गाडगीळजी तो देवीतत्त्व की अनुभूति देनेवालीं तथा ईश्वर की चैतन्यशक्ति के रूप में पृथ्वी पर अवतरित कमलपुष्प ही हैं !
सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. जयंत आठवलेजी की एक आध्यात्मिक उत्तराधिकारिणी श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) अंजली मुकुल गाडगीळजी का जन्मदिवस तो धर्मसंस्थापना हेतु अवतरित ईश्वर की चैतन्यशक्ति का प्रकट दिवस ही है !
१. देवी के समान तेजस्वी एवं आनंदित
देवीसमान अत्यंत तेजस्वी कांति से युक्त श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) अंजली गाडगीळजी के मुखमंडल पर स्थित स्मितहास्य साधकों को आश्वस्त करता है । उनका निर्मल हास्य तो मानो साधकों पर आनंद की वर्षा करता हुआ झरना ही है ! संत तुकाराम महाराजजी के ‘आनंदाचे डोही आनंद तरंग’, इस अभंग की (भक्तिरचना) की स्वयं अनुभूति करनेवाली तथा स्वयं के अस्तित्व से अन्यों को भी वह अनुभूति देनेवालीं श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) गाडगीळजी तो आनंद की मूर्ति ही हैं !
२. गुरुदेवजी के मन के प्रत्येक विचार को क्रियान्वित करनेवालीं तथा चैतन्य के बल पर प्रचंड कार्य करते हुए भी अहंशून्य रहनेवालीं श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) गाडगीळजी !
श्रीमन्नारायणस्वरूप सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी का स्वस्वरूप प्राप्त श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) गाडगीळजी गुरुदेवजी के मन के प्रत्येक विचार को क्रियान्वित करती हैं । स्वयं में विद्यमान दैवी चैतन्य के कारण अखंड कार्यरत रहकर गुरुसेवा करनेवालीं चैतन्यस्वरूप श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) गाडगीळजी के अस्तित्व से अथवा मात्र उनके स्मरण से ही साधकों को आध्यात्मिक चेतना मिलती है ! श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) गाडगीळजी प्रचंड कार्य करती हैं; परंतु तब भी ‘यह मेरे कारण हुआ; परंतु मैंने नहीं किया’, संत ज्ञानेश्वरजी के इस श्लोक की भांति उनमें लेशमात्र भी अहंकार नहीं है ।
३. ईश्वर भी श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) गाडगीळजी को देखने के लिए आतुर रहते हैं !
श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) गाडगीळजी सप्तर्षि की आज्ञा के अनुसार देश-विदेश के विभिन्न मंदिरों में जाकर देवतादर्शन करती हैं तथा हिन्दू राष्ट्र की स्थापना हेतु संबंधित देवता से प्रार्थना करती हैं । श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) गाडगीळजी की प्रशंसा करते हुए सप्तर्षि कहते हैं, ‘सामान्यतः कार्तिकपुत्री को (टिप्पणी) देवता के दर्शन करने होते हैं; परंतु अब ईश्वर को ही कार्तिकपुत्री को देखना है ।’ अर्थात साक्षात ईश्वर श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) गाडगीळजी को देखने के लिए आतुर रहते हैं !
टिप्पणी : सप्तर्षि श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) गाडगीळजी को ‘कार्तिकपुत्री’ नाम से संबोधित करते हैं ।
४. जागृत देवीतत्त्व तथा वाणी में विद्यमान चैतन्य के कारण अनेक जिज्ञासुओं को साधना करने हेतु प्रेरित करनेवाली चैतन्य की मूर्ति !
अपरिचित व्यक्ति भी श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) गाडगीळजी को देखकर हाथ जोडकर नमस्कार करते हें । इसे देखा जाए, तो उनमें विद्यमान जागृत देवीतत्त्व का कोई और प्रमाण देने की आवश्यकता है ? विभिन्न स्थानों पर जाने पर वे वहां के लोगों को साधना का महत्त्व बताती हैं । उनकी वाणी में विद्यमान चैतन्य के कारण समाज के अनेक लोग साधना करने लगे हैं तथा अध्यात्मप्रसार के कार्य में सम्मिलित हुए हैं ।
५. प्रत्येक व्यक्ति में ईश्वर का रूप देखकर उसे प्रीति की वर्षा में नहलानेवालीं वात्सल्य की मूर्ति !
संत ज्ञानेश्वर महाराज कहते हैं, ‘जो-जो प्राणी (भूत) दिखाई दे, वह प्रत्यक्ष परमात्मा है’, ऐसा माना जाए । इसकी भांति श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) गाडगीळजी में ‘चराचर में परमेश्वर विराजमान हैं’, यह भाव होने से वे केवल साधकों में ही नहीं, अपितु समाज के लोगों में भी ईश्वर का रूप देखती हैं तथा उन्हें स्वयं की प्रीति की अमृतमय वर्षा में नहलाती हैं ।
६. पृथ्वी पर छायारूप में वास करनेवालीं आदिशक्ति जगदंबा !
श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) अंजली गाडगीळजी की प्रत्येक कृति एवं विचार से उनमें विद्यमान देवीतत्त्व झलकता है । वे महालक्ष्मीस्वरूप हैं, साथ ही उनमें ज्ञानप्रदायिनी सरस्वती तत्त्व भी कार्यरत है । उनके रूप में इस भूतल पर मानो आनंददायिनी एवं ज्ञानस्वरूपिणी देवी का रूप प्रत्यक्ष अवतरित हुआ है । सप्तर्षि ने भी ‘श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) गाडगीळजी के माध्यम से पृथ्वी पर साक्षात आदिशक्ति जगदंबा छायारूप में वास कर रही हैं’, इन प्रशंसा-पुष्पों के माध्यम से उनका यथार्थ वर्णन किया है ।
धन्य हैं भक्तशिरोमणि श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) गाडगीळजी तथा धन्य हैं उन्हें बनानेवाले सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी !
श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) गाडगीळजी के ५३ वें जन्मदिवस के उपलक्ष्य में उनमें विद्यमान चैतन्यस्वरूप देवीतत्त्व को हम सभी का कोटि-कोटि कृतज्ञतापूर्वक प्रणाम !
– श्रीसत्शक्ति (श्रीमती) बिंदा नीलेश सिंगबाळ (६.१२.२०२३)