तीव्र आध्यात्मिक कष्ट होते हुए भी महर्षियों की आज्ञा के अनुसार कर्नाटक के हंपी में भगवान के दर्शन की सेवा पूर्ण करनेवालीं श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) अंजली गाडगीळजी !
श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) अंजली मुकुल गाडगीळजी विगत १२ वर्षों से अधिक काल से पूरे भारत तथा विदेशों का भ्रमण कर रही हैं । इस भ्रमण के अंतर्गत विभिन्न मंदिरों में जाकर देवताओं के दर्शन करना, तीर्थस्थल जाना, कुछ स्थानों पर यज्ञ-याग करना आदि सेवाएं होती हैं । इन सेवाओं को महर्षियों की आज्ञा के अनुसार करना होता है; इसलिए उन्हें सदैव वर्तमान में रहना पडता है । अनेक देवस्थानों पर जाने का मार्ग कठिन होता है । ऐसी स्थिति में जो भी सुविधा मिलेगी, उसी को स्वीकार कर यात्रा करनी होती है । देह की मर्यादाएं होते हुए भी श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) गाडगीळजी अत्यंत दुर्गम स्थानों पर जाकर वहां भक्तिभाव से पूजादि अनुष्ठान करती हैं । साधकों की रक्षा हेतु सप्तर्षि जहां कहेंगे, वहां जाने के लिए वे सदैव तैयार रहती हैं । एक महिला होते हुए भी श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) अंजली गाडगीळजी सर्दी, हवा, गर्मी, वर्षा आदि की चिंता किए बिना केवल समष्टि के कल्याण हेतु देश-विदेश में अखंड यात्रा करती रहती हैं । इस स्थान पर महर्षियों की आज्ञा के अनुसार कर्नाटक राज्य में हंपी जाते समय श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) अंजली गाडगीळजी को यात्रा में हुए शारीरिक एवं आध्यात्मिक कष्ट तथा उसी स्थिति में देवतादर्शन करते समय उन्हें प्राप्त अनुभूतियां देखेंगे –
१. हंपी जाते समय यात्रा में हुए आध्यात्मिक कष्ट
‘५.१.२०२१ को महर्षियों के बताए अनुसार हम सिरसी से हंपी जाने के लिए निकले । उस समय यात्रा में मुझे अस्वस्थ लगने लगा । मुझे अत्यधिक बेचैनी होने लगी, मस्तक पर दबाव प्रतीत होने तथा जी मिचलाने जैसा होने लगा । उस समय हमें लगा, ‘यह पुनः नए सिरे से अनिष्ट शक्तियों के आक्रमण करने का कोई नियोजन चल रहा है ।’ ६ घंटे उपरांत हम होसपेट पहुंचे ।
२. देवतादर्शन करने में आई बाधाएं
अ. ‘होटल’ पहुंचते ही मुझे पानी जैसे दस्त होने लगे । दूसरे दिन भी मुझे दस्त हो रहे थे । उसके कारण महर्षियों के बताए अनुसार देवतादर्शन करना मुझे संभव नहीं हुआ ।
आ. मुझे हो रहे दस्त तीसरे दिन रुके । मैं प्रार्थना कर देवतादर्शन हेतु बाहर निकलनेवाली ही थी कि मुझे मासिकधर्म आरंभ हो गया । उसके कारण देवतादर्शन लंबा खिंच गया । उस समय ‘यह भगवान की इच्छा’, ऐसा मानकर मासिकधर्म रुकने के उपरांत मैं देवतादर्शन करने गई ।
३. किए गए उपचार
इस समय बगलामुखी कवच सुनना, कालभैरव स्तोत्र सुनना, नामजप करना जैसे उपचार चल ही रहे थे । मुझे हो रहे कष्टों के संदर्भ में मैंने श्रीसत्शक्ति (श्रीमती) बिंदा सिंगबाळजी को सूचित किया था ।
४. महर्षियों द्वारा ‘अन्य किसी की अपेक्षा माताजी के द्वारा (श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) अंजली मुकुल गाडगीळजी के द्वारा ही) दर्शन करने से आध्यात्मिक स्तर पर लाभ होनेवाला है’, ऐसा बताना
श्री. विनायक शानभाग (आध्यात्मिक स्तर ६७ प्रतिशत, आयु ४० वर्ष) ने इस संदर्भ में पू. डॉ. ॐ उलगनाथन्जी से पूछा, ‘श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) अंजली मुकुल गाडगीळजी का स्वास्थ्य ठीक नहीं है । वे वहीं रुकेंगी और उनके स्थान पर हमने दर्शन किए, तो चलेगा ?’
उस समय पू. डॉ. ॐ उलगनाथन्जी ने बताया, ‘‘विनायकजी, जैसे मैं सप्तर्षि नहीं बन सकता, मात्र उनका माध्यम बन सकता हूं, यह वैसा ही है । माताजी को ही (श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) अंजली गाडगीळजी को ही) दर्शन करना आवश्यक है, तभी हमें आध्यात्मिक स्तर पर लाभ मिलेगा ।’’
५. हंपी में स्थित पवित्र स्थान
इस स्थान पर अंजनेयाद्री पर्वत पर हनुमानजी की जन्मस्थली है, साथ ही यह श्रीरामकालीन सुग्रीव की राजधानी किष्किंधा नगरी है । श्रीराम ने इसी स्थान पर बाली का वध किया था । शबरी के गुरु मातंग ऋषि का आश्रम भी इसी स्थान पर था । यहां पवित्र तुंगभद्रा नदी का जल भी है । महर्षियों ने मुझे इस पूरे पवित्र स्थान का दर्शन करने के लिए कहा ।
६. महर्षियों से की प्रार्थना
मुझे लगा, ‘दर्शन करने जाते समय मार्ग में पुनः यदि मेरा पेट बिगड गया, तो मैं क्या करूंगी ?’ पर्वतीय परिसर होने के कारण मार्ग में किसी प्रकार की सुविधा उपलब्ध नहीं थी । उस समय मुझे लगा, ‘अब महर्षिजी ही मुझे शक्ति देंगे’ तथा मैंने महर्षियों से प्रार्थना की, ‘अब आप ही मुझे दर्शन हेतु जाने की शक्ति प्रदान करें ।’
धर्मकार्य में इस प्रकार से अनिष्ट शक्तियां शारीरिक कष्ट पहुंचाती ही हैं; परंतु भगवान को यह सब ज्ञात होने से मध्यावधि में हमारी टंकण की सेवा चलती रही । अन्य समय भी भ्रमण पर जाते समय अनेक बार यात्रा में मुझे शारीरिक कष्ट होता है, परंतु भगवान ने मेरी सेवा कभी भी खंडित नहीं होने दी, क्या यह उनकी कृपा नहीं है ?’
– श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) अंजली मुकुल गाडगीळजी, होसपेट, कर्नाटक. (२८.१.२०२१)
इस अंक में प्रकाशित अनुभूतियां, ‘जहां भाव, वहां भगवान’ इस उक्ति अनुसार संतों की व्यक्तिगत अनुभूतियां हैं । वैसी अनूभूतियां सभी को हों, यह आवश्यक नहीं है । – संपादक |