मक्का में मक्केश्वर महादेव है !

शंकराचार्य जगद्गुरु स्वामी निश्चलानंद सरस्वती का बयान

शंकराचार्य जगद्गुरु स्वामी निश्चलानंद सरस्वती

पुरी (ओडिशा) – मक्का में मक्केश्वर महादेव हैं। ‘गीता प्रेस’ के शिवपुराण अंक में इस विषय पर विस्तार से लिखा गया है; लेकिन मक्का और मदीना अब मुसलमानों के तीर्थस्थल बन चुके हैं। वहां हिंदुओं के जाने पर प्रतिबंध है। इसी के चलते अब मुसलमानों के महाकुंभ में प्रवेश पर प्रतिबंध लगाने की मांग हो रही है।

सवाल यह उठता है कि महाकुंभ में अधिकतर दुकानें मुसलमानों ने स्थापित की हैं, जिससे वे करोड़ों रुपये कमाते हैं। ऐसी स्थिति में अगर हिंदुओं की दुकानें लगें, तो वह उचित है; लेकिन यदि रहीम, रसखान और वैज्ञानिक ए.पी.जे. अब्दुल कलाम जैसे उच्च श्रेणी के मुसलमानों का भी इसमें अपमान हुआ, तो यह भविष्य के लिए हानिकारक हो सकता है और दंगे भड़क सकते हैं। ऐसा बयान पुरी स्थित पूर्वाम्नाय पीठ के जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी निश्चलानंद सरस्वती ने दिया।

शंकराचार्य द्वारा प्रस्तुत सूत्र

१. यदि सनातन बोर्ड उपयोगी हो, तो स्थापित करें !

वक्फ बोर्ड के समानांतर सनातन बोर्ड की स्थापना की अखाड़ा परिषद की मांग का शंकराचार्य ने समर्थन किया। उन्होंने कहा कि जो लोग यह मांग कर रहे हैं, उन्हें पहले इसकी उपयोगिता सिद्ध करनी चाहिए। यह देश, समाज और विश्व के हित में है या नहीं, इसे देखना चाहिए। प्रधानमंत्री मोदी और मुख्यमंत्री योगी जैसे अच्छे नेता हैं। यदि उन्हें इसकी उपयोगिता समझ में आती है, तो उन्हें इसे कार्यान्वित करने दें।

२.  कल्पवासियों को त्रिवेणी संगम से दूर स्थान देना अनुचित !

शंकराचार्य ने प्रयागराज त्रिवेणी संगम क्षेत्र से दूर महाकुंभ परिसर में कल्पवासियों के लिए स्थान नियोजित करने पर प्रशासन को आड़े हाथों लिया। उन्होंने कहा कि जिनके नाम पर कुंभ पर्व आयोजित किया जाता है, उन कल्पवासियों को सम्मानित व्यक्तियों के लिए दूर स्थान देना उचित नहीं है। माघ मास में यहां रहने वाले कल्पवासी तपस्वी होते हैं और मांस तथा शराब से दूर रहते हैं। वे सर्दियों में भी ब्रह्ममुहूर्त में स्नान करते हैं। जिनका नाम इस मेले के लिए प्रसिद्ध है, उन्हें दूर रखना अनुचित है।

३.  किसी भी मांग को उचित ठहराने का तरीका

हमने अनुच्छेद 370 को समाप्त करने की मांग की थी, जिससे अमित शाह को आश्चर्य हुआ था। लेकिन बाद में उनकी सरकार ने इसे समाप्त कर दिया। ऐसी स्थिति में, कोई भी मांग रखने से पहले उसकी उपयोगिता को समय, परिस्थिति, दर्शन और विज्ञान के साथ संतुलन बनाकर सिद्ध करना चाहिए। इसके बाद, सरकार जो उचित समझेगी, उसे स्वीकार करेगी।