गुरुकृपा से सद्गुरु डॉ. मुकुल गाडगीळजी द्वारा की जा रही सेवाओं की गहराइ

पछले पाक्षिक में प्रकाशित हुए लेख में आपने पढा – ‘मुझे विविधांगी सेवाएं मिलने का मुख्य कारण – मेरा गुण ‘जिज्ञासा’ और मुख्यत: ‘गुरुकृपा’ है’, ऐसा लगना, आध्यात्मिक कष्टों पर नामजप आदि उपचार बताना तथा दूसरों के लिए नामजपादि उपचार करना ।’ अब इस लेख का अगला भाग दे रहे हैं ।

(भाग २)

सद्गुरु डॉ. मुकुल गाडगीळजी

भाग १ : https://sanatanprabhat.org/hindi/110253.html

४. समष्टि सेवाएं करनेवाले साधकों को आध्यात्मिक कष्टों के कारण आनेवाली समस्याओं का समाधान करना

अध्यात्मप्रसार करनेवाले साधक पूरे वर्ष विभिन्न समष्टि सेवाएं करते रहते हैं, उदा. शिविर आयोजित करना, सत्संग लेना, ग्रंथप्रदर्शनी लगाना, हिन्दू राष्ट्र-जागृति सभाएं लेना, आंदोलन करना, धर्मजागृति हेतु फेरी निकालना, हिन्दू राष्ट्र अधिवेशन लेना इत्यादि । इन समष्टि सेवाओं के कारण समाज माया से अध्यात्म की ओर मुडता है, जिससे समाज की सात्त्विकता बढती है । समाज अधिक से अधिक सात्त्विक हुआ, तो रामराज्य के समान हिन्दू राष्ट्र की स्थापना शीघ्र होगी । वर्तमान कलियुग में प्रबल अनिष्ट शक्तियों को यह अच्छा नहीं लगता, इसलिए वे इन समष्टि सेवाओं में बाधाएं उत्पन्न करते हैं । वर्तमान समय में तो अनिष्ट शक्तियां सेवा के प्रत्येक स्तर पर बाधाएं उत्पन्न कर रही हैं ।

अ. कोई शिविर आयोजित करना हो, तो उस शिविर की रूपरेखा तैयार करना, मार्गदर्शन करनेवाले वक्ता सुनिश्चित करना, शिविर के लिए जिज्ञासुओं के नामों का पंजीकरण करना, शिविर हेतु जिज्ञासुओं का आना, प्रत्यक्षरूप से शिविर चलाना आदि अनेक स्तर होते हैं । मैं ऐसी समष्टि सेवाओं में आनेवाली संभावित बाधाओं को जानकर उन्हें दूर करने के लिए नामजप ढूंढता हूं तथा उसे संबंधित उपक्रम से पूर्व ही साधकों को करने के लिए कहता हूं ।

आ. किसी ने सेवा में प्रत्यक्ष रूप से उत्पन्न कोई बाधा बताई, तो उस समय मैं ‘अनिष्ट शक्तियां किस प्रकार आक्रमण कर रही हैं ?’, यह जानकर उसपर उचित नामजप के माध्यम से उपचार करता हूं । मेरे उपचार करने से वह समस्या दूर हुई इसकी साधकों को अनुभूति होती है, उदा. कार्यक्रम में ध्वनि व्यवस्था (साउंड सिस्टम) अच्छे से कार्यान्वित होते हुए भी यदि चल नहीं रहा हो, तो ऐसी स्थिति में मैं ‘अनिष्ट शक्तियां उस व्यवस्था पर किस प्रकार तथा किस दिशा से आक्रमण कर रही हैं’, इसे सूक्ष्म से जानकर नामजप आदि उपचार करता हूं । उसके कारण वह बाधा दूर होती है ।

इ. कभी-कभी अनिष्ट शक्तियों द्वारा बनाए कष्टदायक (काले) आवरण के कारण किसी व्यवस्था में उत्पन्न खराबी साधकों के ध्यान में नहीं आती । मैं उस आवरण को मुद्राओं एवं नामजपादि उपचारों से दूर करता हूं तथा उसके पश्चात सूक्ष्म से जानकर जिस स्थान पर खराबी है वह ध्यान में लाकर देता हूं ।

 

प्राणशक्ति प्रणाली उपचार-पद्धति अनुसार उपचार ढूंढते सद्गुरु डॉ. मुकुल गाडगीळजी

ई. शिविर में मार्गदर्शन करनेवाले किसी वक्ता को सर्दी, बुखार, खांसी, मिचली इत्यादि में से कोई कष्ट हो रहा हो, तो उसे दूर करने के लिए मैं नामजप बताता हूं ।

उ. जिस सभागृह में कार्यक्रम चल रहा है, कभी-कभी अनिष्ट शक्तियां उस सभागृह में दबाव निर्माण करती हैं, जिसके कारण अस्वस्थता लगती है, साथ ही उपस्थित जिज्ञासुओं को चल रहे मार्गदर्शन का आकलन नहीं हो पाता । ऐसी स्थिति में नामजप कर उस दबाव को दूर करना पडता है ।

ऊ. कभी सभा, आंदोलन, धर्मप्रसार फेरी जैसे सार्वजनिक कार्यक्रम कभी-कभी खुले स्थान पर होने के कारण, कार्यक्रम से पूर्व बादल आना, तीव्र गति से हवा चलना, जैसे वर्षा होने के लक्षण दिखाई देते हैं । इसपर नामजप उपचार करने से ऐसे लक्षण दूर हो जाते हैं । इससे समझ में आता है कि ‘अनिष्ट शक्तियों ने ही कार्यक्रम में बाधा उत्पन्न करने हेतु ऐसे लक्षण निर्माण किए थे ।’

कार्यक्रम में आनेवाली इस प्रकार की बाधाओं पर आध्यात्मिक स्तर के उपचार करने से, साथ ही उस कार्यक्रम से साधकों की व्यष्टि एवं समष्टि साधना अच्छे ढंग से हो; इसके लिए नामजपादि उपचार करने से लाभ होता है ।

५. अन्य देशों में अथवा प्रदेशों में जाकर अध्यात्मप्रसार करनेवाले प्रसारसेवकों की समस्याओं का समाधान करना

दूसरे देश में जाने हेतु ‘वीजा’ शीघ्र नहीं मिलता । अन्य देश में जाने पर हवाई अड्डे पर ‘एमिग्रेशन’ होने में बाधाएं आती हैं । अन्य देश में सत्संग लेने हेतु उचित स्थल उपलब्ध नहीं होता । प्रसारसेवक अकस्मात बीमार हो जाते हैं । प्रसारसेवकों को इस प्रकार की समस्याएं आती हैं । इन समस्याओं को तत्काल दूर करना आवश्यक होता है; इसलिए मुझे उनपर नामजप कर आध्यात्मिक स्तर के उपचार करने पडते हैं ।

दूसरे प्रदेशों में जाकर अध्यात्मप्रसार की सेवा करनेवाले प्रसारसेवक यह सेवा आरंभ होने से पूर्व ही मुझसे आध्यात्मिक स्तर के उपचार पूछते हैं । उनकी इस सेवा में किसी प्रकार की बाधा न आएं तथा उनकी सेवा गुरुदेवजी को अपेक्षित ऐसी परिपूर्ण हो, इसके लिए मैं उन्हें नामजप बताता हूं ।

कल्पनातीत एवं अप्रतिम लेख लिखनेवाले सद्गुरु डॉ. मुकुल गाडगीळजी

सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. जयंत आठवलेजी

सद्गुरु डॉ. मुकुल गाडगीळजी का यह लेख पढकर मैं आश्चर्यचकित रह गया ! इसमें दिया ज्ञान विश्व में किसी को नहीं होगा ! भारतीय संगीत के बडे-बडे विशेषज्ञ भी यह लेख पढकर चकित रह जाएंगे ! ‘सद्गुरु डॉ. गाडगीळजी यह ज्ञान विश्व के जिज्ञासु साधकों को सिखाकर, अपने समान अनेक आध्यात्मिक उपचार करनेवाले तैयार करें ! इससे विश्व में संगीत से ठीक होनेवाले साधकों को उपचार उपलब्ध होंगे’, ऐसी मैं उनके चरणों में प्रार्थना करता हूं ।

– सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. जयंत आठवले

६. ‘इंटरनेट’ से अध्यात्मप्रसार करने में आनेवाली समस्याओं का समाधान करना

आजकल प्रत्यक्षरूप से अध्यात्मप्रसार करने की तुलना में ‘इंटरनेट’ से किया जानेवाला अध्यात्मप्रसार पूरे विश्व में तीव्र गति से हो रहा है, साथ ही वह एक ही समय में लाखों लोगों तक पहुंचता है । इसके लिए ‘इंटरनेट’ पर संस्था की जानकारी, उसके विभिन्न उपक्रम तथा अध्यात्म की सैद्धांतिक एवं प्रायोगिक जानकारी देनेवाली ‘वेबसाइट’ है । इस ‘वेबसाइट’ द्वारा अध्यात्मप्रसार करने में अनिष्ट शक्तियां बाधाएं निर्माण करती हैं । इससे ‘वेबसाइट’ पर किसी जानकारी का कोई भाग दिखाई न देना, पाठकों को ‘वेबसाइट’ खोलने में समस्या आना, ‘इंटरनेट’ हेतु संयोजित ‘सर्वर’ बंद हो जाना जैसी समस्याएं आती हैं । उनपर नामजप का उपचार बताना पडता है, साथ ही कभी-कभी ‘फेसबुक’, ‘एक्स’ (पूर्व का ‘ट्विटर) जैसे सामाजिक माध्यमों के द्वारा अध्यात्मप्रसार करने में बाधाएं आती हैं । ऐसे में नामजपादि उपचार कर इन समस्याओं का समाधान करना पडता है ।

७. विभिन्न स्थानों पर चल रहे आश्रमों के निर्माणकार्य में आध्यात्मिक स्तर के उपचार बताकर सहायता करना

अ. आश्रम हेतु भूमि खरीदने में आनेवाली बाधाएं दूर करना

आ. आश्रम हेतु प्रशासन से प्रारूप की अनुमति लेने में होनेवाला विलंब दूर करना

इ. आश्रम के निर्माणकार्य में सूक्ष्म से आनेवाली बाधाएं दूर करना

ई. निर्माणकार्य पूर्ण होने पर वह नियमों के अनुरूप हो, साथ ही वहां रहने हेतु प्रशासन से मिलनेवाला प्रमाणपत्र शीघ्र प्राप्त हो, इसलिए आध्यात्मिक स्तर के उपचार करना ।

८. आश्रम की भूमि में कुआं अथवा बोरवेल की खुदाई हेतु उचित स्थान खोजना

आश्रम की भूमि में जहां जल मिलेगा, वह स्थान खोजने की सेवा मुझे मिली । भूमि में ईशान्य दिशा में (उत्तर एवं पूर्व दिशा के मध्य की भूमि में) पानी मिलना अधिक अच्छा होता है । भूमि में स्थित पानी ढूंढने हेतु मुझे उस स्थान का मानचित्र दिया जाता है । मुझे यह सेवा जब पहली बार मिली, उस समय मैं उस मानचित्र पर उंगली घुमाकर उस भूमि में स्थित जल के स्पंदन देख रहा था । अकस्मात ही एक स्थान पर उंगली रखने पर मेरे मुंह में लार आ गई । उस समय मेरे ध्यान में आया कि ‘उस भूमि में इस स्थान पर पानी है ।’ मैंने जब उस स्थान से दूसरे स्थान पर उंगली घुमाई, तब मुंह में लार आना रुक गया तथा पुनः पहले के स्थान पर उंगली ले जाने पर मेरे मुंह में लार आने लगी । मैंने ३-४ बार यह प्रयोग किया तथा ‘मुझे जो प्रतीत हुआ, वह उचित है न ?’, इसकी मैंने पडताल की । उसके उपरांत भूमि में जिस स्थान पर पानी प्रतीत हुआ था, उस स्थान के कितने परिसर में पानी है तथा उसका केंद्रबिंदु कहां है ?’, मैंने इसे भी ढूंढकर उसके अनुसार उस मानचित्र पत्र पर ‘पेन्सिल’ से चिह्नित किया । ‘आश्रम की भूमि में और कहां-कहां पानी है ?’, यह भी मैंने ढूंढ लिया । ‘मेरे द्वारा ढूंढे गए स्थानों में से किस स्थान पर कुआं अथवा बोरवेल की खुदाई करनी है ?’, यह उसके उपरांत सुनिश्चित किया जाता है ।

अब तक मेरे द्वारा खोजे गए स्थानों पर पानी मिला है, जो मुझपर गुरुकृपा ही है ।

९. आश्रम में अथवा घर में साधक की खोई वस्तु कहां होगी’, यह बताने का प्रयास करना

कभी-कभी साधकों को ‘उनकी कोई महत्त्वपूर्ण वस्तु उन्होंने कहां रखी थी ?’, इसका स्मरण नहीं होता । वे आश्रम में (अथवा घर में) सर्वत्र उसकी खोज करते हैं; परंतु वह महत्त्वपूर्ण वस्तु उन्हें नहीं मिलती ।  ऐसा होने पर वे मुझे इस विषय में बताकर ‘सामान्यरूप से उन्होंने किस कक्ष में वह वस्तु रखी थी’, यह बताते हैं । उसके पश्चात मैं सूक्ष्म से उस विषय में समझ लेता हूं तथा उन्हें जहां उस वस्तु की खोज करनी है, वह स्थान बताता हूं, उदा. ‘उस कक्ष के द्वार से अंदर प्रवेश करने पर सामने यदि अलमारी है, तो उस अलमारी के ऊपर के खाने में वह वस्तु खोजिए’, ऐसा बताता हूं । अधिकतर मेरा उत्तर सही आता है ।

(क्रमशः)

– (सद्गुरु) डॉ. मुकुल गाडगीळजी, पीएच.डी., महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय, गोवा. (१७.४.२०२४)

  • सूक्ष्म : व्यक्ति के स्थूल अर्थात प्रत्यक्ष दिखनेवाले अवयव नाक, कान, नेत्र, जीभ एवं त्वचा, ये पंचज्ञानेंद्रिय हैैं । जो स्थूल पंचज्ञानेंद्रिय, मन एवं बुद्धि के परे है, वह ‘सूक्ष्म’ है । इसके अस्तित्व का ज्ञान साधना करनेवाले को होता है । इस ‘सूक्ष्म’ ज्ञान के विषय में विविध धर्मग्रंथों में उल्लेख है ।
  • आध्यात्मिक कष्ट : इसका अर्थ है व्यक्ति में नकारात्मक स्पंदन होना । मंद आध्यात्मिक कष्ट का अर्थ है व्यक्ति में नकारात्मक स्पंदन ३० प्रतिशत से अल्प होना । मध्यम आध्यात्मिक कष्ट का अर्थ है नकारात्मक स्पंदन ३० से ४९ प्रतिशत होना; और तीव्र आध्यात्मिक कष्ट का अर्थ है नकारात्मक स्पंदन ५० प्रतिशत अथवा उससे अधिक मात्रा में होना । आध्यात्मिक कष्ट प्रारब्ध, पितृदोष इत्यादि आध्यात्मिक स्तर के कारणों से होता है । किसी व्यक्ति के आध्यात्मिक कष्ट को संत अथवा सूक्ष्म स्पंदन समझनेवाले साधक पहचान सकते हैं ।
  • बुरी शक्ति : वातावरण में अच्छी तथा बुरी (अनिष्ट) शक्तियां कार्यरत रहती हैं । अच्छे कार्य में अच्छी शक्तियां मानव की सहायता करती हैं, जबकि अनिष्ट शक्तियां मानव को कष्ट देती हैं । प्राचीन काल में ऋषि-मुनियों के यज्ञों में राक्षसों ने विघ्न डाले, ऐसी अनेक कथाएं वेद-पुराणों में हैं । ‘अथर्ववेद में अनेक स्थानों पर अनिष्ट शक्तियां, उदा. असुर, राक्षस, पिशाच को प्रतिबंधित करने हेतु मंत्र दिए हैं ।’ अनिष्ट शक्तियों से हो रही पीडा के निवारणार्थ विविध आध्यात्मिक उपचार वेदादि धर्मग्रंथों में वर्णित हैं ।
  • इस अंक में प्रकाशित अनुभूतियां, ‘जहां भाव, वहां भगवान’ इस उक्ति अनुसार साधकों की व्यक्तिगत अनुभूतियां हैं । वैसी अनूभूतियां सभी को हों, यह आवश्यक नहीं है । – संपादक