सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी के ओजस्वी विचार
संतान को साधना न सिखाने का परिणाम !
‘वृद्धावस्था में संतान ध्यान नहीं देती, ऐसा कहनेवाले वृद्धजनों, आपने संतान पर साधना के संस्कार नहीं किए, इसका यह फल है । इसलिए संतान के साथ आप भी उत्तरदायी हैं !’
हास्यास्पद साम्यवाद !
‘अध्यात्म के ‘प्रारब्ध’ शब्द की और ईश्वर की पूर्ण अनदेखी करने के कारण साम्यवाद १०० वर्ष में ही समाप्त होने को है !’
राजनीतिक दलों के कार्यकर्ता तथा ईश्वर की आराधना करनेवाले साधकों में भेद !
‘राजनीतिक दलों के कार्यकर्ताओं को स्वार्थ के लिए उनके दल की सरकार चाहिए, जबकि साधकों को ‘सभी का भला करने के लिए’, ईश्वरीय (धर्म) राज्य चाहिए ।’
कम से कम इसके लिए भगवान के भक्त बनें !
‘तृतीय विश्वयुद्ध के भीषण काल में केवल ईश्वर ही बचा सकते हैं; कम से कम इसके लिए तो भगवान के भक्त बनें !’
हिन्दू राष्ट्र के नियमों का पालन करने से जनता की साधना भी होगी !
‘हिन्दू राष्ट्र के सभी नियम धर्माधिष्ठित होंगे । अतएव उनमें परिवर्तन नहीं करना पडेगा तथा उनका पालन करने से अपराध नहीं होंगे और साधना भी होगी ।’
यह भारत के लिए लांच्छनास्पद ही है !
‘अब अनेक व्यवहारों के कुल खर्चे में अधिकृत खर्चों सहित घूस देने में कितना खर्च होगा ?’, यह भी ध्यान रखते हैं !’
– सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. जयंत आठवले