प्रत्येक नग्न अथवा लैंगिक चित्र को अश्लील नहीं कहा जा सकता ! – मुंबई उच्च न्यायालय
मुंबई उच्च न्यायालय ने २५ अक्टूबर को निर्णय सुनाया कि संभोग को दर्शाने वाला प्रत्येक चित्र अथवा पेंटिंग को सदा अश्लील नहीं माना जा सकता । इस समय, न्यायालय ने अब दिवंगत फ्रांसिस न्यूटन सूजा, साथ ही अकबर पदमसी की पेंटिंग्स को प्रसिद्ध करने का आदेश दिया, और सीमा शुल्क विभाग को उनके जब्त किए गए चित्रों को छोडने का निर्देश दिया । इस बार न्यायालय ने पुराने निर्णयों का संदर्भ दिया ।
१. उपरोक्त अंतर्राष्ट्रीय प्रसिद्धि प्राप्त चित्रकारों की कलाकृतियां ‘पॉलीमैक्स इंडिया प्राइवेट लिमिटेड’ प्रतिष्ठान के मालिक मुस्तफा कराचीवाला ने लंदन में एक नीलामी में खरीदी थीं । मुंबई सीमा शुल्क के सहायक आयुक्त तथा आयुक्त द्वारा ओझा की ४ और पदमसी की ३ सहित कुल ७ कलाकृतियाँ जब्त कीं थीं । वे इसे नष्ट करने वाले थे । उन पर ५०,००० रुपये का जुर्माना लगाया गया ।
२. ‘लवर्स’ के नाम से प्रसिद्ध ओझा की पेंटिंग्स का मूल्य ४० करोड़ रुपए है । वर्ष २०२३ में उनकी कलाकृतियों पर अश्लीलता का आरोप लगा था ।
खजुराहो के मंदिरों के बारे में आप क्या कहते हैं ?
न्यायालय ने कहा कि हालांकि ऐसी प्रत्येक कलाकृति को अनुमति नहीं दी जा सकती, लेकिन सीमा शुल्क अधिकारियों ने किसी विशेषज्ञ की राय नहीं ली । उनके लिए व्यक्तिगत निष्कर्ष निकालना और उन पर प्रतिबंध लगाना अस्वीकार्य है । लैंगिक संबंध तथा अश्लीलता सदा पर्यायवाची नहीं होते हैं । तो फिर आप खजुराहो के मंदिरों के बारे में क्या कहते हैं ? आप अश्लीलता के नाम पर इसके राष्ट्रीय और सांस्कृतिक मूल्य को कम नहीं कर सकते ।