ऋषि-मुनियों का महत्त्व !

सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. जयंत आठवलेजी

वसिष्ठ ऋषि, विश्वामित्र ऋषि, भृगु ऋषि, अत्रि ऋषि, अगस्त्य ऋषि, नारद मुनि इत्यादि ने जो शिक्षा दी है, वह शिक्षा तथा उनके नाम युग-युग से चिरंतन हैं । इसके विपरीत, बुद्धिजीवी तथा धर्मद्रोहियों के नाम १-२ पीढियों में सभी भूल जाते हैं । इसका कारण यह है कि ऋषि-मुनि सत्य बताते हैं; इसलिए काल उनके नाम तथा शिक्षा को स्पर्श नहीं कर सकता । इसके विपरीत, बुद्धिजीवी तथा धर्मद्रोही जो बताते हैं, सत्य न होने से काल के प्रवाह में उनके नाम तथा शिक्षा का विस्मरण हो जाता है ।

‘ऋषियों ने सगुण-निर्गुण, पंचमहाभूत, काल की महिमा, कर्मफलन्याय, पुनर्जन्म इत्यादि के विषय में यदि बताया नहीं होता, तो क्या ‘अध्यात्म’ कभी शब्द में स्थान पा सकता था ? ‘कोई सामान्य भौतिक शोध करने के लिए वैज्ञानिकों को वर्षाें तक शोधकार्य करना पडता है, जिसमें आगे जाकर अन्य वैज्ञानिक परिवर्तन करते हैं । इसके विपरीत, ऋषि मुनियों को सूक्ष्म से मिलनेवाले ज्ञान के कारण शोध नहीं करना पडता तथा कुछ ही क्षणों में उन्हें सूक्ष्म से सभी प्रश्नों के उत्तर मिल जाते हैं, साथ ही वे जो बताते हैं, वह अंतिम सत्य होने से कोई भी उनमें परिवर्तन नहीं ला सकता ।’

– सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. जयंत बाळाजी आठवले