उत्तराधिकारी कानून में मुसलमानों को समाहित करने की मांग यह संसद का अधिकार है ! – सर्वोच्च न्यायालय
नई देहली – सर्वोच्च न्यायालय ने एक याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा, ‘अन्य कोई भी धर्म का व्यक्ति उत्तराधिकार कानून में समाहित होगा अथवा नहीं ?, यह निश्चित करने का अधिकार केवल देश की संसद का है ।’ केरल के मुसलमानों के लिए काम करनेवाली एक संस्था की अध्यक्षा साफिया पी.एम. नामक मुसलमान महिला ने यह याचिका प्रविष्ट की थी । जिसमें मांग करते हुए कहा है, ‘जिन मुसलमानों ने अपना धर्मत्याग किया है, उन्हें ‘भारतीय उत्तराधिकार कानून-१९२५’ में समाहित होने का विकल्प होना चाहिए । ऐसे लोगों को मुस्लिम व्यक्तिगत कानून की अपेक्षा भारतीय उत्तराधिकार कानून के अंतर्गत समाहित करने का विकल्प होना आवश्यक है ।’
क्या है भारतीय उत्तराधिकार कानून १९२५ ?
भारतीय उत्तराधिकार कानून, १९२५ यह एक सर्वसमावेशक (विस्तृत) कानून है, जो भारत के उत्तराधिकार एवं धरोहर कानूनों से संबंधित है । यह कानून मृत्युपत्र द्वारा मृत व्यक्ति की संपत्ति को बांटने का प्रावधान रखता है ।