ऋषिऋण चुकाने का सबसे सरल मार्ग है ऋषियों का आज्ञापालन करना !
१. मनुष्य एवं देवताओं के मध्य की कडी हैं ऋषि !
‘पितृऋण, समाजऋण, ऋषिऋण तथा देवऋण चुकाना’ मनुष्य का धर्म है । पूर्वज एवं समाज से हमारा नाता है । इसलिए उनका हमपर जो ऋण होता है, उससे हम थोडा बहुत अवगत होते हैं । भगवान की भक्ति के कारण हम देवऋण की कल्पना कर पाते हैं; परंतु ऋषियों का कार्य बुद्धि-अगम्य होने के कारण कलियुग में ऋषिऋण का महत्त्व मनुष्य के समझ में नहीं आता । धर्म का जो भी ज्ञान पृथ्वी पर उपलब्ध है, उसके कर्ता-धर्ता ऋषि हैं । तो क्या केवल ऋषियों के कारण ही ‘त्योहार, व्रत, परंपरा, पंचांग, तिथि, पूजा-अनुष्ठान, यज्ञ-याग, होम-हवन, ज्योतिष, वास्तु, आयुर्वेद आदि विषयों का ज्ञान मनुष्य को मिला ? नहीं ! वास्तव में देखा जाए, तो मनुष्य एवं देवताओं के मध्य की कडी हैं ऋषि ! ऋषियों के कारण ‘देवता क्या होते हैं ?’ ‘वे कैसे दिखाई देते हैं ?’ ‘अवतार कौन होते हैं ?’, ‘ब्रह्मांड क्या है ?’, ऐसी अनेक बातें मनुष्य को ज्ञात हुईं ।
२. ऋषियों द्वारा साधकों को दिया गया ‘ज्ञानामृत, आनंदामृत एवं मार्गदर्शन’ के लिए उनके प्रति चाहे कितनी भी कृतज्ञता व्यक्त की जाए, अल्प ही है ।
कलियुग में सर्वसामान्य मनुष्य को ऋषियों का सान्निध्य प्राप्त होना असंभव है । ऐसा होते हुए भी सनातन के साधकों को सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. जयंत बाळाजी आठवलेजी की कृपा से नाडीवाचन के माध्यम से सप्तर्षि का सत्संग प्राप्त हुआ है । ऋषियों ने समय-समय पर सनातन के साधकों को ज्ञानामृत प्रदान किया है । उन्होंने सच्चिदानंद परब्रह्म डॉक्टरजी का जन्मोत्सव मनाने के लिए कहकर साधकों को आनंदामृत प्रदान किया है तथा कठिन परिस्थिति में भी गुरु के प्रति श्रद्धा रखने हेतु प्रेरणादायी मार्गदर्शन किया है । उसके लिए हम साधक ऋषियों के प्रति चाहे कितनी भी कृतज्ञता व्यक्त करें, अल्प ही है ।
३. ऋषिऋण चुकाने का सरल मार्ग है उनका आज्ञापालन !
विगत ९ वर्षों में सनातन के तीनों गुरुओं ने (सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. जयंत आठवलेजी तथा उनकी आध्यात्मिक उत्तराधिकारिणियां श्रीसत्शक्ति (श्रीमती) बिंदा नीलेश सिंगबाळजी एवं श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) अंजली मुकुल गाडगीळजी ने) ‘ऋषियों का आज्ञापालन कैसे करना चाहिए ?’, इसका सर्वाेत्तम उदाहरण हमारे सामने रखा है । सनातन के तीनों गुरुओं का आदर्श सामने रख हम ऋषियों का आज्ञापालन करेंगे तथा नाडीवाचन के माध्यम से उनके मार्गदर्शन का लाभ उठाएंगे !’
– श्री. विनायक शानभाग (आध्यात्मिक स्तर ६७ प्रतिशत), कांचीपुरम्, तमिलनाडु (४.७.२०२४)