संपादकीय : विनाशकारी संघर्ष : वास्तविकता एवं भविष्य !

छ दिन पूर्व ही जापान के ‘निहोन हिडानक्यो’ संगठन को वर्ष २०२४ का ‘नोबेल’ शांति पुरस्कार मिला है । ‘नॉर्वेजियन नोबेल समिति’ ने इस पुरस्कार की घोषणा की । इस संगठन द्वारा परमाणु हथियारों के विरुद्ध लंबे समय से अभियान चलाने से उसे इस पुरस्कार से सम्मानित किया गया है । यह संगठन विश्व को परमाणु हथियारों से मुक्त कराने हेतु विगत अनेक वर्षाें से संघर्ष कर रहा है । इस संगठन की विशेषता यह है कि इस संगठन के लोग कोई अन्य नहीं, अपितु वर्ष १९४५ के दूसरे विश्वयुद्ध के समय हिरोशिमा एवं नागासाकी पर हुए परमाणु बम आक्रमण में जीवित बचे लोग तथा यह उनकी नई पीढी है । उन्हें वहां की भाषा में ‘हिबाकुशा’ कहा जाता है । ये लोग परमाणु बम के आक्रमण से बच गए हैं, तो स्वाभाविक ही इन्होंने परमाणु बम का दंश तथा उससे होनेवाले भीषण परिणामों का दंश झेला होगा ! वह स्थिति पुनः उत्पन्न न हो अथवा अपने देश सहित अन्य देश भी परमाणु हथियारों का उपयोग न करें; इस उद्देश्य को सामने रखकर उन्होंने समाज के प्रत्येक स्तर तक पहुंचकर आंदोलन चलाए हैं । ऐसे लोगों के प्रयासों को सचमुच अभिवादन करना चाहिए । ‘नॉर्वेजियन नोबेल समिति’ ने उनके परिश्रमों का संज्ञान लेकर उन्हें शांति के लिए दिया जानेवाला ‘नोबेल’ पुरस्कार घोषित किया, यह प्रशंसनीय तथा अभिनंदनीय है । इस वर्ष इस समिति को शांति पुरस्कार हेतु कुल २८६ आवेदन प्राप्त हुए थे । उनमें से ८९ आवेदन विभिन्न संगठनों के थे, जिनमें ‘निहोन हिडानक्यो’ संगठन विजयी सिद्ध हुआ । इस संगठन के अथक प्रयासों के कारण विगत ८० वर्षाें में किसी भी युद्ध में परमाणु हथियारों का उपयोग नहीं किया गया, यह उनका कितना बडा योगदान है । जापान की यह पीढी एक महान कार्य कर रही है; इसलिए उनका योगदान भूलना नहीं चाहिए । अन्य समय पर तथाकथित मानवतावाद का रोना रोनेवाले अथवा मानवाधिकारों के उल्लंघन का आक्रोश करनेवाले संगठनों की ओर से जापान के इस संगठन की प्रशंसा की गई हो, कभी भी ऐसा सुनने में नहीं आया है । अब ये मानवतावादी मुखौटे कहां चले गए ?

वर्तमान समय में विश्व में अनेक राष्ट्रों में बडे स्तर पर विनाशकारी संघर्ष जारी है, चाहे वह पश्चिम एशिया हो, यूक्रेन-रूस हो, इजरायल-लैबनॉन-इरान हो अथवा सुदान हो, विश्व स्तर पर उनके मध्य चल रहे संघर्ष का परिणाम अल्पाधिक मात्रा में प्रतीत होता है । उसके कारण अनेक स्थानों पर युद्ध की चिंगारी भडक गई है, यह कब शांत होगी, कहा नहीं जा सकता । कुछ स्थानों पर युद्ध के काले बादल दिखाई दे रहे हैं । ऐसे में ‘तीसरा विश्वयुद्ध कब भडक जाए ?’, कहा नहीं जा सकता । ऐसी स्थिति में निःशस्त्रीकरण का काम करनेवाले तथा परमाणु बम का विरोध करनेवाले इस संगठन को नोबेल शांति पुरस्कार प्राप्त होना महत्त्वपूर्ण है । भले ही यह पुरस्कार प्रतिवर्ष दिया जाता हो, तब भी ‘शांति के लिए नोबेल’ पुरस्कार अनेक बार विवादों के घेरे में आ जाता है । कुछ लोगों को लगता है कि‘यह पुरस्कार अमुक व्यक्ति अथवा संगठन को मिलना चाहिए ।’ उसके कारण इस पुरस्कार का विषय उचित-अनुचित की दृष्टि से सदैव चर्चा में ही बना रहता है । प्रतिवर्ष सभी के साथ न्याय होगा, ऐसा नहीं है । पुरस्कार किसे मिला, इसकी अपेक्षा उनका कार्य कितना महान है, इसकी ओर ध्यान देना महत्त्वपूर्ण है ।

‘अगला कदम कब समझदारी भरा होगा ?’

आज प्रत्येक राष्ट्र हथियार बनाने में व्यस्त है । कुछ राष्ट्र सचमुच ही अपने रक्षा क्षेत्र को सशक्त बनाने का प्रयास कर रहे हैं । वे अपने हथियारों को और आधुनिक बना रहे हैं; परंतु कुछ राष्ट्र केवल विध्वंस के ही सपने देख रहे हैं । एक-दूसरे की छाती पर बैठकर उनके अहित की इच्छा कर रहे हैं । ‘दूसरे को नष्ट कर मैं बलवान कैसे बनूं ?’, यही विचार उनके मन में है । इसकी परिणिति परमाणु विस्फोट में हो सकती है । ‘विश्व में कहीं भी परमाणु बम अथवा परमाणु हथियारों का उपयोग न हो’, यह मानसिकता कहीं-कहीं ही दिखाई देती है । ‘हिंसक वृत्ति’ तथा ‘सत्ता की महत्त्वाकांक्षा’ ही विश्व का चक्र बन गई है । इससे विनाश ही होगा, यह सत्य ज्ञात होते हुए भी इन लोगों को उसकी कुछ नहीं पडी है । जापान का यह संगठन शांति प्रस्थापित करने का कार्य कर रहा है; परंतु दुर्भाग्यवश अनेक राष्ट्र विनाश का कारण बनने में ही व्यस्त हैं । वास्तव में देखा जाए, तो परमाणु हथियारों का पृथ्वी पर होनेवाला परिणाम, उनसे उत्पन्न होनेवाला किरणोत्सर्जन एवं भूकंपजन्य क्रियाकलाप इनपर विचार होना आवश्यक है; परंतु उस दिशा में कोई आगे नहीं बढ रहा है । कोई भी पीछे हटने को तैयार नहीं है । विश्व में ऐसे अनेक देश हैं, जिन्हें युद्ध न हो, ऐसा लगता है; परंतु जिस समय युद्ध आरंभ होता है, तब अनेक देश उसमें बुरी तरह से पिस जाते हैं । यही अब तक का इतिहास है । ऐसी स्थिति में सूखे के साथ गीला भी जल जाता है; इसलिए युद्ध को टालना ही बुद्धिमानी है । यह पूरी प्रतिकूलता हमें क्या बताती है ? ‘अगला कदम कब समझदारी भरा होगा ?’ इस वचन का विचार किया जाना चाहिए ।

कुछ दिन पूर्व प्रकाशित एक ब्योरे से यह स्पष्ट हुआ है कि चीन ने आनेवाले दशक में १ सहस्र नए परमाणु हथियार बनाने की योजना बनाई है । परमाणु हथियारों की यह प्रतियोगिता कब रुकेगी ? उसका रुकना महत्त्वपूर्ण है; क्योंकि देश केवल हथियारों के बल पर नहीं चल सकता, उसके लिए शांति की नींव ही आवश्यक होती है । जापान ने इस वास्तविकता को जानकर विश्व को उससे बचाने का व्रत अपना लिया । उसके कारण उनका कार्य विश्वोद्धारक सिद्ध होता है । परमाणु हथियार विश्व के लिए सबसे अधिक विनाशकारी हैं । इन हथियारों को नष्ट करना ही विश्व के लिए हितकारी है, यह बात प्रत्येक व्यक्ति को ध्यान में लेनी चाहिए ।

वर्चस्ववाद नष्ट करें !

जापान के संगठन को प्राप्त इस पुरस्कार को देखते हुए पूरे विश्व में शांति स्थापित होने के लिए सभी को संगठित होकर प्रयास करने होंगे । यह कार्य किसी अकेले व्यक्ति का नहीं है । संयुक्त राष्ट्रों को ही इसके लिए अब प्राथमिकता लेने का समय आ चुका है । उसी से पूरे विश्व में शांति स्थापित हो सकती है । शांति का शक्तिशाली संदेश देना भले ही कितना भी प्रेरणादायी क्यों न हो; तब भी वर्चस्ववाद के सामने वह उतना टिक नहीं पाता । संवाद से मिली विजय ही श्रेष्ठ होती है; परंतु आवश्यकता पडने पर ‘जैसे को वैसा’ बनना ही पडता है । भगवान श्रीकृष्ण ने भी राजशिष्टाई के प्रसंग में पहले शांति स्वीकार कर विनाश को टालने का आवाहन भी किया था; परंतु स्थिति को देखते हुए शांतिदूत भगवान श्रीकृष्ण ने कृष्ण की नीति अपनाकर सभी को युद्ध का मार्ग अपनाने के लिए बाध्य किया । भगवान श्रीकृष्ण हमारे लिए आदर्श हैं । प्रत्येक नागरिक को इससे बोध लेकर राष्ट्र की सुरक्षा की दृष्टि से सतर्क एवं संवेदनशील बनना चाहिए !

परमाणु हथियारों के लालच में विश्व के अनेक राष्ट्र विनाश की खाई में गिरते जा रहे हैं, इस वास्तविकता को जानें !