सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी के ओजस्वी विचार

सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. जयंत आठवलेजी

‘हिन्दू’ शब्द की व्युत्पत्ति है, ‘हीनान् गुणान् दूषयति इति हिंदुः ।’ अर्थात ‘हीन, कनिष्ठ, रज एवं तम गुणों का नाश करनेवाला ।’ कितने हिन्दुत्वनिष्ठ संगठन अपने कार्यकर्ताओं को यह सिखाते हैं ?’


क्या ऐसे नेता देश का भला कर सकते हैं ?

‘अधिकांश राजनीतिक दलों के कुछ कार्यकर्ता ही नहीं, कुछ नेता भी वेतन प्राप्त सेवक के समान होते हैं । किसी अन्य दल ने अधिक पैसे दिए, तो वे उस दल के कार्यकर्ता अथवा नेता बन जाते हैं ! ऐसे कार्यकर्ता अथवा नेता क्या कभी देश का भला कर पाएंगे ?’


अहंकारी बुद्धिवादियों की मर्यादा !

‘बुद्धिवादियों को विज्ञान का कितना भी अहंकार हो, तब भी उन्हें यह ध्यान में रखना चाहिए कि वे छोटे से छोटा एक कोशिकीय जीव तो क्या, बाहरी वस्तुओं का उपयोग किए बिना, पत्थर का एक कण भी नहीं बना सकते । इसके विपरीत ईश्वर ने लाखों कोशिकाओं से युक्त मानव और अनंत कोटि ब्रह्मांड बनाए हैं ।’


विज्ञान की तुलना में अध्यात्म की सर्वश्रेष्ठता !

‘संसार के चिकित्सक (डॉक्टर), अभियंता, अधिवक्ता, वास्तुविशारद आदि विविध विषयों के विशेषज्ञ, साथ ही गणित, भूगोल, इतिहास, विज्ञान आदि एक भी विषय दूसरे विषय के संदर्भ में एक वाक्य भी नहीं बता सकता । केवल अध्यात्म ही एकमात्र ऐसा विषय है, जो विश्व के सभी विषयों से संबंधित त्रिगुण, पंचमहाभूत, साथ ही शक्ति, भाव, चैतन्य, आनंद एवं शांति इत्यादि के संदर्भ में परिपूर्ण जानकारी दे सकता है ।’

– सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. जयंत बाळाजी आठवले