Mohan Bhagwatji : हिन्दुओ, दुर्बल एवं असंगठित न रहो, संगठित हों !
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नागपुर (महाराष्ट्र) – बांग्लादेश में हिन्दू समाज पर अत्याचारों की घटनाओं की पुनरावृत्ति हो रही है । कहीं कुछ गडबड होने पर दुर्बलों पर क्रोध करने की कट्टरतावादियों की वृत्ति है । यह वृत्ति जब तक वहां है, तब तक हिन्दू ही नहीं, अपितु सभी अल्पसंख्यकों के सिर पर यह तलवार टंगी रहनेवाली है । यह हिन्दुओं के ध्यान में आना चाहिए, दुर्बल रहना अपराध है । हम दुर्बल, असंगठित हैं, इसका अर्थ है हम अत्याचार को निमंत्रित कर रहे हैं । उसके लिए किसी कारण की आवश्यकता नहीं है । हिंसा न करने का अर्थ दुर्बल रहना नहीं है । इसलिए जहां हैं, वहां संगठित रहें । यह हमें करना ही पडेगा, ऐसा वक्तव्य सरसंघचालक प.पू. डॉ. मोहनजी भागवत ने किया । १२ अक्टूबर को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने १०० वें वर्ष में पदार्पण किया है । उस निमित्त नागपुर के मुख्यालय में विविध प्रकार के कार्यक्रमों का आयोजन किया गया था । उस समय वे बोल रहे थे ।
Unity is strength -‘Being weak invites atrocities.’ – H.H. Sarsangchalak Dr. Mohanji Bhagwat’s Vijayadashami Address in Nagpur
Calls for regulation of OTT platforms
100th Foundation Day of RSS#विजयादशमी #दशहरा I राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ
Video Courtesy : @epanchjanya pic.twitter.com/073e7g9iQo— Sanatan Prabhat (@SanatanPrabhat) October 12, 2024
‘ओटीटी’ माध्यमों पर कानून का नियंत्रण होना चाहिए !(ओटीटी अर्थात ‘ओवर द टॉप’ । इस माध्यम से चलचित्र, धारावाहिक आदि कार्यक्रम देख सकते हैं ।) ओटीटी माध्यमों पर जो बातें दिखाई जाती हैं, वह बताना भी अभद्र सिद्ध होगा, इतना वह वीभत्स होता है । इसलिए इन सब पर कानून का नियंत्रण रखना बहुत आवश्यक है । संस्कार भ्रष्ट होने का एक बडा कारण वह भी है । माध्यमों ने दायित्वपूर्ण वर्तन करना चाहिए । उनके कृत्य से समाज की धारणा और मांगल्य बनाए रखनेवाले मूल्यों का पोषण होना चाहिए । इन बातों को धक्का लगे, ऐसा काम नहीं करना चाहिए, ऐसा भी प.पू. डॉ. भागवतजी ने कहा । |
सरसंघचालकजी द्वारा प्रस्तुत महत्त्वपूर्ण सूत्र
१. आज तक भारत को छोडकर अन्य किसी भी देश ने संसार के विकास का मार्ग नहीं चुना है । हम वह कर रहे हैं । कुछ देश भारत को रोकने का प्रयत्न कर रहे हैं । भारत को सामर्थ्यशाली बनने से रोकने के लिए प्रयत्न हो रहे हैं ।
२. देश की सुरक्षा, एकता, अखंडता एवं विकास सुनिश्चित करने के लिए चरित्र निर्दाेष एवं परिपूर्ण होना अत्यंत आवश्यक है । (१३.१०.२०२४)