Mohan Bhagwatji : हिन्दुओ, दुर्बल एवं असंगठित न रहो, संगठित हों !   

  • राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का शतकमहोत्सवी वर्ष में पदार्पण

  • सरसंघचालक प.पू. डॉ. मोहनजी भागवत का विजयादशमी के भाषण में आवाहन

प.पू. डॉ. मोहनजी भागवत

नागपुर (महाराष्ट्र) – बांग्लादेश में हिन्दू समाज पर अत्याचारों की घटनाओं की पुनरावृत्ति हो रही है । कहीं कुछ गडबड होने पर दुर्बलों पर क्रोध करने की कट्टरतावादियों की वृत्ति है । यह वृत्ति जब तक वहां है, तब तक हिन्दू ही नहीं, अपितु सभी अल्पसंख्यकों के सिर पर यह तलवार टंगी रहनेवाली है । यह हिन्दुओं के ध्यान में आना चाहिए, दुर्बल रहना अपराध है । हम दुर्बल, असंगठित हैं, इसका अर्थ है हम अत्याचार को निमंत्रित कर रहे हैं । उसके लिए किसी कारण की आवश्यकता नहीं है । हिंसा न करने का अर्थ दुर्बल रहना नहीं है । इसलिए जहां हैं, वहां संगठित रहें । यह हमें करना ही पडेगा, ऐसा वक्तव्य सरसंघचालक प.पू. डॉ. मोहनजी भागवत ने किया । १२ अक्टूबर को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने १०० वें वर्ष में पदार्पण किया है । उस निमित्त नागपुर के मुख्यालय में विविध प्रकार के कार्यक्रमों का आयोजन किया गया था । उस समय वे बोल रहे थे ।

‘ओटीटी’ माध्यमों पर कानून का नियंत्रण होना चाहिए !

(ओटीटी अर्थात ‘ओवर द टॉप’ । इस माध्यम से चलचित्र, धारावाहिक आदि कार्यक्रम देख सकते हैं ।)

ओटीटी माध्यमों पर जो बातें दिखाई जाती हैं, वह बताना भी अभद्र सिद्ध होगा, इतना वह वीभत्स होता है । इसलिए इन सब पर कानून का नियंत्रण रखना बहुत आवश्यक है । संस्कार भ्रष्ट होने का एक बडा कारण वह भी है ।

माध्यमों ने दायित्वपूर्ण वर्तन करना चाहिए । उनके कृत्य से समाज की धारणा और मांगल्य बनाए रखनेवाले मूल्यों का पोषण होना चाहिए । इन बातों को धक्का लगे, ऐसा काम नहीं करना चाहिए, ऐसा भी प.पू. डॉ. भागवतजी ने कहा ।

सरसंघचालकजी द्वारा प्रस्तुत महत्त्वपूर्ण सूत्र

१. आज तक भारत को छोडकर अन्य किसी भी देश ने संसार के विकास का मार्ग नहीं चुना है । हम वह कर रहे हैं । कुछ देश भारत को रोकने का प्रयत्न कर रहे हैं । भारत को सामर्थ्यशाली बनने से रोकने के लिए प्रयत्न हो रहे हैं ।

२. देश की सुरक्षा, एकता, अखंडता एवं विकास सुनिश्चित करने के लिए चरित्र निर्दाेष एवं परिपूर्ण होना अत्यंत आवश्यक है ।     (१३.१०.२०२४)