Pandit Vasantrao Gadgil : पुणे के वरिष्ठ ऋषितुल्य व्यक्तित्त्व और संस्कृत भाषा के प्रकांड विद्वान पंडित वसंतराव गाडगिल अनंत में विलीन हुए!

‘शारदा ज्ञानपीठ’ के संस्थापक, वरिष्ठ ऋषितुल्य व्यक्तित्व और संस्कृत भाषा के प्रकांड विद्वान पंडित वसंतराव गाडगिल

पुणे – ‘शारदा ज्ञानपीठ’ के संस्थापक, वरिष्ठ ऋषितुल्य व्यक्तित्व और संस्कृत भाषा के प्रकांड विद्वान पंडित वसंतराव गाडगिल (उम्र ९५ वर्ष) १८ अक्टूबर की सुबह अनंत में विलीन हो गये । उनके पार्थिव शरीर का अंतिम संस्कार वैकुंठ श्मशान घाट पर किया गया। इस अवसर पर अनेक धार्मिक गणमान्य व्यक्ति उपस्थित थे।

उन्होंने हिंदू धर्म, संस्कृति और संस्कृत भाषा को लेकर एक तपस्वी की तरह काम किया। उन्होंने संस्कृत भाषा के बारे में मौलिक शोध किए और इसके बारे में कई ग्रंथ लिखे । हिंदू धर्म संस्कृति के आधार स्तंभ इस व्यक्तित्व का योगदान आने वाली पीढ़ियों को प्रेरित करता रहेगा। वर्ष २०१२ में उन्हे श्री. नरेंद्र मोदी ने सम्मानित किया था । ‘गाडगिल जी न केवल संस्कृत में सपने देखते हैं, बल्कि वे संस्कृत के सपने देखते हैं ‘, यह बात माननीय नरेंद्र मोदी ने उनके बारे में कही थी।

पंडित वसंतराव गाडगिल ने कई बार समिति के कार्यों का मार्गदर्शन किया! – सुनील घनवट, संयोजक, हिन्दू जनजागृति समिति

श्री. सुनील घनवट

पंडित वसंतराव गाडगिल ने हिन्दू जनजागृति समिति के कार्य का समर्थन किया। वह हिन्दू जनजागृति समिति के संस्थापक सदस्य थे। समिति के कार्यों में कई बार उनका मार्गदर्शन भी मिला। चाहे वह ‘गणेशोत्सव में होनेवाले दुराचार निवारण’ अभियान हो या सिंधुदुर्ग में मंदिर परिषद, उनका सदा इसमें सहभाग रहा तथा मार्गदर्शन भी प्राप्त हुआ। वह पुणे में शंकराचार्य पीठ के प्रतिनिधि हैं। हिन्दू जनजागृति समिति के प्रेरणास्रोत डॉ. सच्चिदानंद परब्रह्म आठवले के प्रति उनका विशेष स्नेह था । पंडित वसंतराव गाडगिल एक अद्वितीय व्यक्तित्व थे जो अपनी अंतिम श्वास तक ईश्वर, देश, धर्म और राष्ट्र के लिए निरंतर सक्रिय रहे। उनके निधन से हमें एक ऋषितुल्य व्यक्तित्व का ह्रास हुआ है।

पंडित वसंतराव गाडगिल, जिन्होंने दैनिक ‘सनातन प्रभात’ के वार्षिकोत्सव में संस्कृत में भाषण देकर सबको आश्चर्यचकित कर दिया था !

वर्ष २००९ में दैनिक ‘सनातन प्रभात’ का वार्षिकोत्सव पुणे में आयोजित किया गया था । इस समारोह में पंडित वसंतराव गाडगिल को मुख्य अतिथि के रूप में आमंत्रित किया गया था। इस समारोह में उन्होंने संस्कृत में भाषण देकर सभी को आश्चर्यचकित कर दिया । इससे संस्कृत भाषा के प्रति उनकी आस्था और उसके प्रसार की इच्छा का दर्शन होता है।

पंडित वसंतराव गाडगिल के कार्य की पहचान

पंडित वसंतराव गाडगिल प्रत्येक वर्ष पुणे में सार्वजनिक रूप से ऋषिपंचमी मनाते थे । पुणे और पुणे के बाहर के 80 वर्ष से ऊपर के विभिन्न क्षेत्रों में रचनात्मक कार्य करने वाले तपस्वियों, विद्वानों, प्रतिष्ठित व्यक्तियों का वे सम्मान करते थे । वे अब तक अपना स्वागत भाषण संस्कृत में देते थे । वह पिछले ४४ वर्षों से बिना किसी रुकावट के इस गतिविधि का आयोजन कर रहे थे। उन्होंने अमेरिका, अफ्रीका जाकर संस्कृत भाषा का प्रचार-प्रसार किया।

वर्ष २०१० में प्रभाकर जोशी द्वारा डाॅ. भीमराव अंबेडकर की पहली संस्कृत चरित्र कथा ‘भीमायनम’ वसंतराव गाडगिल की ‘शारदा गौरव ग्रंथमाला’ श्रृंखला के तहत लिखी गई थी। विनायक सावरकर की जीवन गाथा में वसंतराव गाडगिल ने जी.बी. पलसुले की संस्कृत कविता भी प्रकाशित की थी ।

संस्कृत विद्वान पंडित वसंतराव गाडगिल संस्कृत साहित्य, नाटक और भाषा विज्ञान में एक महत्वपूर्ण व्यक्ति थे। उनके शोध कार्य और साहित्यिक योगदान के लिए उन्हें ‘महाकवि कालिदास संस्कृत व्रती’ पुरस्कार से सम्मानित किया गया था।

शतक से चूके ! – डॉ. सच्चिदानंद शेवड़े, एक कट्टर हिन्दू भक्त, लेखक और व्याख्याता

डॉ. सच्चिदानंद शेवड़े

पूरे घर में बिखरी हुई किताबें, घर में खड़ी अनन्य किताबों का ढेर, दीवारों के बजाय छत तक दिखाई देने वाली किताबें! इस प्रकार उन्होंने अपना सम्पूर्ण जीवन संस्कृत भाषा के प्रचार-प्रसार के लिए समर्पित कर दिया तथा सदा संस्कृत से बात करते रहे, वरिष्ठ संस्कृत विशेषज्ञ, ‘ शारदा ज्ञानपीठम के संपादक, वरिष्ठ पत्रकार, हिंदू धर्म शास्त्र के विद्वान, पुणे में कई धार्मिक-सामाजिक और शैक्षणिक संस्थानों के मार्गदर्शक, एक चलता-फिरता विश्वविद्यालय, एक महान युग के साक्षी, विशाल जीवनपट आत्मकथा के माध्यम से क्रम से प्रसाद मासिक से प्रस्तुत करने वाले , समय-समय पर मार्गदर्शक रहने वाले, शताब्दी पूर्ण करने से रह गए पं. वसंतराव गाडगिल !

– डॉ. सच्चिदानंद शेवड़े, एक कट्टर हिन्दू भक्त, लेखक और व्याख्याता