सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. जयंत आठवलेजी के ओजस्वी विचार
जातिवाद के कारण हिन्दुओंकी अधोगति हो रही है !
‘पूर्व के युगों में हिन्दू सोचते थे ‘कृण्वन्तो विश्वम् आर्यम् ।’, अर्थात ‘अखिल विश्व को सुसंस्कृत बनाएंगे ।’ अत: वे पूरे विश्व का विचार करते थे । संत ज्ञानेश्वर महाराज ने भी कहा है, ‘यह विश्व ही मेरा घर है । इसके विपरीत आज कलियुग में हिन्दुओं को, पूरे विश्व के छोडो, अत्याचार से पीडित भारत के हिन्दू भी अपने नहीं लगते । उनके लिए हिन्दू धर्म की तुलना में जाति महत्त्वपूर्ण है ! इसलिए हिन्दुओं की तथा भारत की प्रत्येक क्षेत्र में परम अधोगति हुई है ।’
विज्ञान द्वारा मिली जानकारी की मर्यादा एवं सर्वोच्च स्तर का ज्ञान देनेवाला अध्यात्मशास्त्र !
‘अध्यात्मशास्त्र में १४ विद्या और ६४ कला, अर्थात विश्व के सभी विषय होते हैं ।
विश्व को जानने की विज्ञान और अध्यात्म की क्षमता: आधुनिक विज्ञान केवल दृश्य स्वरूप ग्रह-तारों के विषय में ही थोडी बहुत जानकारी दे सकता है । इसके विपरीत अध्यात्मशास्त्र सप्तलोक और सप्तपाताल के सूक्ष्म जगत की जानकारी देता है ।
नेताओं की सीमा !
‘देवस्थान तथा तीर्थक्षेत्रों में बिना बुलाए सहस्रों लोग आते हैं, जबकि नेताओं को पैसे देकर लोगों को सभा में बुलाना पडता है !’
– सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. जयंत आठवले