बलि प्रतिपदा का महत्त्व !
बलि प्रतिपदा कैसे मनाएं ?
बलि प्रतिपदा के दिन भूमि पर पंचरंगी रंगोली द्वारा बलि एवं उनकी पत्नी विंध्यावली के चित्र बनाकर उनकी पूजा करते हैं । इसके पश्चात बलि के नाम पर दीप एवं वस्त्र का दान करते हैं । इस दिन प्रातःकाल अभ्यंगस्नान करने के उपरान्त स्त्रियां अपने पति की आरती उतारती हैं । दोपहर को मिष्ठान्नयुक्त भोजन बनाकर ब्राह्मणभोज करते हैं । इस पूजा का उद्देश्य है कि बलि राजा पूरे वर्ष अपनी शक्तियों से पृथ्वी के जीवों को कष्ट न दें एवं अन्य अनिष्ट शक्तियों को शांत रखें । इस दिन लोग नए वस्त्र धारण कर पूरा दिन आनंदपूर्वक व्यतीत करते हैं ।
– श्री. चेतन राजहंस, राष्ट्रीय प्रवक्ता, सनातन संस्था.
‘बलि राज्य’ एवं उससे संबंधित कथा !
कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा, बलिप्रतिपदा के रूप में मनाई जाती है । इस दिन भगवान श्रीविष्णु ने दैत्यराज बलि को पाताल में भेजकर उसकी अतिदानशील वृत्ति के कारण सृष्टि की होनेवाली हानि रोकी । बलिराजा की अतिउदारता के परिणामस्वरूप अपात्र लोगों के हाथ में संपत्ति चली गई तथा सभी ओर त्राहि-त्राहि मच गई । तब भगवान श्रीविष्णु ने वामन अवतार लेकर राजा बलि से ३ पग भूमि का दान मांगा । तदुपरांत वामनदेव ने विराट रूप धारण कर दो पगों में ही संपूर्ण पृथ्वी और अंतरिक्ष नाप लिया । तीसरा पैर रखने के लिए राजा बलि ने उनके सामने अपना मस्तक किया । भगवान वामन ने राजा बलि को पाताल में भेजते समय वरदान मांगने के लिए कहा । राजा बलि ने वर्ष में तीन दिन पृथ्वी पर बलि राज्य होने का वरदान मांगा । वे तीन दिन हैं नरकचतुर्दशी, दिवाली की अमावस्या तथा बलिप्रतिपदा । तब से इन दिनों को ‘बलि राज्य’ कहा जाता है ।
धर्मशास्त्र कहता है कि बलि राज्य में धर्मशास्त्र द्वारा बताए निषिद्ध कर्म न करें, उदा. अभक्ष्यभक्षण (मांसाहार), अपेयपान (निषिद्ध पेय अर्थात मद्यसेवन) और अगम्यागमन (वेश्यागमन) निषिद्ध कर्म हैं ।
बलि के उदाहरण से बोध लें !
बलि को देवत्व प्राप्त हुआ !
बलि राजा ने राक्षस कुल में जन्म लेकर भी अपने पुण्यकर्म से वामनदेव की कृपा प्राप्त की । उन्होंने ईश्वरीय कार्य के रूप में जनताकी सेवा की । वे सात्त्विक वृत्ति के एवं दानी राजा थे । इस उदाहरण से स्पष्ट होता है कि प्रत्येक मनुष्य आरंभ में अज्ञानवश बुरे कर्म करता है; परन्तु ज्ञान एवं ईश्वरीय कृपा के कारण वह देवत्व को प्राप्त कर सकता है । निर्भयता से सत्यकर्म का पालन करने पर उसे मृत्यु का भय ही नहीं रहता । यम भी उसका मित्र एवं बंधु बन जाता है ।
बलि राजा समान सर्वस्व अर्पण करें !
भगवान ने वामन अवतार में दिखाया कि वे सर्वस्व अर्पण करनेवाले का दास बनने के लिए स्वयं ही तत्पर रहते हैं । वास्तव में बलि असुर था, तब भी उसकी उदारता के कारण और उसके द्वारा भगवान को अपना सर्वस्व अर्पण करने के कारण, भगवान ने उसका उचित मार्गदर्शन कर उसके जीवन की कायापलट दी । उसका उद्धार किया । उसके राज्य में असुर वृत्ति के लिए पोषक भोगमय विचारों को नष्ट कर, उस स्थान पर त्याग की भावना रखनेवाली जनता को दैवीय विचार देकर सुख एवं समृद्धि का जीवन प्रदान किया ।
– श्री. चेतन राजहंस, राष्ट्रीय प्रवक्ता, सनातन संस्था.