लक्ष्मीपूजन की महिमा !
सामान्यतः अमावस्या अशुभ मानी जाती है; परंतु दिवाली की अवधि में अमावस्या भी शरद पूर्णिमा अर्थात कोजागरी पूर्णिमा समान ही कल्याणकारी और समृद्धिदर्शक होती है । इस दिन श्री लक्ष्मीपूजन और अलक्ष्मी नि:सारण इत्यादि धार्मिक विधियां की जाती हैं ।
दिवाली के समय इस दिन धन-संपत्ति की अधिष्ठात्रीदेवी श्री महालक्ष्मी का पूजन करने का नियम है । दिवाली की अमावस्या को मध्यरात्रि के समय श्री लक्ष्मीदेवी का आगमन सद्गृहस्थों के घर होता है । घर को पूर्णतः स्वच्छ, शुद्ध और सुशोभित कर दिवाली मनाने से श्री लक्ष्मीदेवी प्रसन्न होती हैं और वहां कायमस्वरूपी निवास करती हैं । इसलिए इस दिन श्री लक्ष्मीदेवी का पूजन करते हैं और दीप लगाते हैं । संभवत: श्री लक्ष्मीपूजन की विधि पत्नीसहित की जाती है । इस दिन माता लक्ष्मी और कुबेर की पूजा की जाती है । देवी लक्ष्मी धन की देवी हैं और कुबेर संपत्ति के कोषाध्यक्ष हैं ।
लक्ष्मीदेवी कहां वास करती हैं ?
पुराणों में कहा गया है कि कार्तिक अमावस्या की रात लक्ष्मीदेवी सर्वत्र संचार करती हैं । वे अपने निवास के लिए योग्य स्थान ढूंढती हैं । जहां स्वच्छता, शोभा और धार्मिकता दिखाई देती है, वहीं वे आकृष्ट होती हैं । इसके अतिरिक्त जिस घर में चरित्रवान, कर्तव्यदक्ष, संयमी, धर्मनिष्ठ, भगवद्भक्त और क्षमाशील पुरुष एवं गुणवती और पतिव्रता स्त्रियां निवास करती हैं, ऐसे घर में लक्ष्मीदेवी का वास होता है ।
अलक्ष्मी का नि:सारण कैसे किया जाता है ?
लक्ष्मीदेवी के आगमन के लिए अलक्ष्मी का नि:सारण किया जाता है । अलक्ष्मी अर्थात दरिद्रता, दीनता और संकट । निःसारण का अर्थ है बाहर निकालना । लक्ष्मीपूजन के दिन नई झाडू खरीदी जाती है । उसे ‘लक्ष्मी’ मानकर सायंकाल में उसका पूजन करते हैं । उसकी सहायता से घर को झाड-बुहार कर, घर का कूडा-कचरा सूप में भरते हैं । यह कूडा-कचरा अलक्ष्मी का प्रतीक है । उसे घर के बाहर फेंका जाता है । अन्य किसी भी दिन मध्यरात्रि में घर झाड-बुहार कर, कचरा नहीं निकाला जाता । कचरा बाहर फेंकने के उपरांत घर के कोनों में जाकर सूप बजाते हैं ।
दिवाली का आंतरिक आनंद लेने के लिए इस दिन स्वयं में अवगुणरूपी अलक्ष्मी दूर करने का निश्चय कर ‘सद्गुणरूपी लक्ष्मी प्राप्त हो’, ऐसी प्रार्थना करनी चाहिए ।
– (सद्गुरु) डॉ. चारुदत्त पिंगळे, राष्ट्रीय मार्गदर्शक, हिन्दू जनजागृति समिति.