दीपावली : एक आनंदपर्व
दीपावली प्रकाश का त्योहार है । ‘तमसो मा ज्योतिर्गमय’, अर्थात अंधकार से प्रकाश की ओर ले जानेवाला त्योहार है; इसलिए उसे ‘ज्योतिपर्व’ भी कहते हैं । भारत के सभी प्रांतों में यह त्योहार मनाया जाता है । प्रत्येक प्रांत की विशेषता भिन्न है । इसलिए इस त्योहार को मनाने मेंं विविधता पाई जाती है । ऐसा होने पर भी सभी का उद्देश्य एक ही है । यह त्योहार मनाने की पद्धति में भले ही भिन्न हो; परंतु उसके पीछे भावना एक ही है । आचार में भले ही परिवर्तन हो; परंतु विचार एक ही है । इस दीपोत्सव का मुख्याधार ‘भारतीय संस्कृति’ ही है । यह संस्कृति मूलत: वैदिक संस्कृति है । वह वेदों के तत्त्वज्ञान पर आधारित है । इस संस्कृति का मूलमंत्र ‘तमसो मा ज्योतिर्गमय ।’ ही है । प्रकाश ज्ञान का स्वरूप है । तम अज्ञान का स्वरूप है । प्रकाश अर्थात दीपज्योति ! दीपों का उत्सव अर्थात दीपावली ! यह त्योहार अर्थात प्रकाशपर्व है ! (भारत का नामकरण भी इस प्रकाशपर्व से ही हुआ है । ‘भा’ अर्थात तेज, ‘भा’ अर्थात प्रकाश । उस तेज में, प्रकाश में रत रहनेवाला, रमनेवाला अर्थात भारत ! तेज की, प्रकाश की परंपरा टिकी रहे; इसीलिए ‘दीपावली’ मनाई जाती है । इस प्रकाशपर्व अर्थात आनंदपर्व दीपावली का जनमानस में विलक्षण आकर्षण है । कृतज्ञता का संस्कार करनेवाला यह लोकप्रिय त्योहार पारिवारिक स्नेह का संवर्धन करता है । नाते-रिश्ते एवं स्नेहसंबंध संजोनेवाला यह ‘त्योहारराज’ है ।
भगवान महावीर का महापरिनिर्वाण, विक्रमादित्य का सिंहासनारोहण, गुप्तकाल का उदय, स्वामी रामतीर्थजी का जन्म और निधन, स्वामी दयानंद सरस्वतीजी का निधन इत्यादि संस्मरणीय घटनाएं दिवाली से संलग्न हैं । दिवाली के त्योहार को प्राचीन परंपरा मिली है । दिवाली का त्योहार भगवान श्रीकृष्ण का आत्मज्ञान, भगवान महावीर का पुरुषार्थ, भगवान श्रीकृष्ण का मुक्तिआंदोलन, स्वामी रामतीर्थजी की आत्मसाधना, साधु-संतों के, योगीजनों के ज्योतिर्दर्शन का स्मरण करवाता है ।
– प्रा. रवींद्र धामापूरकर, मालवण (साभार : ‘आदिमाता’, दीपावली विशेषांक २०११) à