मन एवं बुद्धि से परे अर्थात सूक्ष्म को जानने की तीव्र क्षमता रखनेवाली श्रीसत्शक्ति (श्रीमती) बिंदा नीलेश सिंगबाळजी !
साधकों को श्रीसत्शक्ति (श्रीमती) बिंदा नीलेश सिंगबाळजी में विद्यमान दिव्यता की हुई प्रतीति !
साधना आरंभ करने के उपरांत व्यक्ति के चैतन्य में वृद्धि होना, उसका आध्यात्मिक स्तर बढना आदि के साथ ही सूक्ष्म आयाम को जानने की उसकी क्षमता भी बढ जाती है । श्रीसत्शक्ति (श्रीमती) बिंदा सिंगबाळजी द्वारा साधना में विहंगम मार्ग से प्रगति करते समय उनमें सूक्ष्म को जानने की क्षमता भी उत्पन्न हुई । सामनेवाले व्यक्ति के द्वारा बिना बताए भी उसकी स्थिति को पहचान लेना, साधक के सामने न होते हुए भी उसे आध्यात्मिक कष्ट होने की बात प्रतीत होने के कारण उसका कुशलक्षेम पूछना तथा संबंधित साधक अथवा साधिका को वास्तव में ही कष्ट होना आदि अनुभूतियों के माध्यम से साधक श्रीसत्शक्ति (श्रीमती) बिंदा सिंगबाळजी के सूक्ष्म सूक्ष्म आयाम को जानने की क्षमता की प्रतीति लेते रहते हैं । साथ ही साधक द्वारा सूक्ष्म से श्रीसत्शक्ति (श्रीमती) बिंदा सिंगबाळजी को उसे हो रहे कष्ट बताने पर, कुछ समय उपरांत कष्ट अल्प होने की प्रतीति भी साधकों ने ली है । पहले सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी से प्रार्थना या आत्मनिवेदन करने पर ऐसी अनुभूतियां होती थीं । |
१. साधिका की आंखों को होनेवाला कष्ट पहले ही जानकर उसे आध्यात्मिक स्तर के करने के लिए कहना !
१ अ. साधिका को कष्ट न होते हुए भी श्रीसत्शक्ति (श्रीमती) बिंदा सिंगबाळजी के द्वारा ‘क्या तुम्हें आंखों का कोई कष्ट हो रहा है ?’, ऐसा पूछना : ‘एक बार मैं श्रीसत्शक्ति (श्रीमती) बिंदा नीलेश सिंगबाळजी के पास गई थी, उस समय उन्होंने मुझे सामने खडे कर मेरा निरीक्षण कर पूछा, ‘‘क्या तुम्हें कोई कष्ट हो रहा है ?’’ उस समय मुझे कोई कष्ट नहीं हो रहा था; इसलिए मैंने उनसे कहा, ‘नहीं’ । उसके उपरांत उन्होंने मुझसे कहा, ‘क्या तुम्हारी आंखों को कोई कष्ट हो रहा है ?’ उसपर भी मैंने उनसे कहा, ‘नहीं’ ।
१ आ. श्रीसत्शक्ति (श्रीमती) बिंदा सिंगबाळजी के बताए अनुसार साधिका के द्वारा सद्गुरु डॉ. गाडगीळजी से नामजपादि उपचार पूछकर उन्हें करना : एक सप्ताह उपरांत श्रीसत्शक्ति (श्रीमती) बिंदा सिंगबाळजी ने एक साधिका से मुझे संदेश भेजा, ‘तुम सद्गुरु डॉ. मुकुल गाडगीळजी से उपचार पूछो तथा वे जैसा कहें, वैसे उपचार करो ।’ उसके अनुसार मैंने सद्गुरु गाडगीळजी के बताए अनुसार २ सप्ताह तक नामजपादि उपचार किए । उसके उपरांत मैंने सद्गुरु मुकुल गाडगीळजी से पूछा, ‘क्या मुझे और उपचार करने पडेंगे ?’ उसपर सद्गुरु गाडगीळजी ने कहा, ‘‘अब तुम्हें उपचारों की आवश्यकता नहीं है ।’
१ इ. लकडी के पलंग का सिरा लगकर आंख के पास घाव होना तथा ‘भगवान की कृपा से ही आंख बच गई’, यह ध्यान में आकर कृतज्ञता व्यक्त होना : दूसरी रात १०.३० बजे मैं तथा मेरी बहन श्रीमती श्रद्धादीदी (श्रीमती श्रद्धा निंबाळकर) कक्ष से कुछ समान निकाल रही थीं । उस समय मुझे केश में लगानेवाला ‘बो’ नीचे गिरा दिखाई दिया । उसे उठाने के लिए मैं नीचे झुकी, जिससे लकडी के पलंग का सिरा मेरी बाईं आंख पर जोर से लगा । मुझे इतनी पीडा हो रही थी, ‘मानो वह सिरा मेरी आंख में ही घुस गया हो ।’ उस समय आंख के एक ओर से २ मि.मी. की दूरी पर घाव हुआ था । वहां की लगभग ६ मि.मी. त्वचा फटकर रक्त का प्रवाह नीचे ठोडी तक बह रहा था । उस समय मेरे मन में यह विचार आया, ‘पलंग का सिरा मेरी आंख में ही लग जाता; परंतु भगवान की कृपा से वह सिरा आंख के निकट लगा तथा मेरी आंख बच गई ।’ उस समय मुझसे भगवान के चरणों में कृतज्ञता व्यक्त हुई ।
१ ई. ‘साधिका की आंखों को कष्ट होगा’, श्रीसत्शक्ति (श्रीमती) बिंदा सिंगबाळजी के ध्यान में यह बात पहले ही आने से उन्होंने साधिका को उससे पूर्व ही उपचार करने के लिए कहा’, यह बात साधिका के ध्यान में आना : सद्गुरु राजेंद्र शिंदेजी को इस विषय में बताने पर उन्होंने मुझे, ‘तुम्हारी आंखों पर बहुत कष्टदायक आवरण आया है’, ऐसा बताकर नामजपादि उपचार करने के लिए कहा । नामजपादि उपचार करते समय मेरे ध्यान में आया, ‘श्रीसत्शक्ति (श्रीमती) बिंदा सिंगबाळजी ने मुझे, ‘क्या तुम्हारी आंखों को कोई कष्ट हो रहा है ?’, ऐसा पूछा था, साथ ही उन्होंने मुझे नामजपादि उपचार करने के लिए कहा था । इससे श्रीसत्शक्ति (श्रीमती) सिंगबाळजी ने ‘मेरी आंखों को कष्ट होगा’, इसे पहले ही भांप लिया था तथा उसके कारण ही उन्होंने ‘मुझे अधिक कष्ट न हो’, इसके लिए पहले ही नामजपादि उपचार करने के लिए कहा था ।’
दूसरे दिन अर्थात ७.५.२०२० को दोपहर तक मेरी आंखों के पास का घाव भरता हुआ दिखाई दिया । अन्य समय पर घाव भरने में ३-४ दिन लगते हैं; परंतु यह घाव एक ही दिन में भर गया ।’
२. साधिका द्वारा मन से ही उसे थकान होने की बात कहना; परंतु मन से कही गई बात श्रीसत्शक्ति (श्रीमती) बिंदा सिंगबाळजी तक पहुंचकर उनके द्वारा स्थूल से आध्यात्मिक उपचार बताना
२ अ. साधिका के द्वारा मन से ही श्रीसत्शक्ति (श्रीमती) बिंदा सिंगबाळजी से उसे थकान होने की बात कहना, उसके उपरांत उनके द्वारा उपचार के लिए जल भेजना तथा उस जल से उपचार करने पर साधिका को स्वस्थ प्रतीत होना : ‘१.५.२०२० को मुझे बहुत थकान थी तथा मेरे पैरों में भी बहुत पीडा थी । उसके कारण मैं एक आपातकालीन सेवा नहीं कर पा रही थी; इसलिए मैंने मन से ही इस विषय में श्रीसत्शक्ति (श्रीमती) बिंदा सिंगबाळजी को बताया । उसके कुछ ही समय उपरांत एक साधिका श्रीसत्शक्ति (श्रीमती) बिंदा सिंगबाळजी द्वारा भेजा जल (टिप्पणी १) लेकर मेरे पास आई । उस समय मेरे ध्यान में आया कि गुरु हमारे मन के विचार पहचान लेते हैं तथा ये विचार उनतक पहुंचते हैं, साथ ही गुरु उसकी प्रतीति भी देते रहते हैं ।’ इस अनुभूति से भगवान ने मुझे ‘श्रीसत्शक्ति (श्रीमती) बिंदा सिंगबाळजी की सूक्ष्म से समझने की क्षमता तथा गुरु की सर्वज्ञता’ की प्रतीति दी ।
टिप्पणी १ – उपचारों का जल : श्रीसत्शक्ति (श्रीमती) सिंगबाळजी के स्पर्श से जल चैतन्यमय बन जाता है । तीव्र आध्यात्मिक कष्ट से ग्रस्त साधक जब उपचारों के लिए इस जल का उपयोग करते हैं, उससे उनका आध्यात्मिक कष्ट अल्प हो जाता है; इसलिए श्रीसत्शक्ति (श्रीमती) बिंदा सिंगबाळजी साधकों के लिए थोडा जल भेजती हैं । साधक उपचारों के लिए दिए इस पानी में थोडा गरम पानी मिलाते हैं तथा उसमें अपने पैर डूबोकर २० मिनट नामजप करते हैं ।
– कु. मेघा चव्हाण, सनातन आश्रम, रामनाथी, गोवा (२३.५.२०२०)
सूक्ष्म : व्यक्ति के स्थूल अर्थात प्रत्यक्ष दिखनेवाले अवयव नाक, कान, नेत्र, जीभ एवं त्वचा, ये पंचज्ञानेंद्रिय हैैं । जो स्थूल पंचज्ञानेंद्रिय, मन एवं बुद्धि के परे है, वह ‘सूक्ष्म’ है । इसके अस्तित्व का ज्ञान साधना करनेवाले को होता है । इस ‘सूक्ष्म’ ज्ञान के विषय में विविध धर्मग्रंथों में उल्लेख है । |