साधना में विहंगम मार्ग से प्रगति करनेवाली एकमात्र श्रीसत्शक्ति (श्रीमती) बिंदा नीलेश सिंगबाळजी !
वर्ष २००८ से वर्ष २०२२ की अवधि में श्रीसत्शक्ति (श्रीमती) बिंदा सिंगबाळजी के छायााचित्रों में आए परिवर्तनों के द्वारा उजागर हुई उनकी दैवी यात्रा !
१. वर्तमान समय में छोटे से कलियुग के अंत में फैले अधर्म का नाश करधर्मराज्य (हिन्दू राष्ट्र) की स्थापना करने हेतु ईश्वर द्वारा ३ गुरुओं के रूप में अपने अंशावतारों को जन्म देनाधर्मसंस्थापना के कार्य हेतु अवतारों का जन्म होता है । त्रेतायुग के अंत में रामावतार हुआ तथा द्वापरयुग के अंत में कृष्णावतार हुआ; ये दोनों पूर्णावतार थे । किसी युग के अंत में जब अधर्म का प्रकोप बढ जाता है, उस समय अधर्म का नाश कर धर्म की स्थापना करने हेतु प्रत्यक्ष अवतार जन्म लेते हैं । वर्तमान समय में ४ लाख वर्ष के कलियुग के केवल ५ सहस्र वर्ष ही पूर्ण हुए हैं । इसलिए वर्तमान समय में पूर्णावतार होना संभव नहीं है; जबकि अंशावतार होना संभव है । वर्तमान समय में कलियुग के अंतर्गत एक छोटा सा (कुछ सहस्र वर्षाें का) कलियुग समाप्त होकर एक छोटा सा सत्ययुग आरंभ होने के काल के कारण अंशावतार का जन्म संभव हो पाया है । सप्तर्षि की नाडी-पट्टिकाओं से ‘वर्तमान समय में छोटे से कलियुग के अंत में फैले अधर्म का नाश कर धर्म की (हिन्दू राष्ट्र की) स्थापना करने हेतु ईश्वर ने सनातन संस्था के ३ गुरुओं के रूप में अपने अंशावतारों को जन्म देकर भेजा है ।’, ऐसा ध्यान में आया । इन तीनों गुरुओं का समष्टि कार्य भी इसी प्रकार से चल रहा है । २. पूर्णावतारी व्यक्तियों के गुण उनके बचपन से ही समाज के सामने आ जाते हैं; परंतु अंशावतारी व्यक्तियों के संदर्भ में उनके द्वारा कार्य करने का समय आने पर ही उनकी दिव्यता प्रकट होने लगती हैश्रीराम एवं श्रीकृष्ण का जन्म होने पर उनके अवतार होने की बात सामान्य लोगों को भले ही ज्ञात न हो; परंतु उनके बचपन से ही उनकी बाल-लीलाएं समाज के ध्यान में आने लगीं । उनके द्वारा बचपन में किया गया असुरों का वध भी धर्मसंस्थापना का ही भाग था । इसका अर्थ बचपन से ही उनके गुण समाज के ध्यान में आने लगे थे । इसके विपरीत, अंशावतार में भले ही ईश्वर के गुण हों; परंतु वे उनके बचपन में लोगों के सामने नहीं आते । अंशावतारी व्यक्तियों के बडे होने पर तथा जब समाज के सामने उनके अवतरित होने का समय आता है, तब वे गुण लोगों के ध्यान में आने लगते हैं । इसका अर्थ ईश्वर को जब उनके द्वारा कार्य करवाने का समय आता है, तभी उनमें विद्यमान ईश्वरत्व प्रकट होने लगता है । उनके गुण सामने आने लगते हैं । अतः कुछ वर्षाें की अवधि में ऐसे व्यक्तियों के रूप में आया परिवर्तन सभी को स्पष्टता से दिखाई देता है, साथ ही उनका कार्य भी लोगों के सामने आता है । |
३. श्रीसत्शक्ति (श्रीमती) बिंदा सिंगबाळजी की साधना के घटकों में वर्ष २००८ से वर्ष २०२२ की अवधि में हुए परिवर्तन
३ अ. भाव, अंतर्मन से साधना, साधना की लगन, अहं एवं अनिष्ट शक्तियों के कष्ट जैसे घटक : व्यक्ति में भाव, अंतर्मन से साधना, साधना की लगन तथा अहं, साधना के इन घटकों के आधार पर उसकी वर्तमान साधना की परीक्षा होती है । साधना न करनेवाले सामान्य व्यक्तियों में भाव, अंतर्मन से साधना तथा साधना की लगन, ये घटक ० (शून्य) प्रतिशत होते हैं अर्थात होते ही नहीं, साथ ही उनमें अहं अधिक अर्थात ३० प्रतिशत होता है । वर्तमान कलियुग में साधना करनेवाले व्यक्तियों में भाव, अंतर्मन की साधना तथा साधना की लगन, इन घटकों का स्तर अधिकतम ३० प्रतिशत होता है । इससे सामान्य व्यक्ति के लिए साधना कर, इन तीन घटकों का स्तर ३० प्रतिशत तक बढाना तथा अहं को ३० प्रतिशत से अल्प करते जाना साध्य करना होता है । किसी व्यक्ति को अनिष्ट शक्तियों का जो कष्ट होता है, वह प्रारब्ध के अनुसार होता है । अनिष्ट शक्तियों का कष्ट यदि अधिक हो, तो उस व्यक्ति की साधना इन कष्टों को दूर करने में ही व्यय होती है ।
३ आ १. श्रीसत्शक्ति (श्रीमती) बिंदा सिंगबाळजी का आध्यात्मिक स्तर ६० प्रतिशत से अल्प होना (वर्ष २००८ का छायाचित्र) : उस समय श्रीसत्शक्ति (श्रीमती) बिंदा सिंगबाळजी को बडे स्तर पर अनिष्ट शक्तियों का कष्ट था । इसलिए उनके उस छायाचित्र की ओर अधिक समय तक नहीं देख सकते ।
३ आ २. श्रीसत्शक्ति (श्रीमती) बिंदा सिंगबाळजी का ६१ प्रतिशत आध्यात्मिक स्तर प्राप्त करना (वर्ष २०११ का छायाचित्र) : श्रीसत्शक्ति (श्रीमती) बिंदा सिंगबाळजी पहले अन्य सेवाएं करती थीं । आगे जाकर वे आश्रम के साधकों की साधना का दायित्व लेने लगीं । उसके कारण वे व्यष्टि स्तर की साधना से समष्टि स्तर की साधना मार्ग पर अग्रसर हुईं । उस समय उनकी २५ प्रतिशत समष्टि साधना होने लगी । उक्त सारणी से यह ध्यान में आता है कि उस समय उनमें विद्यमान अहं अल्प हुआ, साथ ही उन्हें होनेवाला अनिष्ट शक्तियंों का कष्ट भी थोडा अल्प हुआ । उनके छायाचित्रों से ये परिवर्तन ध्यान में आते हैं ।
३ आ ३. श्रीसत्शक्ति (श्रीमती) बिंदा सिंगबाळजी द्वारा संतपद प्राप्त किया जाना (वर्ष २०१३ का छायाचित्र) : आगे जाकर श्रीसत्शक्ति (श्रीमती) बिंदा सिंगबाळजी सर्वत्र के साधकों की साधना का दायित्व लेने लगीं । वे साधकों का सत्संग लेने लगीं । अब उनकी ५० प्रतिशत समष्टि साधना होने लगी; जिसके कारण उन्हें संतपद प्राप्त हुआ । उस समय उनके अंतर्मन की साधना, साथ ही साधना की लगन बढ गई थी । साधना में ‘लगन’ का बडा महत्त्व होता है । संतपद प्राप्त होने पर उनके आनंद में वृद्धि हुई, साथ ही उनके चेहरे पर तेज प्रतीत होकर उनकी त्वचा हल्की पीली दिखाई देती है । संतपद प्राप्त होने पर उन्हें होनेवाला अनिष्ट शक्तियों का कष्ट बडी मात्रा में घट गया, यह भी उक्त सारणी से, साथ ही छायाचित्र में दिखाई देनेवाली आंखों से ध्यान में आता है ।
३ आ ४. श्रीसत्शक्ति (श्रीमती) बिंदा सिंगबाळजी द्वारा सद्गुरुपद प्राप्त करना (वर्ष २०१६ का छायाचित्र) : आगे जाकर श्रीसत्शक्ति (श्रीमती) बिंदा सिंगबाळजी सर्वत्र के साधकों की साधना में मार्गदर्शन करने लगीं, जिससे उन साधकों की भी साधना बढने लगी, साथ ही सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी को अपेक्षित अध्यात्मप्रसार का (हिन्दू राष्ट्र की स्थापना का) कार्य केवल भारत में ही नहीं, अपितु संपूर्ण विश्व में आरंभ हुआ । इस प्रकार श्रीसत्शक्ति (श्रीमती) बिंदा सिंगबाळजी की समष्टि साधना बढकर ७५ प्रतिशत होने से वे सद्गुरुपद पर विराजमान हुईं । उस समय उनमें साधना की लगन और बढी, साथ ही उनके अहं का स्तर और अधिक अल्प हुआ । उस समय के उनके छायाचित्र की ओर देखा जाए, तो उनसे बडे स्तर पर आनंद प्रक्षेपित होता हुआ प्रतीत होता है, साथ ही अब उन्हें अनिष्ट शक्तियों का कष्ट नहीं है, यह भी ध्यान में आता है । उसके कारण अब उनकी आंखों की ओर सहजता से देखा जा सकता है । उनका चेहरा और अधिक तेजस्वी हुआ है, यह भी ध्यान में आता है ।
३ आ ५. सप्तर्षि द्वारा ‘श्रीसत्शक्ति’ के रूप में घोषित करना (वर्ष २०२२ का छायाचित्र) : सप्तर्षि ने वर्ष २०१९ में श्रीसत्शक्ति (श्रीमती) बिंदा सिंगबाळजी एवं श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) अंजली गाडगीळजी को सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी की ‘आध्यात्मिक उत्तराधिकारिणियां’ घोषित किया । उसके कारण उनके लिए किसी प्रकार की व्यष्टि साधना शेष न रहने से उनकी १०० प्रतिशत समष्टि साधना होने लगी । उसके उपरांत सप्तर्षि ने वर्ष २०२० में श्रीमती बिंदा सिंगबाळजी को ‘श्रीसत्शक्ति’ तथा श्रीमती अंजली गाडगीळजी को ‘श्रीचित्शक्ति’ की उपाधि प्रदान की । वर्ष २०२२ की श्रीसत्शक्ति (श्रीमती) बिंदा सिंगबाळजी के छायाचित्र की ओर देखने पर उनमें विद्यमान ‘श्रीसत्शक्ति’, इस अवतारत्व के लिए यथार्थ निर्मल दिव्यता बडी सहजता से हमारे ध्यान में आती है । उस समय उनमें विद्यमान भाव, अंतर्मन की साधना तथा साधना की लगन, इन घटकों ने अति उच्च स्तर प्राप्त किया, सारणी से यह ध्यान में आता है । यही उनमें विद्यमान देवत्व है ! सप्तर्षि उनमें विद्यमान श्री महालक्ष्मीदेवी के अंश का सदैव उल्लेख करते हैं, साथ ही वे सदैव उनकी गुणविशेषताओं की भी प्रशंसा करते हैं ।
श्रीसत्शक्ति (श्रीमती) बिंदा सिंगबाळजी के दिए गए छायाचित्रों की ओर क्रमबद्ध पद्धति से देखने पर हमें उनकी साधना में हुई वृद्धि तथा उनमें अंतर्भूत अवतार बडी सहजता से ध्यान में आता है । इस अवतार को प्रकट करनेवाले, साथ ही उनके अवतरित अंतिम छायाचित्रों की ओर आकर्षित होकर हम मंत्रमुग्ध हो जाते हैं । यही है उस देवत्व का लक्षण !
४. कृतज्ञता
श्रीसत्शक्ति (श्रीमती) बिंदा सिंगबाळजी जैसे देवत्व से युक्त व्यक्तियों के छायाचित्रों में छिपा रहस्य उजागर होने के लिए शरणागतभाव ही आवश्यक है । इसके लिए मैं उनके छायाचित्रों का अध्ययन करने हेतु सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी के, साथ ही श्रीसत्शक्ति (श्रीमती) बिंदा सिंगबाळजी के चरणों में शरणागत हुआ; क्योंकि यह सेवा करना तो समुद्र का तल ढूंढने जैसा महा कठिन कार्य है; परंतु गुरुकृपा से मेरे लिए वह संभव हुआ, इसके लिए मैं सनातन के तीनों गुरुओं के चरणों में कोटि-कोटि कृतज्ञता व्यक्त करता हूं ।’
– (सद्गुरु) डॉ. मुकुल गाडगीळ, महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय, गोवा. (७.१०.२०२३) ॐ
सप्तर्षि द्वारा नाडी-पट्टिकाओं में सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. जयंत आठवलेजी, श्रीसत्शक्ति (श्रीमती) बिंदा सिंगबाळजी एवं श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) अंजली गाडगीळजी, सनातन के इन ३ गुरुओं का अवतारस्वरूप होने का रहस्योद्घाटन करनासप्तर्षि ने अनेक नाडी-पट्टिकाओं में सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. जयंत आठवलेजी, श्रीसत्शक्ति (श्रीमती) बिंदा सिंगबाळजी एवं श्रीचित्तशक्ति (श्रीमती) अंजली गाडगीळजी, सनातन संस्था के इन ३ गुरुओं की गुणविशेषताओं का, साथ ही हिन्दू राष्ट्र के संदर्भ में उनके कार्य का उल्लेख किया है । इसलिए ये तीनों गुरु कैसे अवतारस्वरूप हैं, इस विषय में हम साधकों को ज्ञात हुआ । यहां उन्हें दी उपाधियां सप्तर्षि ने ही प्रदान की हैं । इससे ध्यान में आता है कि डॉ. आठवलेजी विष्णुस्वरूप, श्रीमती बिंदा सिंगबाळजी एवं श्रीमती अंजली गाडगीळजी देवीस्वरूप हैं । साधकों को उस प्रकार से अनुभूतियां भी होती हैं । – (सद्गुरु) डॉ. मुकुल गाडगीळ, महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय, गोवा. |
बुरी शक्ति : वातावरण में अच्छी तथा बुरी (अनिष्ट) शक्तियां कार्यरत रहती हैं । अच्छे कार्य में अच्छी शक्तियां मानव की सहायता करती हैं, जबकि अनिष्ट शक्तियां मानव को कष्ट देती हैं । प्राचीन काल में ऋषि-मुनियों के यज्ञों में राक्षसों ने विघ्न डाले, ऐसी अनेक कथाएं वेद-पुराणों में हैं । ‘अथर्ववेद में अनेक स्थानों पर अनिष्ट शक्तियां, उदा. असुर, राक्षस, पिशाच को प्रतिबंधित करने हेतु मंत्र दिए हैं ।’ अनिष्ट शक्तियों से हो रही पीडा के निवारणार्थ विविध आध्यात्मिक उपचार वेदादि धर्मग्रंथों में वर्णित हैं । |