विजयादशमी

तिथि : आश्विन शुक्ल ९ (१२.१०.२०२४)

इतिहास एवं धार्मिक कृतियों का शास्त्र

विजयादशमी ही दशहरा है ! इस दिन श्री दुर्गादेवी ने महिषासुर से चल रहे युद्ध को केवल ९ दिनों में समाप्त कर उसका वध कियो । इसी दिन भगवान श्रीराम ने रावण का वध कर विजय प्राप्त की । दशहरा कैसे मनाना चाहिए ? दशहरे के दिन की जानेवाली धार्मिक कृतियां, साथ ही उस विषय में उठाई गई आपत्तियों तथा उनके खंडन को भी आज हम इस लेख से जानेंगे ।

१. दशहरा क्या है ?

‘आश्विन शुक्ल दशमी’ अर्थात विजयादशमी ! दशहरा शब्द की एक व्युत्त्पत्ति ‘दशहरा’ भी हैे । दश का अर्थ दस तथा हरा का अर्थ हारे हुए ! दशहरे के पूर्व के ९ दिनों में नवरात्रि में दसों दिशाएं देवी की शक्ति से भारित तथा संचारित होती हैं अर्थात दसों दिशाओं पर विजय प्राप्त हुई होती हैे । यह दिन ‘विजयादशमी’ अर्थात बुराई पर अच्छाई की विजय दर्शाता हैे । नवरात्रि समाप्त होने के तुरंत उपरांत यह दिन आता है; इसलिए इसे ‘नवरात्रि की समाप्ति का दिन’ भी मानते हैें । इस दिन सरस्वतीतत्त्व सगुण के आधिक्य भाव की निर्मिति से बीजरूपी अप्रकटावस्था धारण करता है; इसलिए इस दिन उनका क्रियात्मक पूजन एवं विसर्जन किया जाता हैे । साढे तीन मुहूर्तों में से एक, इस मुहूर्त पर किया गया कोई भी कर्म शुभफलदायक होता हैे ।

२. विजयादशमी का इतिहास

२ अ. कुबेरजी की ओर से अश्मंतक एवं शमी के वृक्षों पर स्वर्णमुद्राओं की वर्षा : विजयादशमी के दिन प्रभु श्रीराम के पूर्वज अयोध्याधीश रघु ने विश्वजीत यज्ञ किया थो । अपनी पूरी संपत्ति दान कर वे स्वयं पर्णकुटी में रहने लगे । इस संपत्ति में से कौत्स को १४ करोड स्वर्णमुद्रा चाहिए थीें । रघु कुबेरजी पर आक्रमण करने के लिए तैयार हुऐ । उस समय कुबेरजी अश्मंतक एवं शमी के वृक्षों पर सोने की वर्षा करते हैें । कौत्स उनमें से केवल १४ करोड स्वर्णमुद्राएं लेता हैे । शेष स्वर्णमुद्राएं प्रजाजन ले जाते हैें । उस काल से अर्थात त्रेतायुग से हिन्दू विजयादशमी महोत्सव मनाते हैं तथा दशहरे पर लोग एक-दूसरे को स्वर्ण के रूप में अश्मंतक के पत्ते देते हैें ।

२ आ. प्रभु श्रीराम की रावण पर विजय : त्रेतायुग में प्रभु श्रीराम ने रावण का वध कर विजय प्राप्त की, वह भी इसी दिन ! इस अभूतपूर्व विजय के कारण इस दिन को ‘विजयादशमी’ कहा जाता हैे ।

२ इ. पांडवों की कौरवों पर विजय : इसी दिन अज्ञातवास समाप्त होते ही पांडवों ने शक्तिपूजन कर शमी के वृक्ष पर रखे अपने शस्त्र पुनः लिए तथा विराट की गायों को भगाकर ले जानेवाली कौरव सेना पर आक्रमण कर विजय प्राप्त की !

२ ई. मराठाओं द्वारा शत्रु प्रदेश से स्वर्णमुद्राएं लाए जाने की घटना का प्रतीक : महाराष्ट्र राज्य में दशहरे के दिन मित्रों को ‘सोने’ के रूप में अश्मंतक के पत्ते बांटने की प्रथा हैे । इस प्रथा का भी ऐतिहासिक महत्त्व हैे । मराठा वीर जब युद्ध अभियान पर जाते थे, तब शत्रुओं का प्रदेश जीतने के उपरांत वे स्वर्णमुद्रा के रूप में संपत्ति घर लाते थे । ऐसे ये विजयी वीर जब अभियान से वापस आते थे, तब घर के द्वार पर उनकी पत्नी अथवा बहनें उनकी आरती उतारती थीें । उस समय वे शत्रुप्रदेश से लाई हुई संपत्ति की कोई मुद्रा उस आरती की थाली में रख देते थे । घर जाने पर लाई हुई संपत्ति को वे भगवान के सामने रखते थे । उसके उपरांत वे भगवान को तथा बडों को नमस्कार कर उनसे आशीर्वाद लेते थे । वर्तमान समय में भी सोने के रूप में अश्मंतक की पत्तियों को सोने के रूप में बांटने की उस प्रथा की स्मृति शेष रह गई हैे ।

२ उ. कृषि लोक महोत्सव : इस त्योहार को एक ‘कृषि लोकोत्सव’ के रूप में भी मनाया जाता थो । वर्षा ऋतु में बोई हुई पहली फसल घर पर आने पर किसान यह उत्सव मनाते थे । नवरात्रि में घटस्थापना के दिन घडे के नीचे की मिट्टी पर ९ अनाज बोए जाते हैं तथा दशहरे के दिन उन बीजों से फूटे अंकुरों को उखाडकर भगवान को समर्पित करते हैें । अनेक स्थानों पर खेत में लगाए चावल की बालियों को तोडकर उन्हें प्रवेशद्वार पर बंदनवार की भांति बांध देते हैें । यह प्रथा भी इस त्योहार का कृषि से संबंधित स्वरूप को ही व्यक्त करती हैे ।

३. त्योहार मनाने का स्वरूप

इस दिन सीमोल्लंघन, शमीपूजन, अपराजितापूजन एवं शस्त्रपूजन, ये ४ कृत्य करने होते हैें । अपराह्न समय में (दोपहर में) गांव की सीमा के बाहर ईशान्य दिशा की ओर लोग सीमोल्लंघन हेतु जाते हैं तथा जहां शमी अथवा अश्मंतक का वृक्ष होता है, वहां रुक जाते हैें । इसके उपरांत ‘शमी पाप का शमन करता हैे । शमी के कांटे फीके लाल रंग के होते हैें । शमी श्रीराम को प्रिय है तथा अर्जुन के बाणों को धारण करनेवाला हैे । ‘हे शमी, श्रीराम ने आपकी पूजा की हैे । मैं यथाशीघ्र विजययात्रा पर निकलनेवाला हूें । हे शमी, इसलिए आप मेरी इस यात्रा को सुगम तथा सुखद बनाएं’, आपसे हम यह प्रार्थना करते हैें ।

४. अश्मंतक का पूजन

यदि शमी वृक्ष उपलब्ध न हो, तो अश्मंतक के वृक्ष की पूजा की जाती हैे । यह पूजा करते समय निम्न मंत्र का उच्चारण करते हैं –

अश्मन्तक महावृक्ष महादोषनिवारण ।
इष्टानां दर्शनं देहि कुरु शत्रुविनाशनम् ॥

अर्थ : हे अश्मंतक महावृक्ष, आप महादोषों का निवारण करनेवाले हैें । आप मुझे मेरे मित्रों के दर्शन कराएं तथा मेरे शत्रुओं का नाश करें । उसके उपरांत उस वृक्ष की जड के पास चावल, सुपारी तथा स्वर्णमुद्रा (उपलब्ध न हो, तो तांबे की मुद्रा) रखते हैें । उसके पश्चात वृक्ष की परिक्रमा कर उसकी जड के पास की थोडी सी मिट्टी तथा उस वृक्ष के पत्ते घर लाते हैें ।

५. सोने के रूप मेंअश्मंतक के पत्ते बांटना

विजयादशमी के दिन सोने के रूप में अश्मंतक के पत्ते भगवान को समर्पित करते हैं तथा अपने मित्रों को देते हैें । यह इस बात का संकेत है कि बडे (वरिष्ठ) लोग अपने से छोटों को सोना देते हैें ।

६. हथियारों एवं उपकरणों की पूजा का शास्त्र

इस दिन राजा, सामंत एवं सरदार जैसे वीर स्वयं के उपकरणों तथा हथियारों का पूजन करते हैें । उसी प्रकार किसान एवं कारीगर उनके अस्त्रों (औजारों) एवं हथियारों की पूजा करते हैें । (कुछ लोग नवमी के दिन भी शस्त्रपूजन करते हैें ।) लेखनी एवं पुस्तक तो छात्रों के शस्त्र ही होती हैं; इसलिए छात्र उनका पूजन करते हैें । इस पूजन का उद्देश्य यह है कि इन वस्तुओं में ईश्वर का रूप देखना अर्थात ईश्वर के साथ एकरूपता साधने का प्रयास करना !

– श्री. रमेश शिंदे, राष्ट्रीय प्रवक्ता, हिन्दू जनजागृति समिति

अपराजिता देवी से प्रार्थना !

गले में विचित्र हार धारण करनेवाली, कटि पर (कमर पर) जिसके जगमगाती स्वर्णकरधनी (मेखला) है एवं (भक्तों के) कल्याण हेतु जो तत्पर रहती हैं, ऐसी हे अपराजिता देवी मुझे विजयी करें ।