मानव मस्तिष्क पर नियंत्रण स्थापित करनेवाली चिप : लाभ एवं संभावित हानि !
‘टेस्ला’ प्रतिष्ठान के मालिक इलॉन मस्क ने २९ जनवरी २०२४ को ‘न्यूरालिंक’ प्रतिष्ठान की ओर से मानव मस्तिष्क में डालने की ‘चिप’ की घोषणा की । ‘न्यूरालिंक’ प्रतिष्ठान ने यह दावा किया है कि पार्किंसन (पार्किंसन बीमारी का अर्थ है कंपवात, जिसमें रोगी के मस्तिष्क का जो भाग शरीर की गतविधियों पर नियंत्रण रखता है, उस क्षेत्र की तंत्रकोशिकाओं का धीरे-धीरे नाश होता जाता है), मूर्च्छा, निराशा, मस्तिष्क की चोटें, तीव्र पीडा, दृष्टिहीनता तथा बहरापन जैसी बीमारियों से ग्रस्त रोगियों को इस ‘ब्रेनचिप’ का लाभ मिलेगा; परंतु भविष्य में इसके कुछ विपरीत परिणाम भी दिखाई देंगे अथवा ऐसा करना हानिकारक भी होगा ।
१. ‘न्यूरालिंक चिप’ के विषय में घोषणा !
१ अ. चिप के कार्य के निरीक्षण हेतु पशुओं पर परीक्षण ! : ‘न्यूरालिंक’ प्रतिष्ठान के द्वारा मस्क ने मस्तिष्क-संगणक इंटरफेस में (Brain Computer Interfaces (BCIs)) महत्त्वपूर्ण परिवर्तन करने का विश्वास व्यक्त किया । इसमें व्यक्ति के मस्तिष्क में मस्तिष्क-वाचन उपकरण स्थापित किया गया है । प्रतिष्ठान के दावे के अनुसार यह उपकरण गंभीररूप से लकवाग्रस्त व्यक्ति को संगणक, रोबोटिक हाथ, वीलचेयर अथवा अन्य उपकरणों पर केवल विचार के बल पर नियंत्रण स्थापित करना संभव हो, इस उद्देश्य से तैयार किया गया है । पशुओं पर इस उपकरण के परीक्षण सफल रहे हैं; परंतु मानव परीक्षणों की जानकारी गुप्त रखी गई है ।
१ आ. कोरोना महामारी के काल में ‘चिप’ की निर्मिति ! : वर्ष २०२०-२१ में कोरोना महामारी के कारण विश्व का कार्य ठप्प था तथा वैज्ञानिक, विश्वविद्यालय एवं औषधीय प्रतिष्ठान कोरोना प्रतिबंधक टीका बनाने में व्यस्त थे, उस समय न्यूरालिंक मानव मस्तिष्क में स्थापित की जानेवाली चिप बना रहा था, साथ ही पशुओं पर भी उसका परीक्षण कर रहा था । उसी समय उन्होंने इसकी घोषणा की थी; परंतु विश्व के करोडों लोगों ने उसकी अनदेखी की । २९ जनवरी २०२४ को मस्क ने जब स्वयं इसकी घोषणा की, उस समय वैश्विक प्रसारमाध्यमों, वैज्ञानिकों तथा अन्यों का इसपर ध्यान गया ।
१ इ. न्यूरालिंक की प्रौद्योगिकी एवं प्रक्रिया : न्यूरालिंक चिप में ६४ लचीले ‘पॉलिमर इलेक्ट्रोड्स’ हैं, जो मस्तिष्क के १ सहस्र ६४ स्थानों से मस्तिष्क की भिन्न-भिन्न क्रियाओं का ध्वनिमुद्रण करनेवाले हैं । वह जानकारी उसी चिप में संग्रहित की जाएगी तथा उसपर प्रक्रिया भी की जाएगी । इस जानकारी के आधार पर कोई व्यक्ति अपने सामने की वस्तु को नियंत्रित करेगा । सरल भाषा में कहा जाए, तो गंभीर पक्षाघात से ग्रस्त व्यक्ति बिछौने पर पडा होता है । जो कुछ उसके सामने चल रहा होता है, वह उसे दिखाई देता है तथा समझ में भी आता है; परंतु वह हिलडुल नहीं सकता । न्यूरालिंक चिप डालने के उपरांत वह व्यक्ति केवल यह विचार करेगा कि सामनेवाले दूरदर्शन संच पर चल रहा चैनल बदलना है, तो वह तुरंत बदल जाएगा । विकलांग व्यक्ति विचार करेगा कि मेरी पहिएवाली कुर्सी मेरे पास आनी चाहिए, तो वह तुरंत ही उसके पास आ जाएगी ।
इसमें डरने जैसा कुछ भी नहीं है, यह प्रौद्योगिकी उपयोगी ही है । पिछले दशक में अनेक वैज्ञानिकों ने ऐसे उपकरण बनाने का प्रयास किया है ।
मस्तिष्क में न्यूरालिंक चिप के डाल देने पर होनेवाले लाभ एवं हानिन्यूरालिंक चिप मस्तिष्क में डाल देने से मन के विचारों के अनुसार कैसी घटनाएं होंगी ? तथा उसका क्या लाभ होगा ?, इसके कुछ उदाहरण – अ. मन में विचार आते ही दूरदर्शन पर चल रहा चैनल बदला जाना : मान लीजिए आप दूरदर्शन के सामने बैठकर समाचार देख रहे हैं । आपको वह चैनल बदलना है; परंतु रिमोट आपके पास नहीं है । आप जब यह विचार कर रहे होंगे, तभी आपकी इच्छा के अनुसार चैनल सामने दिखाई देने लगेगा तथा वह भी बिना रिमोट के ऐसा संभव हो जाएगा । आ. ‘पॉवरपॉईंट’ पर प्रस्तुतीकरण करते समय मन में विचारों के आने पर ‘स्लाइड’ (चित्र) बदल जाना : किसी बैठक में अथवा सहस्रों लोगों के सामने आप ‘पॉवरपॉईंट’ पर (पॉवरपॉईंट प्रणाली एक ऐसी प्रणाली है, जिसमें छायाचित्र एवं वीडियोज का उपयोग कर किसी विषय को समझाना सुलभ होता है) प्रस्तुतीकरण कर रहे हैं । इसमें प्रत्येक बार ‘स्लाइड’ को पॉईंटर से बदलना पडता है, उस समय बोलने की लय टूट जाती है तथा सामने उपस्थित लोगों में भी चुलबुलाहट होती है; परंतु अब ऐसा नहीं होगा । आप स्लाइड बदलने का विचार कर ही रहे हैं, तब तक पॉवरपॉईंट की स्लाइड बदल चुकी होगी । इ. आप वस्तुओं के संदर्भ में विचार कर रहे हैं, तब तक आपकी गाडी चालू हो गई होगी । घर का दरवाजा खुल गया होगा । मस्तिष्क में चिप डालने के कारण होनेवाले संभावित खतरेअ. अन्य व्यक्ति के मस्तिष्क पर नियंत्रण स्थापित करने की संभावना होना : जिस व्यक्ति के मस्तिष्क में न्यूरालिंक चिप डाली जाएगी, वह सामनेवाले व्यक्ति को बताए बिना उससे काम करा लेगा । संक्षेप में कहा जाए, तो मानव मस्तिष्क पर भी नियंत्रण स्थापित किया जा सकेगा । कदाचित ऐसा भी होगा कि आपके-मेरे मस्तिष्क पर अन्य कोई व्यक्ति नियंत्रण स्थापित कर लेगा । वैज्ञानिक अथवा अन्य क्षेत्र के विशेषज्ञ इन खतरों की संभावना व्यक्त कर रहे हैं । आ. चिप के माध्यम से किसी अन्य के द्वारा ही नियंत्रण स्थापित करने की संभावना : जुलाई २०२३ में स्विट्जरलैंड विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने ऐसा एक उपकरण बनाया, जिसकी सहायता से पक्षाघात से ग्रस्त व्यक्ति को मात्र विचार कर ही पैदल चलने में सक्षम बनाया । न्यूरालिंक चिप से खतरा यह है कि यह उपकरण ब्लूटूथ, घर के इंटरनेट अथवा ‘वाइफाइ’ से भी जोडा जा सकता है । भविष्य में उसे हमारे चल दूरभाष के नेटवर्क से भी जोडा जा सकेगा । इसी में यह संभावना है कि कदाचित भविष्य में रोगी के मस्तिष्क में डाली गई चिप को ‘ब्लूटूथ’ अथवा ‘वाइफाइ’ से कोई अन्य व्यक्ति भी किसी के मस्तिष्क को नियंत्रित करेगा तथा वही उस रोगी को अन्य कुछ करने की आज्ञा देगा । इ. उद्याेगपतियों, राजनेताओं अथवा आतंकियों द्वारा होनेवाला संभावित विपरीत कृत्य ! : वैज्ञानिकों को यह भय है कि यदि यह चिप अन्य किसी के हाथ लगी, तो चाहे वे उद्योगपति, राननेता अथवा आतंकी हों, वे सामान्य लोगों के मस्तिष्क में भी इस प्रकार की चिप डालकर उनसे इच्छित काम करवा सकेंगे । लेखक : डॉ. नानासाहेब थोरात |
२. परीक्षण वैज्ञानिक नैतिकता के अनुरूप नहीं हैं !
‘ऐसा कुछ अघटित नहीं होगा’, यदि ऐसा मान लिया जाए, तब भी इस क्षण ‘न्यूरालिंक’ का यह आविष्कार वैज्ञानिक नैतिकता के अनुरूप नहीं है, विश्व के सहस्रों वैज्ञानिकों ने ही नहीं, अपितु राजनेताओं एवं दार्शनिकों ने भी ऐसा खुला आरोप लगाया है । वर्ष २०२२ एवं २०२३ में कुछ ब्योरे सामने आए, जिसमें प्रतिष्ठान के परीक्षणों के लिए उपयोग किए गए वानरों एवं अन्य पशुओं पर इसका विपरीत प्रभाव दिखाई दिया । इस शोध के एक अंश के रूप में १२ वानरों को विकलांग बनाने का अथवा मारने का आरोप लगा है । इस प्रतिष्ठान पर पशुओं के साथ दुर्व्यवहार तथा दूषित हार्डवेयर के द्वारा संक्रामक रोगजनकों के मानवीय संपर्क में आने का संकट (खतरा) उठाने का आरोप लगाया गया है । आंतरिक कर्मचारियों की शिकायतों में ये आरोप लगे हैं कि पशुओं पर किए गए परीक्षण में जल्दबाजी की गई, जिसके परिणामस्वरूप पशुओं की मृत्यु हुई ।
‘रॉइटर्स’ (कनाडा की विश्वविख्यात समाचार संस्था) के अनुसार इन सभी परीक्षणों की अमेरिकी कृषि विभाग की ओर से जांच पडताल की गई । वर्ष २०२२ में ‘रॉइटर्स’ के द्वारा पुनरावलोकित प्रविष्टियां यह दर्शाती हैं कि वर्ष २०१८ से लेकर २८० बकरियां, वराह एवं वानरों सहित डेढ सहस्र पशुओं को मारा गया । केवल इतना ही नहीं, अपितु वैज्ञानिकों द्वारा अन्न एवं औषधि विभाग को (एफ.डी.आई. को) भी जल्दबाजी में मानव परीक्षण की अनुमति देने के कारण आरोपी के कटघरे में खडा किया गया है ।
३. ‘युनेस्को’ ने संकट को टालने की प्रधानता ली !
‘युनेस्को’ के (संयुक्त राष्ट्रसंघ के शैक्षिक, वैज्ञानिक एवं सांस्कृतिक संगठन के) ब्योरे के अनुसार न्यूरोटेक्नोलॉजी अर्थात मस्तिष्क पर शोध करनेवाली विज्ञान की शाखा तथा उसपर आधारित व्यवसायों का वार्षिक लेन-देन लगभग ३३ अरब डॉलर (२७७० अरब रुपए) है । न्यूरालिंक इसमें प्रतिदिन करोडों डॉलर की वृद्धि कर रहा है । १० से १२ वर्षाें में यह उद्योग सभी बडे उद्योगों को पछाडकर ‘ट्रिलियन’ डॉलर का उद्योग बन जाएगा ।
‘युनेस्को’ ने कुछ दिन पूर्व पेरिस में न्यूरोटेक्नोलॉजी के भविष्य के लाभ एवं हानियां, साथ ही मानव के सामाजिक व्यवहार पर उसके होनेवाले परिणाम, इस विषय पर वैश्विक परिषद का आयोजन किया । इसमें विश्व के सहस्रों विचारकों ने न्यूरोटेक्नोलॉजी पर वैश्विक आचार संहिता (कोड ऑफ कंडक्ट) लागू करने की मांग की, जिससे भविष्य में होनेवाले उसके दुरुपयोग रोके जा सकेंगे ।
४. न्यूरोटेक्नोलॉजी तथा उनसे संबंधित उद्योग विश्व में सबसे बलशाली हो पाएंगे !
इजरायली लेखक तथा इतिहास के ज्ञाता युवाल नोवा हरारी कहते हैं कि भविष्य में किसी अन्य वस्तु की अपेक्षा अर्थात चल दूरभाष, चार पहिया वाहन अथवा सॉफ्टवेयर हो; विश्व में मानव तथा मस्तिष्क पर नियंत्रण रखनेवाले उत्पादों की बहुत बडी मांग होगी । वर्ष २०५० के उपरांत यही उद्योग सबसे मजबूत होगा । कदाचित न्यूरालिंक ने भी इसे भांप लिया होगा । आज हम बडी सहजता से किसी को बोल देते हैं, ‘क्या तुमने अपना मस्तिष्क गिरवी रख दिया है ?’ भविष्य में कदाचित यह सत्य भी होगा !
लेखक : डॉ. नानासाहेब थोरात, विज्ञान शोधकर्ता, सातारा