झूठी कहानियों के विरुद्ध लडाई !
वर्तमान समय में ‘नैरटिव (झूठी कहानी) शब्द का बडा प्रचलन है । ‘‘नैरटिव’’शब्द के लिए मराठी अथवा अन्य भारतीय भाषाओं में वैकल्पिक शब्द उपलब्ध नहीं है; क्योंकि यह एक आधुनिक विदेशी शब्द है । विश्व की सभी विचित्रताएं, विकृतियां तथा मानसिक बीमारियों के लिए अंग्रेजी भाषा में ही शब्द तैयार किए जाते हैं । ‘नैरटिव’ के माध्यम से किसी छद्म विचार, संवाद अथवा वक्तव्य को लोगों के मन पर अंकित करने का प्रयास किया जाता है । वह एक कपोलकल्पित कहानी होती है तथा सभी उसे प्रसारित करते हैं । ऐसा करते-करते यह ‘नैरटिव’ धीरे-धीरे बढता जाता है तथा उससे लोगों के मन में भ्रम उत्पन्न करता है । आगे जाकर लोग उसी को सत्य समझने लगते हैं । ‘झूठ बोलो; परंतु जोर से बोलो’, ऐसी एक कहावत है । इस प्रकार के ‘नैरटिव’ में समाहित द्वेष तथा धाक का विरोध नहीं किया गया, तो देश का विनाश सुनिश्चित है ।
१. भारत में फैलाए हुए छद्म जाल तथा वास्तविकता
१ अ. ‘कांग्रेस ने भारत को स्वतंत्रता दिलाई !
वास्तविकता : ‘कांग्रेस ने भारत को स्वतंत्रता दिलाई’, अन्य किसी भी झूठ से बडा है यह झूठ । वास्तव में कांग्रेस ने मुस्लिम लीग के सहयोग से भारत का विभाजन किया । गांधी, नेहरू एवं पटेल के छायाचित्रों के संदर्भ देकर जनता को भ्रमित किया गया ।
१ आ. भारत को अहिंसा के मार्ग से स्वतंत्रता मिली !
वास्तविकता : स्वतंत्रता काल में भारत में बडी मात्रा में हिंसा हुई । विभाजन के समय देश के २ टुकडे होने से उस समय हुई हिंसा में १० लाख निर्दाेष लोगों को अमानवीय पद्धति से अपने प्राण गंवाने पडे थे । मुस्लिम लीग के गुंडों के कारण १ करोड ५० लाख लोगों को घरबार छोडना पडा तथा जिससे उनका जीवन अत्यंत दयनीय हो गया था । भारत को स्वतंत्रता मिलने के उपरांत जानमाल की हानि, संपत्ति की हानि, दंगे तथा मानवता की जो हत्या हुई, उतनी विश्व में अभी तक कहीं नहीं हुई है ।
१ इ. गांधी अहिंसा के पुजारी थे !
वास्तविकता : गांधी हिन्दुओं को अहिंसा तथा मुसलमानों को अतिहिंसा सिखानेवाले नेता थे । गांधी महात्मा नहीं थे, अपितु वे तानाशाह तथा राजनेता थे । ‘सभी को मेरी ही बात माननी है तथा जो मैं कहूं वही सत्य !’, यह धारणा रखनेवाले वे हठीले राजनेता थे । गांधी ने नेताजी सुभाषचंद्र बोस जैसे महान योद्धा, राष्ट्रभक्त तथा अध्यात्मजीवी व्यक्ति को देश से बाहर निकाल दिया । उसके कारण राजनीति से नीति, नियति, निष्ठा एवं राष्ट्रप्रेम निकल गया । उसके स्थान पर स्वार्थ, सजन प्रीति, दुष्ट तथा भ्रष्ट वृत्तियां शेष रह गईं ।
१ ई. मुसलमान अल्पसंख्यक हैं !
वास्तविकता : भारत में हिन्दुओं के उपरांत मुसलमान सर्वाधिक संख्या में हैं । देश की कुल जनसंख्या में ३०-३५ करोड मुसलमान हैं । वास्तविक अल्पसंख्यक तो पारसी हैं; क्योंकि उनकी संख्या केवल ६० सहस्र है । मुसलमान देश के दूसरे क्रम के बहुसंख्यक हैं; इसलिए उन्हें अल्पसंख्यक के रूप में नहीं गिना जाना चाहिए ।
१ उ. ‘हिन्दू-मुस्लिम भाई-भाई’
वास्तविकता : ‘हिन्दू-मुस्लिम भाई-भाई’ जैसा स्पष्टतापूर्ण झूठा दृष्टिकोण भारत को छोडकर अन्य कहीं नहीं मिलेगा । मुसलमान सहस्रों वर्षोें से हिन्दुओं से द्वेष करते आए हैं । ८ वीं शताब्दी के आरंभ में मोहम्मद बिन कासीम द्वारा सिंध पर आक्रमण कर वहां के राजा दाहीर की हत्या कर महिलाओं को खींचते हुए ले जाने से लेकर अभी तक मुसलमानों का हिन्दूद्वेष जारी है । इसी कारण डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर को ऐसा लगता था कि देश के विभाजन के पश्चात सभी मुस्लिम पाकिस्तान चले जाएं तथा वहां के सभी हिन्दू भारत आएं । उन्होंने यह बात ‘थॉट्स ऑन पाकिस्तान, द पार्टीशन ऑफ इंडिया’ नामक पुस्तक में कही है । यह पुस्तक वर्ष १९४० में लिखी गई थी । डॉ. आंबेडकर ने स्वतंत्रता मिलने से ७ वर्ष पूर्व यह चेतावनी दी थी; परंतु कांग्रेस ने इस अत्यंत उचित तथा अनेक समस्याओं का समाधान करनेवाला यह सुझाव नहीं माना ।
१ ऊ. डॉ. आंबेडकर केवल दलित नेता हैं !
वास्तविकता : डॉ. आंबेडकर राष्ट्रवादी थे तथा वे इस्लाम का वास्तविक रूप जानते थे । भारतीय समाज की जनसंख्या का स्वरूप तथा स्वभाव का अध्ययन करनेवाले वे पहले राष्ट्रनायक हैं । हिन्दू एवं मुसलमान कभी भी एक नहीं हो सकते; क्योंकि मुसलमानों के विचार उन्हें एकरूप होकर जीने नहीं देंगे । कुरान में बडी स्पष्टता से यह बताया गया है कि सभी का इस्लाम में परिवर्तन किया जाना चाहिए । इसके अंतर्गत संपूर्ण विश्व का दार उल् हर्ब (युद्धभूमि, जहां इस्लाम का शासन नहीं चलता, ऐसा प्रदेश) तथा दार उल् इस्लाम (जहां इस्लाम का शासन चलता है, ऐसा प्रदेश), इस प्रकार का वर्गीकरण किया गया है । गैरमुसलमानों को ‘काफीर’ माना जाता है । इस प्रकार के इस्लामी विचारों का अध्ययन कर मुसलमानों का सच्चा चेहरा उजागर करनेवाले वे पहले नेता थे । दुर्भाग्य की बात यह कि डॉ. आंबेडकर के अनुयायियों ने ही उनके इस अपूर्व चिंतन तथा दृष्टिकोण को त्याग दिया है ।
१ ए. वीर सावरकर ने द्विराष्ट्र सिद्धांत रखा है तथा वे ही देश के विभाजन का कारण हैं !
वास्तविकता : द्विराष्ट्र सिद्धांत की रचना सय्यद अहमद खान ने की तथा वे ही पाकिस्तान के जनक थे । उनका नाम न लेकर बिना किसी कारण वीर सावरकर पर आरोप लगाए जाते हैं । (द्विराष्ट्र सिद्धांत का अर्थ है हिन्दू-मुसलमान भिन्न-भिन्न होने से उन्हें अलग-अलग रहना चाहिए !) वर्ष १८५७ में ब्रिटिशों के विरुद्ध सशस्त्र संघर्ष हुआ । उसमें मंगल पांडे, तात्या टोपे, झांसी की रानी तथा अन्य महावीरों एवं वीरांगनाओं ने ब्रिटिशों को भारत से निकालकर भारत की स्वतंत्रता हेतु बलिदान दिया । कांग्रेस के लोग उनके नामों का उल्लेख टालते हैं । आज भी कांग्रेस की सभाओं मेंकभीभी ‘भारत माता की जय’ का नारा नहीं लगता । १९ वीं तथा २० वीं शताब्दियों में बाघा जतिन, अरविंदो घोष, रासबिहारी बोस, शचींद्र सान्याल, बारींद्र घोष, खुदीराम बोस जैसे बंगाल के देशभक्तों ने, साथ ही फडके भाई, चापेकर भाई, सावरकर भाई आदि महाराष्ट्र के महान वीरों ने स्वतंत्रता हेतु प्राणों की आहुति दी । पंजाब के लाला लाजपतराय, अजीत सिंह, भगत सिंह तथा उत्तर प्रदेश के राम प्रसाद बिस्मिल, अशफाकुल्ला खान तथा चंद्रशेखर आजाद ने ‘रिपब्लिकन आर्मी’ की स्थापना कर समाज में देशभक्ति की चिंगारी जगाई ।
उनके उपरांत उनके उत्तराधिकारी के रूप में नेताजी सुभाषचंद्र बोस ने ‘इंडियन नेशनल आर्मी’ की स्थापना कर ब्रिटिशों के विरुद्ध लडाई लडी । कांग्रेस कभी भारत के लगभग सभी प्रदेशों को मुक्त करानेवाले नेताजी सुभाषचंद्र बोस का नाम भी नहीं लेती । नेताजी की प्रेरणा से वर्ष १९४६ में भारतीय सेना में विद्रोह हुआ तथा उसके कारण ब्रिटिशों ने भारत छोडा । ब्रिटिशों में सेना का भय था, अहिंसा का नहीं ! स्वतंत्रता मिली केवल नेताजी के अंतिम प्रहार के कारण, सशस्त्र क्रांति तथा सैन्य कार्यवाहियों के कारण ! अहिंसा के उपदेश के कारण नहीं ! कांग्रेस कभी क्रांतिकारियों का स्मरण नहीं करती तथा उनके बलिदान को महत्त्व नहीं देती । कांग्रेस अभी तक सभी प्रकार से जनता का दिशाभ्रम ही करती आई है ।
१ ऐ. इस देश में चाहे कितना भी बडा अपराध क्यों न हो; कानून अपना काम करेगा !’ (लॉ विल टेक इट्स ओन कोर्स)
वास्तविकता : क्या कानून को स्वयं का ज्ञान अथवा बुद्धि है ? अधिवक्ता कानून के आधार पर न्यायालय में विवाद करते हैं । वादी एवं प्रतिवादी एक ही बात को अपने मतों के अनुसार रखते हैं । अभियोग जीतनेवाले को न्याय नहीं मिलता, जबकि बुद्धिमान व्यक्ति अभियोग जीतता है । भारत का कानून अधिवक्ताओं तथा न्यायाधीशों के हाथ का खिलौना बन चुका है । कानून को उसकी अपनी बुद्धि नहीं है, उदाहरणार्थ तिस्ता सेटलवाड के द्वारा गुजरात दंगों के समय मुसलमानों के पक्ष में झूठा प्रचार करने की बात सामने आई थी । उसे २० वर्ष उपरांत दंड मिला । वर्ष २००२ के दंगों के २ दशक उपरांत आए निर्णय के कारण सर्वाेच्च न्यायालय ने उसका दंड लंबा खींचा । इसके लिए रात ११ बजे मुख्य न्यायाधीश ने न्यायालय बिठाकर, ‘उसे गिरफ्तार न किया जाए’, यह आदेश दिया । देश में इस प्रकार के सैकडों प्रकरण चल रहे हैं । अब आप बताईए कि कानून अपना कार्य करता है अथवा धूर्त अधिवक्ता अथवा न्यायाधीश अपनी ताल पर कानून को नचाते हैं ?
१ ओ. भाजपा हिन्दुओं के लिए काम करती है !
वास्तविकता : वर्ष १९४७ से लेकर वर्ष २०१४ तक भाजपा की बहुमतवाली सरकार नहीं थी । वाजपेयी सरकार ने सभी के लिए काम किया; परंतु हिन्दुओं के लिए नहीं ! वाजपेयी एवं मोदी के मध्य यह एक अंतर है कि मोदी ने, वे ‘हिन्दू राष्ट्रवादी हैं’, ऐसा खुलेआम कहा । तब तक कोई भी नेता गर्व के साथ स्वयं के ‘हिन्दू’ होने की बात नहीं बोलता था । कांग्रेस ने हिन्दुओं को कुछ इस प्रकार दबाकर रखा था । मोदी ने हिन्दुओं के लिए कोई भी विशेष कानून नहीं बनाए । कांग्रेस ने मुसलमानों के लिए जो कानून बनाए थे, उन्होंने उन्हें भी नहीं हटाया । उन्होंने सभी के लिए काम किया । उन्होंने मुसलमानों को ५ करोड रुपए की छात्रवृत्ति दी; परंतु हिन्दुओं को यह सुविधा नहीं दी । मोदी ने हिन्दुओं को गर्व की पहचान दी ।अभी तक किसी भी सरकार ने हिन्दूहित के लिए काम नहीं किया । सरकार ने कुछ भी किया, तो उसका अधिकतर लाभ मुसलमानों को ही मिलता है । उसका भी एक कारण है । हिन्दू किसी भी सुविधा के लिए सडक पर नहीं उतरता तथा सरकार भी स्वयं आगे आकर हिन्दुओं के लिए कुछ नहीं करती । ‘डेड लॉक’ जैसी (घेराबंदी करने जैसी) स्थिति है । ‘कुछ भी नहीं हो सकता’, इस भ्रम ने दोनों को ही घेरकर रखा हुआ है ।
१ औ. हिन्दू हिंसक हैं तथा द्वेष करते हैं ।
वास्तविकता : कांग्रेस के नेता राहुल गांधी बडे हिन्दूद्वेषी हैं । वे जिहादी स्थिति में तडपता हुआ एक रोगी हैं । विगत २ सहस्र वर्षाें का विश्व का इतिहास ऊपर से भी देखा जाए, तो नरसंहारक कौन हैं, यह ध्यान में आता है । इस्लाम के जिहाद तथा ईसाईयों के ‘क्रूसेड’ ने करोडों लोगों का संहार किया तथा अनेक लोगों का धर्मांतरण किया ।
विश्वशांति हेतु शरीर, मन एवं वाणी से क्रियाशील रहनेवाले केवल हिन्दू ही हैं । ‘कोविड’ की महामारी का विषाणु किसने फैलाया ? उसपर टीका खोजकर उसे विश्व के गरीब देशों को देकर मानवता के दर्शन किसने कराए ? चीन ने महामारी फैलाई तथा भारत ने उसकी औषधि का शोध कर समाधान दिया । भारत ने औषधियों की आपूर्ति की । भारतीय औषधियों ने चीनी विषाणुओं का सामना किया । केवल ४ वर्ष पूर्व घटित यह वैश्विक घटना भी इस मूढ राहुल की समझ में नहीं आती तथा विडंबना तो यह कि ऐसे लोग लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष बन बैठ जाते हैं ।
विदेशों में हिन्दू विरोधी भय बढ रहा है । राहुल वाइनाड क्षेत्र से चुनकर आए । वाइनाड केरल का मुस्लिम बहुल क्षेत्र है । वर्तमान समय में चल रहा हिन्दू अनादर, खंडन, द्वेष एवं नाश और अधिक बढने के लक्षण दिखाई दे रहे हैं । भारत की राजनीतिक तथा सामाजिक स्थिति को पूर्णरूप से बिगाडने हेतु सभी प्रकार के हथकंडे अपनाए जा रहे हैं । २ सहस्र ४०० वर्ष पूर्व अलेक्जेंडर भारत आया था । विदेशी होने से भारतीय उसके सामने झुक गए; परंतु यह महाकंटक स्वदेशी होने से अब उसका सामना करना कठिन हो गया है; इसलिए हिन्दुओं को सतर्क रहने की आवश्यकता है । जन्म से हिन्दू दिखनेवाले हिन्दू अधिक हैैं; परंतु अपने अस्तित्व का भान रखनेवाले हिन्दू २०-३० प्रतिशत से अधिक नहीं हैं; भारतीय समाज की सुरक्षा के लिए यही बडी चुनौती है । शत्रु घर में ही है, यह बात घर के हिन्दुओं को ज्ञात नहीं है । उसके कारण शत्रुओं से कष्ट अधिक बढ गया है ।
१ अं. सर्व धर्म समान हैं !
वास्तविकता : ‘सर्व धर्म समान हैं’, हिन्दुओं को अनुचित मार्ग पर ले जाने हेतु तैयार किए गए अनेक झूठों में से एक है यह झूठ । सभी धर्माें पर एक ही परिभाषा लागू नहीं होती । सनातन धर्म को छोडकर अन्य सर्व पंथ किसी ऐतिहासिक व्यक्तियों पर आधारित हैं । इस्लाम, ईसाई, बौद्ध, जैन, सिख इत्यादि धर्म नहीं, अपितु पंथ हैं । इस्लाम एवं ईसाई पंथों में धर्मांतरण का धंधा चलता है । भारत में जन्मे बौद्ध, जैन एवं सिख पंथों का झुकाव धर्मांतरण की ओर नहीं है । सनातन धर्म पर तो धर्मांतरण की छाया भी नहीं है; क्योंकि मानव स्वभाव में समाहित रुचियों की विविधता से वे भिन्न बन चुके हैं । उन सभी का मिलकर एक ही ध्येय है आत्मज्ञान ! इस विशाल भाव को ही ‘धर्म’ कहा जाता है ।
इस्लाम के पवित्र ग्रंथ कुरान में ‘इस्लाम को छोडकर अन्य सभी काफिर है; इसलिए उन्हें मार देना चाहिए’, ऐसा कहा गया है । मुस्लिम बच्चों को मदरसों में यही बुद्धिभ्रम सिखाया जाता है । वे ५ बार नमाज पढते हैं तथा केवल ‘अल्लाह’ ही एक देवता हैं, अन्य कोई नहीं है’, ऐसा वे बार-बार बोलते हैं । इसी कारण वे अन्य धर्माें के आस्था के केंद्रों को झूठा बोलते हैं, साथ ही निचले स्तर का मानते हैं । जिनके प्रमुख ग्रंथ में ही यदि द्वेष, जलन तथा तिरस्कार भरा हुआ है, सनातन धर्म के साथ उनकी तुलना कैसे हो सकती है ? इसलिए ‘सर्व धर्म समान’ कहना झूठ है ।
२. भाजपा कहां हार गई ?
श्रीराम मंदिर का निर्माण भाजपा का एक महत्त्वपूर्ण राष्ट्रकार्य है । श्रीराम मंदिर हेतु ५०० वर्षाें का महासंग्राम हुआ । इस संघर्ष में ३ सहस्र से अधिक रामभक्तों का बलिदान हुआ । श्रीराम मंदिर के निर्माण से २० पीढियों की निरंतर अपेक्षाओं एवं आशा को सार्थकता प्राप्त हुई । सहस्रों रामभक्तों पर गोलियां चलाकर उनकी हत्या का आदेश देनेवाले समाजवादी दल के नेता तथा उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव को ‘पद्मभूषण’ पुरस्कार से सम्मानित किया गया ! मुलायम सिंह ने जब गोलियां चलाने का आदेश दिया था, उस समय उत्तर प्रदेश सरकार के मुख्य सचिव रहे नृपेंद्र मिश्रा को मंदिर निर्माण कार्य का प्रमुख नियुक्त किया गया । शिलान्यास से लेकर प्राणप्रतिष्ठा तक अनेक मुसलमानों द्वारा ‘श्रीराम मंदिर तोड देंगे’, ‘वहां पुनः मस्जिद बनाएंगे’, ऐसी धमकियां देने पर भी सरकार की ओर से उसके प्रत्युत्तर में एक वाक्य भी नहीं बोला गया, प्रत्यक्ष कृति तो दूर ही रही ! सामान्य लोगों ने ऐसी धमकियों का उत्तर दिया, तो उन्हें ही गिरफ्तार किया जाता है, जिससे देशद्रोहियों का उत्साह बढता है … भाजपा यहीं हार गई, ऐसा मुझे लगता है ।
३. हिन्दुओं को जागरूक होना आवश्यक !
अंत में यहां बताई गई तो केवल कुछ ही बातें हैं । राजनीतिक दल, फिल्मी कलाकार, मुस्लिम संगठन, ईसाई धर्मप्रचारक तथा छद्म हिन्दू प्रतिदिन इस प्रकार से दुष्प्रचार कर रहे हैं । कुछ ही दिन पूर्व हुए चुनाव में ‘भाजपा यदि सत्ता में आती है, तो वह संविधान बदल देगी’, सहस्रों बार ऐसा दुष्प्रचार किया गया । उसके कारण लोगों ने भाजपा को हराने का प्रयास किया । वास्तव में देखा जाए, तो कांग्रेस ने अपने स्वार्थ के लिए ६० बार संविधान में परिवर्तन किया है । आपातकाल के समय तो उन्होंने ५ बार संविधान बदला । मूल प्रस्तावना में जो शब्द नहीं था, तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी ने उस ‘सेक्यूलर’ (धर्मनिरपेक्ष) शब्द को संविधान में घुसा दिया ।
कांग्रेस ने अनेक महापाप किए हैं; परंतु तो भी देशद्रोही कांग्रेस तथा अन्य राजनीतिक दल सनातन धर्मियों को नीचा दिखाने का ही काम कर रहे हैं । हार्वर्ड, कोलंबिया, ऑक्सफोर्ड इत्यादि विदेशी विश्वविद्यालयों में ‘वोकिज्म’ आरंभ हुआ है । (संपूर्ण विश्व में स्थित प्रस्थापित समाज व्यवस्था, संस्कृति तथा परिवार व्यवस्था को न माननेवाली एक नई संस्कृति का उदय हुआ, जिसे वोकिज्म कहा जाता है ।) ‘हिन्दू जातिवादी हैं’, ‘वे दलितों को पैरों तले कुचल देते हैं ।’, ‘गरीबों को झुकाते हैं’, ‘उनमें समानता नहीं है’, ‘हिन्दुओं के सैकडों देवता हैं’, ऐसा दुष्प्रचार किया जाता है तथा चुन-चुनकर हिन्दुओं को मारा जाता है । ये लोग ‘समानता’, ‘समानता’ बोलते हुए सनातन धर्म में समाहित ‘समानता’ को अस्वीकार कर अत्यंत विकृत पद्धति से व्यवहार कर रहे हैं । इन सभी वैश्विक कुकृत्यों के पीछे इस्लाम, वामपंथी तथा ईसाई प्रचारक संगठन काम कर रहे हैं । उसके लिए उन्हें मनचाही आर्थिक सहायता मिल रही है । यह काम मुख्यरूप से अंतरराष्ट्रीय उद्योगपति जॉर्ज सोरोस नाम का ९२ वर्षीय वृद्ध व्यक्ति कर रहा है । कुछ दिन पूर्व ही संपन्न हुए लोकसभा चुनाव में भाजपा को हराने हेतु उसने जी जान से प्रयास किए; परंतु भगवान की कृपा से मोदी हारने से रह गए । कुल मिलाकर बताया जाए तो पूरे विश्व की दुष्ट शक्तियां बहुत जागृत हो गई हैं । सभी प्राचीन संस्कृतियां नष्ट हो गई हैं; परंतु केवल भारत में सनातन धर्म अभी भी टिका हुआ है । हिन्दुओं को इन बातों को समझ लेना आवश्यक है ।’
– डॉ. एस.आर. लीला, लेखक तथा पूर्व विधान परिषद सदस्य, भाजपा, बेंगलुरू, कर्नाटक (१९.७.२०२४)