सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी के ओजस्वी विचार

कर्मकांड का महत्त्व !

सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. जयंत आठवलेजी

‘बुद्धिवादी हिन्दू धर्म के कर्मकांड को ‘कर्मकांड’ कहकर नीचा दिखाते हैं; परंतु कर्मकांड का अध्ययन करें, तो यह समझ में आता है कि उसमें प्रत्येक बात का कितना गहन अध्ययन किया गया है !’


समष्टि साधना में व्यष्टि साधना का महत्त्व !

‘हनुमानजी ने व्यष्टि साधना  अर्थात रामभक्ति के बल पर रामराज्य की स्थापना करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई । यह ध्यान में रखकर हिन्दू राष्ट्र-स्थापना हेतु प्रयास करनेवालों को व्यष्टि (व्यक्तिगत) साधना भी मन लगाकर करनी चाहिए ।’


नष्ट होने की दिशा में होता हिन्दुओं का मार्गक्रमण !

‘हिन्दुओं को धार्मिक शिक्षा नहीं दी जाती । इतना ही नहीं ‘सर्वधर्मसमभाव’ जैसा अत्यंत अनुचित शब्द सिखाया जाता है, जो अन्य किसी भी धर्म में नहीं सिखाया जाता । इस कारण हिन्दू नष्ट होने की दिशा में बढ रहे हैं । इसे रोकने के लिए हिन्दू राष्ट्र की स्थापना करनी है ।’


विज्ञान सर्वव्यापी अध्यात्म के घर लौटेगा !

‘विज्ञान अध्यात्मशास्त्र का एक भटका हुआ बच्चा है । आज नहीं तो कल, वह सर्वव्यापी अध्यात्म के घर लौटेगा और उससे एकरूप हो जाएगा !’


आजकल के स्वार्थी नेता !

‘नेता शब्द का अर्थ है, मार्ग दिखानेवाला; परंतु कलियुग के आजकल के नेता राष्ट्र अथवा धर्म के लिए प्रगति का मार्ग न दिखाते हुए, केवल स्वार्थ में डूबे रहते हैं !’

– सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. जयंत आठवले