Allahabad HC : धर्म में आस्था रखने वालों का ही मंदिर पर नियंत्रण होना चाहिए ! – इलाहाबाद उच्च न्यायालय
प्रयागराज – जो लोग धर्म में आस्था रखते हैं , जिन्हें वेदों का ज्ञान है, मन्दिर उन्हीं के अधीन रहना चाहिए । इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने कहा है कि यदि मंदिरों और धार्मिक ट्रस्टों का प्रबंधन और संचालन देवता में आस्था रखने वालों के अतिरिक्त अन्य व्यक्तियों द्वारा किया जाएगा, तो लोगों का विश्वास समाप्त हो जाएगा । एक अभियोग की सुनवाई करते हुए इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने कहा कि मथुरा में मंदिरों के प्रबंधन से वकीलों और जिला प्रशासन को दूर रखा जाए । मथुरा में मंदिर समर्थकों और जिला प्रशासन से छुटकारा पाने का समय आ गया है।
🛕Only those who have faith in Hindu Dharma should administer temples – Allahabad High Court
👉With the court also holding this view, what steps will the government take to end the government control of temples ?#ReclaimTemples#FreeHinduTemples #FreeHinduTemplesFromSarkar pic.twitter.com/Wu2XCiUciv
— Sanatan Prabhat (@SanatanPrabhat) August 29, 2024
१. देवेन्द्र कुमार शर्मा एवं अन्य बनाम रुचि तिवारी मामले की सुनवाई करते हुए न्यायमूर्ति रोहित रंजन अग्रवाल ने कहा कि ,मंदिरों से संबंधित विवादित मामलों को जल्द से जल्द निपटाने का प्रयास किया जाना चाहिए। उन्होंने मथुरा में मंदिरों और ट्रस्टों के प्रबंधन के लिए ‘रिसीवर’ की बात की।अधिवक्ताओं में बनने की होड़ लगी रहती है। मंदिर की संपत्ति और धन का प्रबंधन देखने वाले व्यक्ति को ‘रिसीवर’ कहा जाता है।
२. जज ने कहा है कि अब मथुरा कोर्ट के अधिवक्ताओं को मुक्त करने का समय आ गया है । न्यायालयों को यथासंभव ऐसे ‘रिसीवर’ की नियुक्ति का प्रयास करना चाहिए ,जो वेदों का ज्ञान रखता हो, मंदिर के प्रबंधन से जुड़ा हो और ईश्वर में आस्था रखता हो।
३. मथुरा के मंदिरों से जुड़े कुल 197 सिविल मामले कोर्ट में लंबित हैं। १९७ मंदिरों में से वृन्दावन, गोवर्धन, बलदेव, गोकुल, बरसाना और मठों के मंदिरों से जुड़े मामले १९२३ से २०२४ तक के हैं। (इन मामलों से निपटने के लिए अब तक की सभी पार्टियों की सरकारों को शर्म आनी चाहिए ! संपादक)
४. हाई कोर्ट के जज ने कहा कि, मंदिर का प्रबंधन देखने वालों के पास पूर्ण समर्पण और निष्ठा के साथ विशेषज्ञता भी होनी चाहिए । मामलों की सुनवाई में देरी के कारण मंदिरों के बीच विवाद बढ रहे हैं। इससे मंदिरों में अधिवक्ताओं और जिला प्रशासन के बीच अप्रत्यक्ष साझेदारी होती है।यह हिंदू धर्म में आस्था रखने वाले लोगों के हित में नहीं है ।’
संपादकीय भूमिकाजब न्यायालय का भी यही मत है, तो सरकार मंदिरों का राष्ट्रीयकरण समाप्त करने के लिए क्या कदम उठाएगी ? |