SANATAN PRABHAT EXCLUSIVE : महाराष्ट्र में सरकारी खातों में हो रहे भ्रष्टाचार का किया जा रहा है दमन
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श्री. प्रीतम नाचणकर, मुंबई
मुंबई – यह बात सामने आई है कि सरकारी खातों में हो रहा भ्रष्टाचार उजागर न हो, इसलिए ‘सूचना अधिकार अधिनियम’ की उपेक्षा करते हुए राज्य के विविध सरकारी खातों की जानकारी वहां के अधिकारी छिपाने का प्रयत्न कर रहे हैं । शासकीय कामकाज में हो रहे भ्रष्टाचारों के मामलों की जांच करने हेतु विधिमंडल में समितियों की स्थापना की गई है; परंतु भ्रष्टाचार उजागर न हो, इसलिए जांच अहवाल ही उजागर नहीं किए गए हैं, यह बात सामने आई है । वर्तमान स्थिति में जांच समितियों की नियुक्ति होने के पश्चात भी अहवाल प्रस्तुत नहीं किए गए हैं । ऐसे सैंकडो मामले राज्य में प्रलंबित हैं ।
सरकारी कामकाज में पारदर्शिता रहे, इस हेतु सूचना अधिकार अधिनियम – धारा ४ (१) नुसार सभी शासकीय विभाग, महामंडल, प्रतिष्ठान अपने कामकाज की जानकारी अपने जालस्थल पर स्वयं दें, ऐसा कानून है । परंतु प्रत्यक्ष में महाराष्ट्र में ‘सूचना अधिकार’ कानून होते हुए भी अनेक सार्वजनिक प्राधिकरण और महामंडलों ने उनकी जानकारी जालस्थल पर नहीं रखी है । राज्य सूचना आयोग के जालस्थल पर उनके सभी वार्षिक अहवाल उपलब्ध हैं । इन अहवालों में आयोग ने समय-समय पर इसपर बल दिया है कि, ‘सरकार इस बात को गंभीरता से लें’; परंतु सर्वदलीय सरकारों द्वारा इसपर गंभीरता से कार्यवाही नहीं की गई है ।
केवल समितियों का गठन; परंतु अहवाल कहां हैं ? | ||
विषय | जांच समिति का गठन कब हुआ ? | अहवाल कितने वर्षों से प्रलंबित है ? |
राज्य की ६४ शैक्षिक संस्थाओं द्वारा छात्रों के बोगस नाम दिखाकर छात्रवृत्ति की १ सहस्र ८२६ रूपयों की राशि के भ्रष्टाचार का मामला | वर्ष २०१९ में जांच समिति का गठन | ५ वर्ष |
पुणे (महाराष्ट्र) के ससून अस्पताल के अस्थिरोग विभाग के कुछ अधिकारियों द्वारा फर्जी विकलांग प्रमाणपत्र दिए जाने का मामला | जून २०२२ में जांच समिति का गठन | २ वर्ष |
चिकित्सा क्षेत्र की ‘कट प्रैक्टिस’ के विरुद्ध कानून करना | २८ जुलाई २०१७ को कानून का मसौदा करने के लिए समिति का गठन | ८ वर्ष |
इस प्रकार समितियां स्थापित कर उनके अहवाल सर्वदलीय शासनकर्ताओं के कार्यकाल में छिपाए गए हैं । इससे संबंधित जानकारी दैनिक ‘सनातन प्रभात’ के पास उपलब्ध है ।
राज्य सूचना आयोग के पास प्रतिमाह सहस्रो अपील ! | |
महीना | शासकीय कार्यालायें द्वारा उचित जानकारी प्राप्त न होनेसे राज्य सूचना आयोग के पास आए द्वितीय आवेदनपत्र |
मार्च | ३ सहस्र ७२२ |
अप्रैल | ५ सहस्र १५२ |
मई | ४ सहस्र ८०८ |
जून | ४ सहस्र ३२४ |
जुलाई | ५ सहस्र १५८ |
मार्च के पहले से और मार्च से जुलाई तक प्रलंबित द्वितीय आवेदनपत्रों की कुल संख्या | ८२ सहस्र ९८१ |
सूचना अधिकार के अंतर्गत विविध सरकारी खातों में किए गए आवेदनों के उत्तरों में उचित अथवा संतोषजनक जानकारी प्राप्त नहीं हुई, तो इस संदर्भ में उसी विभाग के अपिलीय अधिकारी के पास परिवाद प्रविष्ट किया जा सकता है; परंतु अपिलीय सूचना अधिकारियों ने भी जानकारी नहीं दी, तो सूचना अधिकार के अंतर्गत राज्य सूचना आयोग के पास द्वितीय अपील करने का प्रावधान है । महाराष्ट्र में शासकीय विभागों से उचित और संतोषजनक जानकारी उपलब्ध न होने से प्रति माह सहस्रों की संख्या में राज्य सूचना आयोग के पास द्वितीय अपील किए जा रहे हैं । (ये आंकडे उपर्युक्त सारणी में दिए हैं ।) राज्य सरकार और प्रशासन के लिए यह स्थिति खेदजनक है ।
जानकारी न देनेवालों पर कार्यवाही करने के सूचना आयोग द्वारा आदेश, तो सरकार की ओर से टामटोल !
सूचना अधिकार कानून के अंतर्गत जिन शासकीय विभागों से उचित और संतोषजनक जानकारी नहीं दी जाती, उस विभाग के जनसूचना अधिकारियों पर अनुशासनिक कार्यवाही करने के आदेश राज्य सूचना आयोग ने सरकार को प्रस्तुत किए वार्षिक अहवालों में अनेक बार दिए हैं; परंतु सरकार की ओर से इसकी उपेक्षा की जा रही है । ‘जनसूचना अधिकारी और प्रथम अपिलीय अधिकारी उचित और संतोषजनक जानकारी नहीं देते’, ऐसे शब्दों में राज्य सूचना आयोग ने अपने वार्षिक अहवाल में खेद व्यक्त किया है । इस प्रकार से जानकारी छिपाने का यह कृत्य संदेहजनक और भ्रष्टाचार को बढावा देनेवाला है ।
संक्षेप में शासकीय कामकाज में पारदर्शिता आए, इसके लिए सूचना अधिकार कानून है; परंतु नेता और प्रशासकीय अधिकारी ही कानून की उपेक्षा कर भ्रष्टाचार का दमन करने का प्रयत्न करते दिखाई दे रहे हैं । यह खेदजनक स्थिति है ।
संपादकीय भूमिका
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