ज्योतिषी ईश्वर का दूत है । उसे सदैव यह भाव रखना चाहिए कि ‘मैं दैवी कार्य कर रहा हूं !’ – पू. डॉ. ॐ उलगनाथन्जी, जीवनाडी-पट्टिका वाचक
त्रिची (तमिलनाडु) में संपन्न हुआ ‘ज्योतिष एवं वास्तु अधिवेशन’ !
त्रिची (तमिलनाडु) – ‘‘ज्योतिषी ईश्वर का दूत है; इसलिए उसमें अभिमान नहीं होना चाहिए । एक ज्योतिषी दूसरे ज्योतिषी का अपमान न करे अथवा उसकी आलोचना न करे; ऐसा करना पाप है । किसी ज्योतिषी को जो ज्ञात नहीं हो, उस विषय में ‘मैं अपने गुरु से पूछकर बताता हूं’, ऐसा कहना अपेक्षित है ।
ज्योतिष के आचरण एवं कृति धर्मशास्त्रसम्मत होने चाहिए । ‘अपनी कोई अनुचित कृति अथवा आचरण के कारण ऋषिनिर्मित ज्योतिषशास्त्र का अपमान होता है’, ज्योतिषी को यह ध्यान में रखना चाहिए । ज्योतिष एवं ज्योतिषशास्त्र को बहुत नीचा दिखाया जाता है । उसकी अनदेखी कर, ज्योतिषी को यह भाव रखकर आगे बढना चाहिए कि ‘मैं दैवी कार्य कर रहा हूं ।’ प्रति ३-४ माह में इस प्रकार का अधिवेशन आयोजित किया जाए । सभी ज्योतिषी एकत्रित हुए, तो हमें एक-दूसरे से सीखने को मिलेगा तथा उससे संगठित भाव उत्पन्न होगा । अधिवेशन में ज्योतिषियों को विभिन्न विषयों पर होनेवाली परिचर्चाओं में सम्मिलित होकर प्रश्न पूछने चाहिए, जिससे हमें ज्ञान मिले । ‘भगवान ने मनुष्य को ज्योतिषशास्त्र क्यों प्रदान किया होगा ?’, यह प्रश्न पूछकर हमें मूल विषय तक पहुंचना चाहिए’’, सप्तर्षि जीवनाडी-पट्टिका वाचक पू. डॉ. ॐ उलगनाथन्जी ने ऐसा मार्गदर्शन किया । त्रिची (तमिलनाडु) में ११ अगस्त २०२४ को आयोजित ‘ज्योतिष एवं वास्तु अधिवेशन’ के उद्घाटन के अवसर पर वे मार्गदर्शन कर रहे थे ।
संपूर्ण विश्व में रामराज्य की स्थापना करने हेतु ज्योतिषी शास्त्र के अनुसार उपाय सुझाएं ! – श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) अंजली मुकुल गाडगीळजी, सनातन संस्था
पू. डॉ. ॐ उलगनाथन्जी सप्तर्षि जीवनाडी-पट्टिका में आनेवाले संदेश हमें सदैव बताते रहते हैं । सप्तर्षि जीवनाडी-पट्टिका के वाचन से वे हमें विनाशकाल के विषय में भी सतर्क करते रहते हैं । वर्तमान समय में संपूर्ण विश्व पर विनाशकाल मंडरा रहा है । उससे रक्षा होने हेतु तथा संपूर्ण विश्व में रामराज्य की स्थापना करने हेतु ज्योतिषीगण हमारा मार्गदर्शन करें । इसके साथ ही वे हमें ज्योतिषशास्त्र की दृष्टि से हमारे राष्ट्र का क्या भविष्य है, यह भी बताएं, जिससे तीव्र साधना कर भारत सहित संपूर्ण विश्व में शांति स्थापित की जा सके ।
इस अधिवेशन का उद्घाटन पू. डॉ. ॐ उलगनाथन्जी, त्रिची के अरममिगु अडीगल स्वामीजी तथा सनातन संस्था के संस्थापक सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी की एक आध्यात्मिक उत्तराधिकारिणी श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) अंजली मुकुल गाडगीळजी के करकमलों से किया गया । इस अधिवेशन का आयोजन श्री. ए.एन. राजशेखर ने किया है तथा श्री. संथना कृष्णन् उसके सह-आयोजक हैं । इस अधिवेशन में १०० से अधिक ज्योतिषी सम्मिलित हुए ।