बांग्लादेश में चल रही अराजकता तथा भारत के सामने खडी चुनौतियां !
१. बांग्लादेश में अंतरिम सरकार सत्ता में
‘बांग्लादेश में हुए विद्रोह के उपरांत शेख हसीना के नेतृत्व में चल रही ‘अवामी लीग’ की सरकार गिर गई है । अब शेख हसीना बांग्लादेश छोडकर भारत आ गई हैं । अब वहां के सेनाप्रमुख ने प्रस्ताव रखा है कि बांग्लादेश में अंतरिम सरकार का गठन किया जाए । बांग्लादेश के संविधान में अंतरिम सरकार को ‘कार्यवाहक सरकार’ कहा जाता है । उनके संविधान के अनुसार अंतरिम सरकार को ३ माह के अंदर चुनाव लेना होता है । शेख हसीना ने संविधान में संशोधन कर अंतरिम सरकार को ३ माह के अंदर चुनाव कराना अनिवार्य कर दिया । जून २०२३ में जब बांग्लादेश के चुनाव संपन्न हुए, उस समय यदि बांग्लादेश में ‘अंतरिम सरकार आती है, तो वह उनके विरुद्ध भूमिका लेगी’, ऐसा उन्हें लग रहा था; इसलिए उन्होंने संविधान में संशोधन कर उस अनुच्छेद को ही हटा दिया । इसलिए अब गठित होनेवाली अंतरिम सरकार कितने समय तक चलेगी, यह पूर्णरूप से उनके सेनाप्रमुख पर निर्भर है ।
बांग्लादेश के इतिहास में अभी तक केवल एक ही बार (वर्ष २००५ में) अंतरिम सरकार का कार्यकाल बहुत बढाए जाने से वह लंबे समय तक चली थी । इसलिए यह अंतरिम सरकार किस प्रकार काम करेगी, यह अनिश्चित है । वहां शांति स्थापित करना पहली प्राथमिकता है । अब वहां के लोगों में भयंकर क्षोभ है तथा लोग सुनने की स्थिति में नहीं हैं । इसलिए वहां शीघ्रातिशीघ्र चुनाव कराकर नई सरकार का गठन करना पडेगा । वर्तमान सेनाप्रमुख की नियुक्ति केवल ८ सप्ताह पूर्व ही हुई है । यह अंतरिम सरकार ३ माह के अंदर चुनाव कराएगी, यह अपेक्षा है ।
२. शेख हसीना का राजनीतिक भविष्य
वर्तमान स्थिति में शेख हसीना का पुनः सत्ता में आना अत्यंत कठिन है; इसलिए वे कुछ समय तक बांग्लादेश के बाहर रहना ही पसंद करेंगी । हम यदि कुछ वर्ष पूर्व जाते हैं, तो उनके पिता शेख मुजीबुर रहमान की हत्या की गई थी । उस समय लोगों में इतना भयंकर क्षोभ था कि केवल शेख मुजीबुर रहमान ही नहीं, अपितु उनके सभी संबंधियों की हत्याएं कर दी गई थीं । उस समय शेख हसीना तथा उनकी बहन देश के बाहर थीं; इसलिए वे दोनों बच गईं, अन्यथा उसी समय उनकी भी हत्या हो गई होती । वर्तमान समय में आनेवाले चुनाव में बांग्लादेश की नेता प्रतिपक्ष खालिदा जिया पुनः सत्ता में आएंगी, ऐसा अनुमान है । इसलिए वहां पुनः गठबंधन की सरकार बन सकती है तथा उस सरकार में जमात-ए-इस्लामी जैसा कट्टरपंथी दल भी सम्मिलित हो सकता है ।
३. बांग्लादेश का सत्तापरिवर्तन भारत के लिए आश्चर्यजनक
बांग्लादेश में सत्तापरिवर्तन होना भारत के लिए बडा संकट है; क्योंकि शेख हसीना के १५ वर्ष के कार्यकाल में भारत एवं बांग्लादेश के मध्य के संबंध अत्यंत घनिष्ठ थे कि ‘वे बांग्लादेश में बांग्लादेश की प्रतिनिधि के रूप में सरकार चला रही हैं’, ऐसे आरोप उन पर लगे थे । इसके साथ ही आंदोलन काल में उनपर वे बडे स्तर पर केवल ‘भारत समर्थक’ ही नहीं, अपितु ‘हिन्दू समर्थक’ हैं, इस प्रकार के आरोप भी लगे । शेख हसीना को अनेक बार कालीमाता के रूप में दिखाया गया है । मुस्लिम समुदाय के लोगों को भी दुर्गापूजा में सम्मिलित होना चाहिए, इस प्रकार की उदारमतवादी भूमिका उन्होंने ली थी । उनके कार्यकाल में अल्पसंख्यक हिन्दुओं की रक्षा हुई थी, साथ ही वहां के हिन्दू मंदिरों पर होनेवाले आक्रमण भी न्यून हुए थे । अब १९ जुलाई से लेकर आज तक के अर्थात आंदोलनकाल में अनेक हिन्दुओं तथा हिन्दू मंदिरों पर आक्रमण हुए हैं । ‘आंदोलनकारियों की भारत विरोधी भूमिका हिन्दू विरोधी भूमिका न बने’, यह भारत की चिंता है । यदि ऐसा हुआ, तो वहां के अल्पसंख्यक हिन्दुओं के लिए बडी समस्या होगी । इस काल में शरणार्थी बडी संख्या में भारत आ सकते हैं । उसके कारण इस आंदोलन की तीव्रता शीघ्रातिशीघ्र अल्प न होना, यह सूत्र भारत के लिए चिंता का विषय है तथा वह अति आवश्यक है ।
४. खालिदा जिया के बांग्लादेश की सत्ता में आने की संभावना कितनी है ?
खालिदा जिया कारावास में हैं तथा उन्हें छोडने के आदेश दिए गए हैं । शेख हसीना के कुछ निर्णय निश्चितरूप से त्रुटिपूर्ण हैं । उन्होंने वहां के लोकतंत्र को एकाधिकारतंत्र में परिवर्तित करने की स्थिति उत्पन्न की थी । उन्होंने ‘बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी’ पर प्रतिबंध लगाना, खालिदा जिया को कारागृह में डालना, जमात-ए-इस्लामी पर प्रतिबंध लगाना, सेना को सामान्य लोगों पर गोली चलाने के आदेश देना, साथ ही बडे स्तर पर प्रसारमाध्यमों पर प्रतिबंध लगाने जैसे कार्य किए । उसके कारण उनके विरुद्ध असंतोष बढता गया । इस प्रकार वे सभी पर प्रतिबंध लगा रही हैं, इस प्रकार से उनके प्रति एक रहस्यमय वातावरण तैयार हो गया था । ‘वे अपने दल का तानाशाही राज्य लाने का प्रयास कर रही हैं तथा यह सब भारत के निर्देश पर हो रहा है’, ऐसा आरोप लगाया गया था । सार्वत्रिक चुनाव संपन्न होने पर खालिदा जिया का आगे आकर उनके ‘बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी’ की सरकार बनाना स्वाभाविक है । वैसा वे करेंगी; परंतु उनके जो अन्य सहयोगी राजनीतिक दल हैं; वे अत्यंत कट्टरपंथी हैं । वे यदि सत्ता में आ गए, तो भविष्य में भारत के लिए चुनौतीपूर्ण स्थिति उत्पन्न हो सकती है ।
बांग्लादेश में चल रही अराजकता उनके लोकतंत्र, आर्थिक विकास तथा भारत के लिए दुर्भाग्यजनक !बांग्लादेश में हिंसा भडक गई है तथा अब उनकी प्रधानमंत्री शेख हसीना ने त्यागपत्र दे दिया है । यह घटना केवल बांग्लादेश के लिए ही नहीं, अपितु उनके लोकतंत्र एवं आर्थिक विकास के लिए भी दुर्भाग्यपूर्ण है, इसके साथ ही यह घटना दक्षिण एशिया की राजनीति की दृष्टि से तथा भारत की आंतरिक सुरक्षा की दृष्टि से भी दुर्भाग्यपूर्ण है, ऐसा हमें कहना पडेगा । वर्ष २००९ से शेख हसीना बांग्लादेश की प्रधानमंत्री हैं । उन्होंने पिछले वर्ष चौथी बार बांग्लादेश के प्रधानमंत्रीपद की बागडोर संभाली थी । उनका चौथा कार्यकाल आरंभ होते ही विरोधी दलों ने उनके विरुद्ध एकत्रित होना आरंभ कर दिया था । जनवरी २०२४ में सर्वप्रथम वहां भारत विरोधी आंदोलन हुआ था । शेख हसीना को भारत का बडा समर्थन प्राप्त है । उनके अवामी राजनीतिक दल के साथ भारत के विगत १५ वर्ष से स्थिर संबंध रहे हैं । उसके कारण उनके विरुद्ध आंदोलन हुआ । उसके उपरांत १९ को आरक्षण के विरुद्ध आंदोलन हुआ । अब वहां के विरोधी दलों एवं लोगों ने सरकार एवं अवामी लीग के विरुद्ध असहयोग आंदोलन चलाया था । इस आंदोलन में लगभग १ करोड लोक सडक पर उतरे थे । शेख हसीना ने सेना को इन लोगों पर गोलियां चलाने के आदेश दिए थे; परंतु सेना ने सामान्य लोगों पर गोलियां चलाना अस्वीकार कर दिया था । उसके उपरांत यह आंदोलन इतना तीव्र हुआ कि उसकी फलोत्पत्ति अब शेख हसीना के त्यागपत्र देने तथा देश से पलायन करने में हुई है । कुल मिलाकर बांग्लादेश में चल रही अराजकता उनके लोकतंत्र, आर्थिक विकास तथा भारत के लिए दुर्भाग्यजनक घटना है । जब जब भारत के पडोसी राष्ट्रों में लोकतंत्र तथा आर्थिक स्थिरता होती है, वह समय भारत के लिए अनुकूल होता है; परंतु जब इन देशों में राजनीतिक अस्थिरता अथवा आंतरिक कलह उत्पन्न होता है, तब भारत की आंतरिक सुरक्षा पर उसके परिणाम होते हैं । ’ – डॉ. शैलेंद्र देवळाणकर (साभार : ‘पुढारी’ समाचारवाहिनी तथा फेसबुक) (६.८.२०२४) |
५. बांग्लादेश में सेना का वर्चस्व स्थापित होना भारत के लिए संकटकारी !
कुछ समाचारों के अनुसार ‘खलिदा जिया के लडके ने असम के अलगाववादी संगठन ‘उल्फा’ के नेताओं को हथियारों की आपूर्ति की’, यह आरोप लगाया गया था । खलिदा जिया के वर्ष २००१ से २००५ के कार्यकाल में अनेक बार भारत विरोधी गतिविधियां हो चुकी हैं । उस काल में मादक पदार्थ तथा फर्जी नोटों की तस्करी, भारत के उत्तर-पूर्वी क्षेत्र के अलगाववादी गुटों के नेताओं को बांग्लादेश में शरण देना, अल्पसंख्यक हिन्दुओं तथा मंदिरों पर आक्रमण की घटनाएं बढना जैसी अनेक घटनाएं हुई हैं । भारत के पश्चिम में शत्रु राष्ट्र पाकिस्तान है, जो भारत में आतंकियों की घुसपैठ कराकर भारत को हानि पहुंचाने का सदैव प्रयास करता रहता है । इसलिए अब पश्चिम की भांति पूर्व की ओर भी दूसरा पकिस्तान न बने, यह भारत की चिंता हो सकती है । इसलिए आनेवाला समय भारत के लिए निश्चितरूप से चुनौतीपूर्ण होगा ।’
६. भारत को ‘पडोसी देश प्रथम’ नीति की आवश्यकता !
पडोसी देश श्रीलंका, पाकिस्तान एवं म्यांमार में अराजकता फैली हुई है । ऐसी स्थिति में भारत की प्राथमिकता ‘नेबरहुड फर्स्ट’ (पडोसी देश प्रथम) की होनी चाहिए । इन देशों की तथा भारत की आंतरिक सुरक्षा एक-दूसरे से संबंधित है । उसके कारण यदि पडोसी राष्ट्रों में शांति, स्थिरता तथा लोकतंत्र हो, तो वह भारत के लिए सकारात्मक है । केंद्र सरकार भारत को विकसित भारत की दिशा में ले जा रही है; इसलिए अगले २५ वर्ष भारत के लिए अत्यंत महत्त्वपूर्ण होंगे । इस काल में पडोसी राष्ट्रों में शांति बनी रहे, यह आवश्यक है । इसलिए पडोसी देशों के संकटकाल में भारत के द्वारा उनकी ओर ध्यान देना, उनकी आर्थिक सहायता करना, उन देशों में भारत जो विकासात्मक उपक्रम चला रहा है, उन्हें पूर्ण करना जैसे काम करने पडेंगे, अन्यथा उन्हें इस प्रकार की सहायता करने के लिए चीन पहले से तैयार बैठा ही है । भारत ने उनकी ओर ध्यान नहीं दिया, तो ये देश चीन की ओर झुक सकते हैं । उसके कारण पडोसी राष्ट्रों के माध्यम से भारत को घेरने का चीन का उद्देश्य सफल हो सकता है । इसलिए आनेवाले समय में भारत को ‘नेबरहुड फर्स्ट’ की नीति पर ध्यान देना आवश्यक है ।
७. पडोसी राष्ट्रों पर चीन का वर्चस्व स्थापित होना भारत के लिए चिंता का विषय !
मालदीव में भारतीय उत्पादों की बडी मांग है; इसलिए वहां ‘भारतीय उत्पादों के बहिष्कार का अभियान आरंभ हुआ था । उसके उपरांत लगभग इसी प्रकार का विचार जनवरी माह में बांग्लादेश में भी आरंभ हुआ । उस समय ‘भारत का, साथ ही भारतीय उत्पादों का बहिष्कार करें’, ऐसा आवाहन किया गया था । उसके उपरांत यही विचार नेपाल तक पहुंचा था । उसके कारण मालदीव सहित सभी पडोसी राष्ट्रों की यथासंभव आर्थिक एवं नैतिक सहायता करना, साथ ही वे चीन के चंगुल में न फंसें, भारत को निश्चितरूप से इसका ध्यान रखना पडेगा । भारत को इसके लिए प्रयास करना आवश्यक है ।’
– डॉ. शैलेंद्र देवळाणकर, विदेश नीति के विश्लेषक
(साभार : ‘एन.डी.टी.वी. मराठी’ तथा डॉ. शैलेंद्र देवळाणकर का फेसबुक खाता) (७.८.२०२४)