श्राद्ध कौन करें एवं कौन न करें ?
मृत व्यक्ति के श्राद्ध कुटुंब में कौन कर सकता है एवं उसका अध्यात्मशास्त्रीय कारण इस लेख में देखेंगे । इससे यह स्पष्ट होगा कि हिन्दू धर्म एकमात्र ऐसा धर्म है जो प्रत्येक व्यक्ति का उसकी मृत्यु के उपरांत भी ध्यान रखता है ।
संतों का श्राद्ध नहीं करना पडता; क्योंकि देहत्याग के उपरांत वे भुवर्लोक अथवा स्वर्गलोक में न अटककर, उनके स्तर के अनुसार जन, तप अथवा सत्य लोक में जाते हैं ।
– सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवले (१६.१२.२०१४) |
१. स्वयं करना महत्त्वपूर्ण
‘श्राद्धविधि स्वयं करनी चाहिए । स्वयं नहीं कर पाते, इसलिए ब्राह्मण द्वारा करवाते हैं । ऐसे में ब्रााह्मण से एवं ब्राह्मण न मिलें तो किसी जानकार व्यक्ति से श्राद्धविधि करवाएं ।
२. ससुर एवं पति के जीवित रहते स्त्री की मृत्यु होने पर उसका अंतिम संस्कार एवं श्राद्ध पति को क्यों करना चाहिए ?
विवाहित स्त्री की मृत्यु होने पर, पति को ही अंतिम संस्कार एवं श्राद्ध करने का प्रथम अधिकार है; क्योंकि पत्नी का पति के साथ सबसे अधिक संबंध होता है । अतः पति से उसकी अपेक्षाएं भी अधिक होती हैं । इस कारण किसी अन्य की अपेक्षा पति द्वारा की गई विधि से पत्नी की लिंगदेह को गति प्राप्त होने की संभावना अधिक होती है ।
३. विधवा स्त्री की मृत्यु के पश्चात उसका श्राद्ध उसके पुत्र को क्यों करना चाहिए ?
विधवा स्त्री की मृत्यु के उपरांत उसका अंतिम संस्कार एवं श्राद्ध करने का अधिकार उसके पुत्र को है; क्योंकि स्त्री का किसी अन्य की अपेक्षा प्रथम पति से एवं उसके उपरांत स्वयं के पुत्र से संबंध सर्वाधिक होता है । अतः उचित घटकों के माध्यम से की जानेवाली श्राद्धविधि से फलप्राप्ति भी अधिक होती है ।’
– (श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) अंजली गाडगीळ ‘एक विद्वान’ इस उपनाम से भी लेखन करती हैं, २७.१.२००६, रात्रि ८.३७)
४. हिन्दू धर्म किसी को भी यह कहने का अवसर नहीं देता, ‘अमुक व्यक्ति नहीं कर सकता, इसलिए श्राद्धविधि नहीं की’ !
‘पुत्र (जिसका उपनयन न हुआ हो, वह भी), पुत्री, पौत्र, प्रपोत्र, पत्नी, जिस पुत्री को पितरों की संपत्ति मिली हो, उसका पुत्र, सगा भाई, भतीजा, चचेरा भतीजा, पिता, माता, बहू, बडी एवं छोटी बहन के बच्चे, मामा, सपिंड (सात पीढी तक कुल का कोई भी व्यक्ति), समानोदक (सात पीढी के उपरांत के गोत्र का कोई भी सदस्य), शिष्य, उपाध्याय, मित्र, जमाई, इस क्रमसे यदि एक न हो तो दूसरा श्राद्ध करे । संयुक्त परिवार में वयोवृद्ध पालनकर्ता पुरुष (परिवार में आयु में बडा अथवा सभी के पालन-पोषण का दायित्व निभानेवाला व्यक्ति) श्राद्ध करे । विभक्त होने पर प्रत्येक व्यक्ति को स्वतंत्र रूप से श्राद्ध करना चाहिए ।’ हिन्दू धर्म ने ऐसी पद्धति बनाई है कि प्रत्येक मृत व्यक्ति के लिए श्राद्ध संभव हो एवं उसे सद्गति प्राप्त हो ।
धर्मसिंधु नामक ग्रंथ में लिखा है, ‘किसी मृत व्यक्तिका कोई परिजन न हो, तो उसका श्राद्ध करने का कर्तव्य राजा का है ।’
(इससे यह विदित होता है कि ‘श्राद्धविधि अमुक व्यक्ति नहीं कर सकता । इसलिए नहीं की गई’, ऐसा कहने का अवसर हिन्दू धर्म नहीं देता ! यही एकमात्र धर्म है, जो प्रत्येक व्यक्ति का उसकी मृत्यु के उपरांत भी ध्यान रखता है ! इतने पर्याय होते हुए भी हिन्दू श्राद्ध इत्यादि नहीं करते । ऐसे हिन्दुओं की सहायता भला कौन कर पाएगा ? इससे हिन्दू धर्म की महानता स्पष्ट होती है ! – संकलनकर्ता)
५. स्त्रियों द्वारा श्राद्ध किया जाना
पुत्री, पत्नी, मां एवं बहू को भी श्राद्ध करने का अधिकार है । फिर भी वर्तमान काल में श्राद्ध करवानेवाले कुछ पुरोहित स्त्रियों को श्राद्ध करने की अनुमति नहीं देते । इसका कारण यह है कि पूर्वकाल में स्त्रियों का यज्ञोपवीत संस्कार होता था ।
(संदर्भ : सनातन का ग्रंथ ‘श्राद्ध (भाग १) – महत्त्व एवं अध्यात्मशास्त्रीय विवेचन’)