Kolkata Teenage Girl Rape Case : ‘लडकियों को उनकी लैंगिक इच्छाओं पर नियंत्रण रखना चाहिए’, कोलकाता उच्च न्यायालय की टिप्पणी को उच्चतम न्यायालय ने रद्द किया
कोलकाता (बंगाल) – कोलकाता उच्च न्यायालय ने कुछ सप्ताह पूर्व ‘लडकियों को उनकी लैंगिक इच्छाओं पर नियंत्रण रखना चाहिए’, ऐसी सलाह दी थी । उच्चतम न्यायालय ने उच्च न्यायालय की यह टिप्पणी रद्द की, साथ ही बलात्कार के आरोपी को निचली अदालत द्वारा सुनाई गई २० वर्षों के दंड की सजा यथावत रखी । उच्च न्यायालय ने इस आरोपी को निर्दोष ठहराया था ।
Supreme Court sets aside the
Calcutta High Court’s order which asked adolescent girls to “control their sexual urges” pic.twitter.com/6dAYEMlUyp— Sanatan Prabhat (@SanatanPrabhat) August 20, 2024
१. उच्चतम न्यायालय ने निर्णय में कहा कि, हम पाॅक्सो कानून के सही प्रयोग के लिए सर्वसमावेशन मार्गदर्शक तत्व प्रसारित कर रहे हैं और न्यायाधीशों को इसके अनुसार ही निर्णय देना चाहिए ।
२. अक्टूबर २०२३ में कोलकाता उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति चितरंजन दास और न्यायमूर्ति पार्थसारथी सेन की खंडपीठने नाबालिक लडकी पर हुए लैंगिक अत्याचार के प्रकरण में लडके को निर्दोष मुक्त किया था । २ नाबालिग युवा लडका-लडकी में प्रेम संबंध था और उन्होंने सहमति से शारीरिक संबंध रखा था ।
३. इस पर सुनवाई करते समय उच्च न्यायालय ने कहा था कि नाबालिग लडकियों को २ मिनट आनंद लेने की बजाए लैंगिक इच्छाओं पर नियंत्रण रखना चाहिए । किशोरावस्था के लडकों को युवा लडकी और महिलाओं की प्रतिष्ठा और शारीरिक स्वायत्तता का आदर करना चाहिए ।
‘हाइपोथालेमस’ और ‘पिट्यूटरी’ ग्रंथि ‘टेस्टोस्टेरोन’ की मात्रा को नियंत्रित करता है, जो प्रमुख रूप से पुरुषों में लैंगिक संबंधों के लिए होता है । यह शरीर में है, इसीलिए जब उत्तेजना संबंधी ग्रंथि सक्रिय होती है, तब लैंगिक इच्छा निर्माण होती है; परंतु संबंधित ग्रंथि अपने आप सक्रिय नहीं होती; इसके लिए अपनी दृष्टि, सुनना, अश्लील साहित्य पढना और विरोधी लिंग के व्यक्ति से बात करना, इससे उत्तेजना होती है । लैंगिक इच्छा अपनी क्रियाओं से निर्माण होती है ।
क्या है प्रकरण ?
कोलकाता उच्च न्यायालय ने निचले न्यायालय का आदेश रद्द किया था । इसमें एक किशोर लडके को किशोर महिला मित्र के साथ लैंगिक संबंध बनाने पर २० वर्ष के कारावास का दंड सुनाया गया था । दोनों ने बाद में एक दूसरे से विवाह करने का निर्णय लिया और ‘यह शारीरिक संबंध सहमति से था’, यह लडकी द्वारा स्वीकार करने के उपरांत खंडपीठ ने किशोर लडके को निर्दोष मुक्त किया । ‘उन्हें भारतीय कानून के अनुसार शारीरिक संबंध बनाने की आयु १८ वर्ष होना आवश्यक होता है’, यह पता नहीं था । वे दोनों दुर्गम ग्रामीण क्षेत्र के थे ।