भारत की वर्तमान स्थिति तथा उसका उपाय !
‘गोवा में प्रतिवर्ष भारतसहित पूरे विश्व में हिन्दू राष्ट्र की स्थापना करने के उद्देश्य से हिन्दू जनजागृति समिति की ओर से ‘वैश्विक हिन्दू राष्ट्र महोत्सव’ आयोजित किया जाता है । इस वर्ष मैं उसमें उपस्थित था, उस समय सर्वोच्च न्यायालय के अधिवक्ता (श्री.) अश्विनी उपाध्याय से मेरा संवाद हुआ, उस संवाद में अधिवक्ता (श्री.) उपाध्याय के द्वारा व्यक्त विचार यहां दे रहा हूं ।
श्री. विशाल ताम्रकर, ‘लक्ष्य सनातन संगम’, दुर्ग, छत्तीसगढ
१. न्यायसंगत संविधान की पुनर्रचना करने से जनता को न्याय मिलना संभव !
‘हमें स्वतंत्रता मिली है, ऐसा लोगों को लगता है; परंतु मेरा स्वयं का यह विश्वास है कि वास्तव में न्यायतंत्र से अन्याय ही दिखाई देता है । अनेक पीढीयां खप जाती हैं; परंतु उन्हें न्याय नहीं मिलता । वैसे भी विलंब से मिले न्याय को अन्याय ही माना जाता है । ‘तोडो और राज्य करो’ की नीति के अनुसार आज भी देश को मानसिकरूप से गुलाम बनाया जा रहा है । (भारत के सभी राज्यों में हो रहा धर्मांतरण इसका सबसे बडा प्रमाण है।) हमारी शिक्षाव्यवस्था अनुचित पद्धति से चलाई जा रही है ।
स्वतंत्रता के उपरांत करों की निर्मिति, न्यायालय, कानून एवं न्यायव्यवस्था की रचना करते समय को ब्रिटिश कानूनों के अनुसार नकल (कॉपी पेस्ट) की गई । प्रत्येक देश की अपनी संस्कृति, सभ्यता तथा समस्याएं होती हैं । उसके अनुसार उन देशों के लोगों को न्याय दिलाने हेतु न्यायव्यवस्था बनाई गई है । अनेक देशों में उनकी सुविधा के अनुसार सभी नियम बनाए गए हैं । विशेषज्ञों के मतानुसार हमारे देश में संविधान की केवल नकल की गई है । हमारे देश का धर्म, संस्कृति तथा सभ्यता के अनुसार हमें नए सिरे से नियम बनाने पडेंगे । उसके लिए न्यायसंगत संविधान की पुनर्रचना की आवश्यकता है । त्रिपाठी (सेवानिवृत्त) ‘गूंगे संविधान के भयावह परिणाम, आंखों देखा सच’, यह पुस्तक प्रकाशित किया गया है । उन्होंने उसमें स्पष्टता से कहा है कि संविधान की पुनर्रचना करना आवश्यक है, जिससेह सभी का विकास होगा तथा प्रत्येक व्यक्ति को न्याय मिल पाएगा ।
२. सत्ताधारियों के निकटवर्तियों को सरकारी नौकरियों का अवसर
जादूगर उसकी जादू की कला नहीं दिखाता, जबकि वह वही दिखाता है, जो उसे हमें दिखाना होता है । देश में भी यही स्थिति है । हमें धर्म एवं जाति के आधशर पर आरक्षण तो दिया गया है; परंतु नौकरियां उन्हीं को मिलती हैं, जो सत्ता में होनेवाले राजनेताओं के निकटवर्ती होते हैं । (छत्तीसगढ की सरकारी नौकरियों की भर्ती में हुआ घोटाला इसका सबसे बडा प्रमाण है । इस घोटाले का सत्य जांच में उजागर होगा ।) मैं आरक्षण पर सहमत हूं; परंतु वह जाति एवं धर्म के आधार पर नहीं होना चाहिए । आरक्षण आर्थिक समृद्धि एवं निर्धनता के आधार पर दिया जाना चाहिए ।
३. प्रत्येक भारतीय को देश के लिए समर्पण करने की आवश्यकता !
‘लक्ष्य सनातन संगम’के राष्ट्रीय सलाहकार विशाल राघव प्रसाद ने स्पष्टता से कहा है, ‘जब चुनाव होते हैं, उस समय हमें निष्पक्ष एवं न्यायसंगत दृष्टिकोण से प्रत्याशी का चयन करना चाहिए, जो समर्पित भाव से देशभक्ति में लीन हो ।’ हमे फल की अपेक्षा न कर मतदान करना चाहिए । आज देश जिस विकट स्थिति गुजर रहा है, उसे देखते हुए हमें देश से क्या मिला, इस विचार की अपेक्षा हमने देश को क्या दिया ?, इसका विचार करना चाहिए । आज देश के प्रत्येक व्यक्ति को देश के लिए समर्पण करनेह की आवश्यकता है, तभी जाकर हमारा राष्ट्र बलवान बनेगा ।
४. भारत की सभी समस्याओं का ‘समान नागरिक संहिता कानून’ ही एकमात्र उपाय !
सर्वोच्च न्यायालय के अधिवक्ता (श्री.) अश्विनी उपाध्याय कहते हैं कि, भारत में एक कानून, एक शिक्षाव्यवस्था तथा एक ही न्यायव्यवस्था होनी चाहिए। ‘समान नागरिक संहिता कानून’ (यूसीसी) भारत की आत्मा है । समान नागरिक संहिता कानून लागू होता है, तो देशवासियों को न्याय प्राप्त करने हेतु भटकना नहीं पडेगा । मैं इस विषय पर लंबे समय से काम कर रहा हूं । देश हमारा है तथा उसकी समस्याओं का समाधान भी हमें ही करना है । उसके लिए प्रत्येक भारतीय नागरिक को एक छत के नीचे आकर आवाज उठानी चाहिए । जैसे पानी का एक प्याला सभी समस्याओं का समाधान करता है, उसी प्रकार भारत में समान नागरिक संहिता कानून लागू किया, तो उससे भारत की सभी समस्याएं दूर होंगी ।’ (२६.७.२०२४)