लगन से सेवा करनेवाली मथुरा सेवाकेंद्र की सनातन की साधिका कु. मनीषा माहुर (आयु २९ वर्ष) ने प्राप्त किया ६१ प्रतिशत आध्यात्मिक स्तर !
रामनाथी (गोवा) – यहां सनातन के आश्रम में ११ जुलाई को आयोजित एक शिविर में मूलतः देहली की निवासी तथा वर्तमान में मथुरा के सेवाकेंद्र में रहकर साधना करनेवाली कु. मनीषा माहुर (आयु २९ वर्ष) द्वारा ६१ प्रतिशत आध्यात्मिक स्तर प्राप्त करने की घोषणा की गई । श्रीसत्शक्ति (श्रीमती) बिंदा सिंगबाळजी ने उन्हें भेंटवस्तु प्रदान कर सम्मानित किया । इस अवसर पर सनातन के संत तथा साधक उपस्थित थे ।
भाव एवं लगन से युक्त तथा मां की भांति सभी को संभालनेवाली कु. मनीषा दीदी ! – श्रीसत्शक्ति (श्रीमती) बिंदा सिंगबाळजी
इस वर्ष जनवरी माह में जब मनीषा दीदी से मिलना हुआ, तब ऐसा ध्यान में आया कि वह बहुत स्थिर थी तथा मां की भांति सभी को संभाल रही थी । उसकी साधना के विचारों में भी परिपक्वता प्रतीत हो रही थी । सेवाओं का नियोजन भी वह अच्छे ढंग से कर रही थी । उसमें भाव एवं लगन भी प्रतीत हुई । अब उसने जो बताया, वह बहुत महत्त्वपूर्ण है कि उसे साधना में अल्पसंतुष्ट न रहकर भगवान के चरणों में समर्पित होना है ।
‘समष्टि में श्रीसत्शक्ति (श्रीमती) बिंदा सिंगबाळजी जैसी बनने का लक्ष्य रखकर प्रयास करनेवाली कु. मनीषा माहुर ! – सद्गुरु डॉ. चारुदत्त पिंगळेजी१२ वीं की परीक्षा में ९५ प्रतिशत अंक अर्जित कर भी मनीषा दीदी ने पूर्णकालीन साधना करने का निर्णय लिया । उन्हें घर में रसोई का कार्य करने की आदत नहीं थी; परंतु आश्रम आकर उन्होंने सभी सेवाएं सीख लीं । अब वे आश्रम की सेवाएं, गृह व्यवस्थापन, सत्संगों का दायित्व, ‘विश्व पुस्तक मेला’ जैसे कार्यक्रम आदि की सेवाएं कर रही हैं । परिस्थिति स्वीकार करना तथा आज्ञापालन करने के गुण स्वयं में लाने हेतु उन्होंने बहुत प्रयास किए । श्रीसत्शक्ति (श्रीमती) बिंदा सिंगबाळजी ने उन्हें एक बार कहा था, ‘तुम शीघ्र आगे बढोगी ।’ उनके इस वाक्य से प्रेरणा लेकर मनीषा दीदी ने ‘मुझे समष्टि में श्रीसत्शक्ति (श्रीमती) बिंदा सिंगबाळजी जैसा बनना है’, यह ध्येय रखकर साधना के प्रयास किए । |
आध्यात्मिक स्तर घोषित करने के उपरांत कु. मनीषा माहुर द्वारा व्यक्त मनोगत
साधना में अल्पसंतुष्ट न रहकर आगे बढना है ! – कु. मनीषा माहुर
‘सच्चिदानंद परब्रह्म गुरुदेवजी, श्रीसत्शक्ति (श्रीमती) बिंदा सिंगबाळजी एवं श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) अंजली गाडगीळजी ने ही मेरा हाथ पकडकर मुझसे साधना के प्रयास कराए हैं । अब साधना में अल्पसंतुष्ट रहकर रुकना नहीं है, अपितु और आगे बढना (प्रगति करनी) है ।