मुझमें ‘सुराज्य’ कब आएगा ?
‘सुराज्य’ शब्द के उच्चारण से ही मन को आनंद मिलता है । वर्तमान समय में हमारेआसपास की स्थिति यदि देखी जाए, तो हमें इस ‘सुराज्य’ की प्रतीति नहीं होती । सर्वत्रही ‘कुराज्य’ का अनुभव होता है । मिलावटी दूध से लेकर महिलाओं पर होनेवाले अत्याचारतथा सर्वत्र फैला भ्रष्टाचार ! यही कुराज्य है, इसके असंख्य उदाहरण हैं, यह अलग से बतानेकी आवश्यकता नहीं है । ‘जैसे बाहर की स्थिति कुराज्य की है, वैसे ही हमारे अंतर्मन कीस्थिति भी अल्पाधिक मात्रा में ऐसी ही है’, दुर्भाग्यवश ऐसा ही कहना पडेगा ।
स्वयं में ‘कुराज्य’ !
अंतर्मन की स्थिति देखी जाए, तो काम का तनाव, प्रत्येक बात में प्रतियोगिता, मुझे महत्त्व मिले, मेरी प्रतिमा ऊंची हो; इसके लिए अर्थहीन परिश्रम, शीर्षस्थ अहंभाव संजोने के कारण रक्त संबंधों में दूरी उत्पन्न होना, मेरा सुख, मुझे सबकुछ मिले तथा इन जैसी अनेक बातों के कारण ‘मैं कौन हूं ?’ तथा ‘मुझे क्या चाहिए ?’, कहीं न कहीं इसका विस्मरण होता जा रहा है । इसके कारण मुझमें आनंद होते हुए मैं उसका उपभोग नहीं कर सकता । व्यक्ति के कारण ही देश में भी ‘कुराज्य’ है, ऐसा ही कहना पडता है; क्योंकि व्यक्तियों के समूह से ही देश बनता है । व्यक्ति यदि सात्त्विक एवं सुसंस्कृत हों, तो देश का वातावरण भी अच्छा होता है ।
‘सुराज्य क्रांति’ का ध्येय रखें !
मुझे यदि मुझमें विद्यमान आनंद का उपभोग करना हो, तोमुझे स्वयं में ‘सुराज्य’ उत्पन्न करना पडेगा । इसका कारण यह कि ‘मेरा शरीर ‘राज्य’ है, ऐसा विचार किया, तो उसमें ‘सुराज्य’ होगा तथा तभी जाकर जीवन के आनंद का उपभोग करना संभव हो पाएगा । इसका अर्थ मैंने यदि प्रत्येक कृति उचित की, अपने कर्तव्य का पालन किया तथा ‘मैं और मेरा’, यह विचार न कर राष्ट्र एवं धर्म के लिए कार्य किया,तो किसी को किसी से कष्ट नहीं होगा । तनाव एवं स्पर्धा समाप्त हो जाएगी । प्रत्येक व्यक्ति अपनी ओर देखकर राष्ट्र एवं धर्म की रक्षा हेतु कार्यरत होगा । इस प्रकार से प्रत्येक व्यक्ति में ‘सुराज्य’आ गया, तो उससे देश में ‘सुराज्य’ आने में समय नहीं लगेगा । हम सभी स्वतंत्रता दिवस के उपलक्ष्य में स्वयं में ‘सुराज्य क्रांति’ लाने का ध्येय रखेंगे ।
‘सुराज्य’ हेतु धर्माचरण आवश्यक !
देश की स्वतंत्रता का अमृतमहोत्सव मनाया गया; परंतु मन में ‘सुराज्य’ न होने के कारण देश कोस्वतंत्रता मिलने के ७५ वर्ष बीत जाने के उपरांत भी वास्तव में ‘स्वतंत्रता’ का अनुभव नहीं हो पाया, यह क्षोभजनक है । उसके कारण स्वयं में ‘सुराज्य’ लाने हेतु धर्मशिक्षा लेकर धर्माचरण करेंगे । धर्म में प्रत्येक व्यक्ति को जीवन में कैसे आचरण करना चाहिए ?, इसका ज्ञान उपलब्ध है । मनुष्य का जन्म किस लिए हुआ है, तथा उसे कैसा आचरण करना चाहिए ?, केवल धर्म ही यह बता सकता है । धर्माचरण से दूर हो जाने के कारण आज की पीढी भटके हुए लोगों की भांति आचरण कर रही है । इसके फलस्वरूप तनाव, दुख, निराशा एवं भय ही पाले में आ रहे हैं । उससे बाहर निकलने हेतु नींद की गोलियां लेना, मादक पदार्थाें के अधीन होना आदि का व्यसन बढ रहा है । भगवान द्वारा निर्मित चैतन्यदायक एवं सुंदर सृष्टि का लाभ उठाने हेतु भगवान के द्वारा निर्मित नियमरूपी धर्मका आचरण कर प्रत्येक व्यक्ति को स्वयं में ही ‘सुराज्य’ लाना चाहिए,यह निश्चित है !
– वैद्या सुश्री माया पाटील,देवद, पनवेल. (११.८.२०२३)