Maulana Taukeer Raza : (और इनकी सुनिए…) ‘जो लोग कहते हैं कि 5 मिनट की अजान से असुविधा होती है, उन्हें एक महीने तक कावड यात्रा मार्ग बंद होने से कष्ट क्यों नहीं होता ?’ – मौलाना तौकीर रजा
मौलाना तौकीर रजा का हिन्दू विरोधी बयान !
(मौलाना का अर्थ है इस्लाम का शिक्षक)
बरेली (उत्तर प्रदेश) – 5 मिनट की अज़ान से लोगों की नींद उड़ जाती है । यदि मस्जिद में 10 मिनट की नमाज के लिए स्थान नहीं है तथा कोई बाहर नमाज पढ़ रहा है तो आपको कठिनाई है; किंतु कावड़ यात्रा के रास्ते पूरे एक महीने तक बंद रहते हैं, क्या आपको इससे बाधा नहीं होती ? यहां इत्तेहाद-ए-मिल्लत परिषद के प्रमुख मौलाना तौकीर रजा ने कहा, यह न्याय है अथवा अन्याय?
मौलाना रजा ने आगे कहा कि कावड़ यात्रियों की सुविधा के लिए जो भी करना हो किया जाना चाहिये। हमें इससे कोई समस्या नहीं है; लेकिन हम पर लगाए गए प्रतिबंधों से असुविधा है ।’ हमें उस पर आपत्ति है । मुहर्रम की शोभायात्रा हमेशा एक निश्चित स्थान से ही चलती है । कभी नए रास्ते पर नहीं चलती । हम नई परंपराएं नहीं बना रहे हैं; लेकिन आप लोग ऐसा करते हैं । आप वही करें जो आपका धर्म आपको करने की अनुमति देता है; लेकिन हम पर प्रतिबंध लगाना अन्याय है ।
मुसलमानों को दुकानों पर अपने नाम का बोर्ड लगाकर व्यापार करना चाहिए !
मौलाना तौकीर रजा ने आगे कहा कि मुसलमानों को अपनी दुकानों और घरों पर अपने नाम का बोर्ड लगाना चाहिए । जो ऐसा नहीं करते, वे या तो धोखा देने की इच्छा रखते हैं अथवा इससे भयभीत हैं । अपनी पहचान छुपाकर व्यवसाय करना उचित नहीं है । यदि आप साफ-सफाई रखते हैं और अच्छा व्यवसाय चलाते हैं, तो लोग आपसे खरीदारी करेंगे । जो लोग अपनी पहचान छिपाते हैं वे निर्बल होते हैं ।
रजा ने सरकार की आलोचना करते हुए कहा कि सरकार ने मुसलमानों को कष्ट देने की मंशा से यह आदेश जारी किया था, जिस पर न्यायालय ने रोक लगा दी है । मुसलमानों को अपनी पहचान क्यों छिपानी चाहिए ? इस पर विचार किया जाना चाहिए । वास्तव में, वे अपनी वास्तविक पहचान खोते जा रहे हैं । उन्हें इतनी स्वतंत्रता मिल गई है कि वे दाढ़ी अथवा टोपी नहीं पहनते हैं और उनकी जीवन शैली में भी परिवर्तन आया है । न्यायालय ने स्वैच्छिक नाम लिखने की अनुमति दे दी है, मेरा मानना है कि प्रत्येक दुकानदार को अपनी नाम पट्टी लगानी चाहिए । एक मुस्लिम के रूप में अपनी पहचान उजागर करें । मुसलमान होने पर गर्व अनुभव करना चाहिए ।
संपादकीय भूमिका
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