हिन्दुओं के विरुद्ध वैचारिक युद्ध जीतने के लिए अधिवक्ताओं का ‘इकोसिस्टम’ आवश्यक है ! – सद्गुरु डॉ. चारुदत्त पिंगळे, राष्ट्रीय मार्गदर्शक, हिन्दू जनजागृति समिति
रामनाथी (गोवा) – हिन्दू राष्ट्र के लिए प्रत्यक्ष लडाई में हमारे जैसे सामान्य कार्यकर्ता सहभागी होंगे; परंतु आज विरोधकों ने वैचारिक युद्ध आरंभ किया है । उसे जीतने के लिए वैचारिक योद्धाओं की आवश्यकता है । ये वैचारिक योद्धा भारतीय कानून संबंधी जानकारी और संविधान के अंतर्गत व्यवस्थाओं का उचित अर्थ बताकर हिन्दुओं का पक्ष कानूनीदृष्टि से सक्षम बनानेवाले होंगे । धर्मसंस्थापना के इस कार्य में योगदान देने के लिए हिन्दू अधिवक्ताओं को ‘साधक अधिवक्ता’ बनना चाहिए । उन्हें विरोधकों के ‘इकोसिस्टिम’को (तंत्र को) प्रत्युत्तर (मुंहतोड जवाब) देने के लिए साधक अधिवक्ता के रूप में हिन्दू राष्ट्र और हिन्दुत्वनिष्ठ संगठनों के समर्थन हेतु ‘इकोसिस्टिम’ बनाना आवश्यक है, ऐसा मार्गदर्शन हिन्दू जनजागृति समिति के राष्ट्रीय मार्गदर्शक सद़्गुरु डॉ. चारुदत्त पिंगळेजी ने ‘वैश्विक हिन्दू राष्ट्र महोत्सव’के छठे दिन किया । वे ‘अधिवक्ता संगठन : हिन्दू कार्यकर्ताओं के लिए आधारस्तंभ’ इस विषय पर बोल रहे थे । सद्गुरु डॉ. चारुदत्त पिंगळे बोले, ‘‘भारत के स्वतंत्रतासंग्राम में अधिवक्ताओं को योगदान अतुलनीय है । लोकमान्य तिलक, सरदार वल्लभभाई पटेल, वीर सावरकर, लाला लाजपत राय, न्यायमूर्ति रानडे, देशबंधू चित्तरंजन दास जैसे अनेक अधिवक्ताओं ने उस काल में स्वतंत्र भारत की लडाई के लिए प्रयत्न किया और भारत को स्वतंत्रता दिलवाई । इसीप्रकार अपने सभी अधिवक्ताओं के संगठन सक्रिय बन गए और उसमें सभी का योगदान मिला, तो आगामी काल में इस भूमि पर हिन्दुओं को अधिकार दिलाने के लिए हिन्दू राष्ट्र की निश्चितरूप से स्थापना होगी ।’’
आनेवाले काल में ‘सेक्युलर’ एवं ‘सोशलिस्ट’ शब्द संविधानविरोधी ठहराए जाएंगे ! – अधिवक्ता विष्णु शंकर जैन, सर्वोच्च न्यायालय एवं प्रवक्ता, हिन्दू फ्रंट फॉर जस्टिस
प्रा. के.टी. शाह ने वर्ष १९४८ में ३ बार ‘धर्मनिरपेक्ष’ (सेक्युलर) एवं ‘समाजवाद’ (सोशलिस्ट) शब्द संविधान में समावेश करने का प्रस्ताव रखा था; परंतु वह प्रस्ताव संविधान के मूल ढांचे से विसंगत होने के कारण संविधान की रचना समिति ने तीनों बार उनका प्रस्ताव अस्वीकार कर दिया । वर्ष १९७६ के आपातकालीन समय में किसी भी प्रकार की चर्चा न करते हुए अवैधरूप से ये दोनों शब्द संविधान में घुसेड दिए गए । संविधान में इन शब्दों का समावेश ही मूलत: संविधान के विरोध में है । इन दोनों शब्दों को संविधान में समावेश करने के विरोध में हमने न्यायालय में भी याचिका प्रविष्ट की है । आनेवाले काल में ‘सेक्युलर’ और ‘सोशलिस्ट’ शब्द संविधानविरोधी ठहराए जाएंगे । आगामी जुलाई में इस पर सुनवाई होने की संभावना है ।
आगे उन्होंने कहा, ‘संविधान के प्रत्येक शब्द की व्याख्या दी गई है । संविधान में समावेश करने से पूर्व उन पर चर्चा हुई है; परंतु अबतक ‘धर्मनिरपेक्ष’ और ‘समाजवाद’, इन दोनों ही शब्दों की व्याख्या निश्चित नहीं की गई है । संविधान में समावेश करते समय इन शब्दों पर चर्चा भी नहीं हुई । संविधान के अनुच्छेद २५ के अंतर्गत प्रत्येक व्यक्ति को अपने धर्मानुसार आचरण करने का अधिकार दिया गया है । ऐसा होते हुए भी भारत के किसी भी नागरिक पर ‘धर्मनिरपेक्षता’ कैसे थोपी जा सकती है ? धर्म के नाम पर किसी से भेदभाव न किया जाए, इसके लिए सरकार धर्मनिरपेक्ष हो सकती है; परंतु किसी नागरिक पर धर्मनिरपेक्षता थोपी नहीं जा सकती । ‘समाजवाद’ शब्द के जनक कार्ल मार्क्स द्वारा लिखे गए लेखों में हिन्दू धर्म, भारत के विषय में घटिया शब्दों का उपयोग किया है । उन शब्दों का भारत के संविधान में समावेश करना, घोर अनादर है ।