संपादकीय : हिन्दू सरकारें मानसिकता में परिवर्तन करें !

ई सरकार का पहला संसदीय अधिवेशन २४ जून से प्रारंभ हुआ । पहले दिन से सर्व नवनिर्वाचित सांसदों का शपथ ग्रहण प्रारंभ हुआ है । उसके पश्चात सभागृहों में विविध प्रस्ताव प्रस्तुत किए जाएंगे । कुछ स्वीकार किए जाएंगे तथा कुछ अस्वीकार किए जाएंगे । कुछ में परिवर्तन सुझाए जाएंगे । उसी समय अर्थसंकल्प (बजट) भी प्रस्तुत किया जाएगा । चुनाव से पूर्व फरवरी में भाजपा सरकार ने अंतरिम अर्थसंकल्प प्रस्तुत किया था । अब पूर्ण अर्थसंकल्प प्र्रस्तुत होगा । इसपर चर्चा होगी तथा वह पारित किया जाएगा । इस अर्थसंकल्प में विविध विभागों के लिए सहस्रों करोड रुपयों का प्रावधान किया जाएगा । भारत का विकास साध्य करने के लिए निधि उपलब्ध करवाई जाएगी तथा पहले के समान मदरसों के लिए करोडों रुपयों का प्रावधान किया जाएगा; परंतु उसी समय हिन्दू धर्मरक्षा के लिए, हिन्दुओं के धार्मिक उत्थान के लिए निधि उपलब्ध नहीं होगी । गत ७५ वर्षाें से यही किया जा रहा है तथा आगे भी ऐसा ही होनेवाला है; क्योंकि भारत धर्मनिरपेक्ष देश है एवं धर्म के आधार पर किसी भी धर्म के लिए ऐसा प्रावधान नहीं किया जा सकता, ऐसा सदैव बताया जाता है । कांग्रेस जैसे पाखंडी धर्मनिरपेक्षतावादी राजनीतिक दल तो यह बलपूर्वक कहते हैं; परंतु हिन्दुत्वनिष्ठ कहलानेवाले राजनीतिक दल भी वैसा ही कहते हैं, यह उन्हें चुनकर देनेवाले हिन्दुओं के लिए कष्टदायक सिद्ध हुआ है तथा आगे भी वैसा ही होगा, इस विषय में उनके मन में मतभेद नहीं है । यही पाखंडी धर्मनिरपेक्षतावादी राजनीतिक दल जब सत्ता में होते हैं, तब उन्हें एकत्रित मत देनेवाले मुसलमानों के लिए, उनकी धर्मशिक्षा के लिए, धार्मिक कार्य के लिए सहस्रों करोड रुपयों का प्रावधान करते हैं एवं उसका अन्य राजनीतिक दल, संगठन कभी भी विरोध नहीं करते । हिन्दू संगठन एवं कोई एक दो राजनीतिक दल विरोध कर रहे हों, तब भी उसका कोई परिणाम नहीं होता । उसी प्रकार जब यही हिन्दू राजनीतिक दल सत्ता में आते हैं, तब वे भी इसी प्रकार भूतपूर्व पाखंडी धर्मनिरपेक्षतावादी राजनीतिक दलों द्वारा किया गया प्रावधान निरस्त नहीं करते, यह वास्तविकता है ।

हिन्दुओं को ठेंगा !   

बंगाल में ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस की सरकार गत ११ वर्षाें से राज्य कर रही है । यह सरकार मुसलमानों के एकत्रित मतों के कारण ही सत्ता पर आ रही है । हाल ही में हुए लोकसभा चुनाव में भी तृणमूल कांग्रेस को अधिकाधिक स्थान मिले हैं । फरवरी २०२४ में उन्होंने राज्य का अर्थसंकल्प प्रस्तुत किया था । उन्होंने अल्पसंख्यक एवं मदरसों के लिए ५ सहस्र ३४० करोड रुपयों का प्रावधान किया; परंतु  हिन्दुओं के गुरुकुलों के लिए, हिन्दू धर्म के लिए कोई भी प्रावधान नहीं किया । सामाजिक माध्यमों में इसपर आलोचना करते हुए हिन्दुओं द्वारा कहा जाता है कि ‘हिन्दुत्वनिष्ठ राजनीतिक दल हिन्दुओं के मतों पर चुनकर आते हैं तथा हिन्दुओं के लिए कुछ नहीं करते, उसकी तुलना में ममता बनर्जी मुसलमानों के प्रति ईमानदार हैं ।’ यह भेद हिन्दुओं को ध्यान में आने लगा है । हिन्दुओं में हिन्दुत्वनिष्ठ दलों के प्रति अविश्वास उत्पन्न होने लगा है, अब इसका विचार करने की आवश्यकता है । बंगाल में ममता बनर्जी की सरकार के समय जितनी हो सकती है, उतनी मुसलमानों की चापलूसी की जा रही है । इसमें बांग्लादेशी एवं रोहिंग्या मुसलमानों को सर्व प्रकार की सहायता की जा रही है । दूसरी ओर हिन्दुओं पर आक्रमण किए जा रहे हैं । हिन्दुओं के धार्मिक कार्यक्रमों पर प्रतिबंध लगाने का प्रयत्न किया जा रहा है । यह बंगाल के बाहर के हिन्दू देख रहे हैं; परंतु यह बंगाल के हिन्दुओं के ध्यान में नहीं आता, यह हिन्दुओं का बडा दुर्भाग्य है । ममता बनर्जी को रोकनेवाला कोई न होने के कारण वे हिन्दुओं को तुच्छ मानती हैं तथा मुसलमानों की सहायता कर रही हैं । ‘मदरसों के बच्चों के एक हाथ में कुरान तथा दूसरे हाथ में लैपटॉप’, ऐसा हिन्दुत्वनिष्ठ राजनीतिक दल द्वारा ममता को इंगित कर कहा गया; परंतु हिन्दुत्वनिष्ठ राजनीतिक दल द्वारा भी मदरसों के लिए सहस्रों करोड रुपए पारित किए गए । ‘हिन्दू विद्यार्थियों के एक हाथ में श्रीमद्भगवद्गीता एवं दूसरे हाथ में लैपटॉप’, ऐसा विधान कभी नहीं किया जाता । कुरान में क्या सिखाया जाता है ? एवं आगे चलकर देश एवं संसार में क्या होता है ? इसकी चर्चा कभी कोई नहीं करता । यह हिन्दुओं का ही नहीं, अपितु संसार का दुर्भाग्य है । दूसरा दुर्भाग्य है हिन्दू भी इस संबंध में सरकार पर दबाव बनाकर हिन्दुओं को धर्मशिक्षा देने की मांग नहीं करते । वैसा दबाव भी नहीं बनाते । हिन्दुओं के विनाश के लिए हिन्दुओं के ही धन का उपयोग किया जा रहा है । यह हिन्दुओं को ध्यान में नहीं आता तथा ध्यान में आने एवं विरोध करने पर भी उसका लाभ होता दिखाई नहीं देता । हिन्दुओं द्वारा हिन्दू को चुनकर दिए जाने पर भी तथा हिन्दुओं के लिए काम कर रहे हैं, ऐसा कहनेवाले भी इसकी अनदेखी करते हैं, तब हिन्दू निराश हो जाते हैं ।

हिन्दुओं को मानकर न चलें !

गत अनेक दशकों से हिन्दुओं को जागृत करने का कार्य सैकडों हिन्दुत्वनिष्ठ संगठन, धार्मिक संगठन, संत आदि के माध्यम से किया जा रहा है । राजनीतिक दल स्वार्थवश हिन्दुओं को जागृत कर मत प्राप्त कर निष्क्रिय रहते हैं, यह भी ध्यान में आ रहा है । अब हिन्दुओं को इससे आगे जाने की आवश्यकता है । ‘जो हिन्दू हित की बात करेगा, वही देश पर राज करेगा’, ऐसा पहले कहा जाता था । उसके अनुसार हिन्दू हित की बातें करनेवालों को हिन्दुओं ने सत्ता पर भी बिठाया; परंतु उन्होंने जो अपेक्षित था तथा जो हो सकता था, ऐसा हिन्दुओं का हित नहीं किया । इसलिए हिन्दुओं को अब नारा बदलकर, ‘जो हिन्दू हित का काम करेगा, वही देश पर राज करेगा’, ऐसा कहना चाहिए तथा उस दृष्टि से जो प्रयत्न कर रहा है, उसका समर्थन करना चाहिए । इस नीति के अनुसार हिन्दुओं को इन दलों एवं नेताओं की ओर देखना चाहिए । इस पद्धति से दबाव गुट बनाना चाहिए । अन्यथा हिन्दुओं के मतों पर चुनकर आनेवाले हिन्दुओं को मानकर चले हैं तथा आगे भी मानकर चलते रहेंगे; परंतु उसके कारण हिन्दुओं को कुछ नहीं मिलेगा तथा धर्मांधों एवं हिन्दुओं की जड पर आघात करनेवाले बढते जाएंगे ।

हिन्दुओं को चिंतन करना आवश्यक !

संसद में एक ओर नई सरकार का मानसून अधिवेशन प्रारंभ हुआ तथा दूसरी ओर गोवा में अखिल भारतीय हिन्दू राष्ट्र अधिवेशन भी प्रारंभ हुआ था । हिन्दुओं में जागृति कर हिन्दू राष्ट्र की स्थापना करने के लिए मंथन किया गया तथा उसमें से हिन्दू संगठन, कार्यकर्ता कार्य करने का प्रयत्न कर रहे हैं । इस मंथन में हिन्दू उक्त दृष्टि से कहां कम पड रहे हैं तथा उन्हें निश्चित रूप से क्या करना चाहिए ? इसका विचार होकर उस दृष्टि से प्रयास किए गए । उसके लिए तत्त्वनिष्ठता से विचार प्रस्तुत किए गए । वस्तुनिष्ठ चिंतन होकर आगे की दिशा निश्चित की गई ।

‘जो हिन्दूहित का काम करेगा, वही देश पर राज्य करेगा’, ऐसा हिन्दुओं को अब सभी राजनीतिक दलों को बताना आवश्यक है !