‘आध्यात्मिक मानवतावाद एवं अंतरधर्मीय सुसंवाद’ के प्रवर्तक स्वामी श्री. आनंद कृष्णा का इंडोनेशिया में स्थित सात्त्विक आश्रम तथा उनके साधक !
‘२८.११ से ६.१२.२०२३ की अवधि में सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी की कृपा से हम (मैं, सद्गुरु डॉ. चारुदत्त पिंगळेजी एवं श्री. श्रीराम लुकतुके) इंडोनेशिया के जकार्ता तथा बाली गए थे । वहां स्वामी श्री. आनंद कृष्णा ने हमारे रहने की तथा प्रमुख स्थलों के अवलोकन की व्यवस्था की । उनके इंडोनेशिया के बोगोर, जकार्ता स्थित ‘वन अर्थ योगा मेडिटेशन सेंटर’ तथा उबुद बाली के ‘आनंद आश्रम’ में निवास के समय प्रतीत सूत्र यहां दे रहे हैं –
स्वामी श्री. आनंद कृष्णा का परिचयस्वामी श्री. आनंद कृष्णा सिंधी वंश के हैं तथा इंडोनेशिया उनका जन्मस्थल है । वे इंडोनेशिया के ‘आध्यात्मिक मानवतावाद, साथ ही अंतरधर्मीय सुसंवाद’ के प्रवर्तक हैं । उन्होंने प्रचुर लेखनकार्य भी किया है । श्री. आनंद कृष्णा ने हमें जकार्ता का आश्रम दिखाया । वे अल्पाहार तथा भोजन के समय हमारे साथ बैठकर हमारे साथ प्रेमपूर्वक संवाद करते थे । |
१. श्री. आनंद कृष्णा के साधक श्री. जोहानास के द्वारा हवाई अड्डे पर उत्साह के साथ तथा विनम्रता से हमारा स्वागत किया जाना
‘स्वामी श्री. आनंद कृष्णा के साधक श्री. जोहानास जकार्ता से ढाई घंटे की यात्रा कर हमें लेने आए थे । श्री. जोहानास विगत २० वर्ष से श्री. आनंद कृष्णा के मार्गदर्शन में साधना कर रहे हैं । वे गृहस्थ जीवन व्यतीत करते हुए भी आश्रमजीवन से जुडे हुए हैं । हमारी जांच होकर हमें बाहर आने में विलंब होने के कारण उन्हें दो घंटे प्रतीक्षा करनी पडी । जब हम उनसे मिले, उस समय उन्होंने हाथ जोडकर विनम्रतापूर्वक हमारा स्वागत किया । उनके चेहरे पर थकान नहीं लग रही थी अथवा ‘मुझे इतने समय तक रुकना पडा’, ऐसा उनके मन में विचार नहीं था । उनमें उत्तम सेवाभाव प्रतीत हुआ ।
२. स्वामी श्री. आनंद कृष्णा का जकार्ता स्थित आदर्श आश्रम
२ अ. आश्रम के साधकों में ‘सतर्कता, विनम्रता, आज्ञापालन, प्रेमभाव, सेवाभाव तथा गुरु के प्रति भाव’ जैसे गुण प्रतीत होना : ‘श्री. आनंद कृष्णा के आश्रम के सभी साधकों में उत्तम साधकत्व है’, ऐसा मुझे प्रतीत हुआ । वहां के साधकों में ‘सतर्कता, विनम्रता, आज्ञापालन, प्रेमभाव, सेवाभाव तथा गुरु के प्रति भाव’ जैसे अनेक गुण हैं । ‘हमें किसी बात का अभाव न रहे तथा गुरु को अपेक्षित सेवा हो’, इसके लिए वे प्रयास कर रहे थे ।
एक बार वर्षा हो रही थी तथा हम कक्ष में थे । बाहर कैसे निकलना है, इस विचार में हम थे । उस समय एक साधक ने कक्ष के बाहर हमारे लिए छाते लाकर रखे । हमारे साथ समन्वय रखनेवाला उनका साधक, चल-दूरभाष पर श्री. श्रीराम लुकतुके को प्रत्येक बार संदेश भेजकर हमें सत्संग, भोजन आदि की जानकारी भेजता था ।
२ आ. आश्रम के साधकों के आचरण में ‘अनुशासन एवं प्रेमभाव’ का अच्छा संगम होना : वहां के साधकों के आचरण में ‘अनुशासन एवं प्रेमभाव’, इन दोनों का अच्छा संगम है । वहां के साधक आश्रम में स्वच्छता तथा व्यवस्थितता रहे, इसके लिए प्रयास करते हैं । वे अग्निहोत्र के समयों का पालन करते हैं । वे ‘आश्रम का वातावरण सात्त्विक बना रहे’, इसके लिए अच्छा आचरण करना, विन्रमता से बात करना तथा भाव रखना’ जैसे प्रयास कर रहे हैं’, ऐसा मुझे प्रतीत हुआ । वहां हमारे लिए विशेष शाकाहारी भोजन बनाया जाता था । ‘हमें अच्छा नेटवर्क उपलब्ध हो’, इस प्रकार से हमारे निवास की व्यवस्था की गई थी ।
२ इ. आश्रम के बाहर भी साधकों के आचरण में साधकत्व प्रतीत होना : हम उनके वाहन से बाहर जाते थे, उस समय उनके साधक हमारे साथ होते थे । साधकों ने हमें वहां के कुछ प्रमुख दर्शनीय स्थल दिखाए । उस समय साधक आश्रम के बाहर थे; परंतु तब भी उनमें साधकत्व अनुभव हो रहा था, उदा. समय व्यर्थ न गंवाना, हमसे संबंधित सेवाएं ध्यानपूर्वक तथा परिपूर्ण करना, ‘हमें सब ज्ञात है’, ऐसा पूर्वाग्रह रखे बिना ‘हमारे लिए सुविधाजनक कैसे होगा ?’, इसे समझकर उसके अनुसार कृति करना ।
३. भावपूर्ण स्वागत किया जाना
उसके उपरांत हम इंडोनेशिया के बाली गए । स्वामी श्री. आनंद कृष्णा के साधक २ घंटे की यात्रा कर हमें लेने वहां आए थे । हम रात को विलंब से आश्रम पहुंचे; परंतु तब भी वहां के साधकों ने हमारी आरती उतारकर हमारा स्वागत किया । उन्होंने हमारे निवास तथा भोजन का प्रबंध बहुत अच्छे ढंग से किया । बाली के आश्रम में केवल ३ पूर्णकालीन साधक रहते हैं । आश्रम के प्रति उनमें विद्यमान भाव के कारण वे आश्रम का व्यवस्थापन देखना, साथ ही आश्रम के लोगों को जो चाहिए, वह देखना जैसी सेवाएं भावपूर्ण पद्धति से करते हैं ।
४. स्वामी श्री. आनंद कृष्णा का कुटा बाली स्थित ‘वन अर्थ स्कूल’
हम श्री. आनंद कृष्णा के कुटा बाली स्थित विद्यालय ‘वन अर्थ स्कूल’ गए । यह विद्यालय बाली के आश्रम से चारपहिया वाहन से यात्रा करें, तो लगभग २ घंटे की दूरी पर स्थित है ।
४ अ. छात्रों को अच्छे संस्कार देना : विद्यालय जाने पर वहां के छात्रों ने आरती उतारकर हमारा स्वागत किया । वहां छात्रों को ‘विद्यालयीन पढाई सहित स्वरक्षा, नैतिक मूल्य संवर्धन, गुणवृद्धि, प्रकृति के प्रति प्रेम रखना, आत्मनिर्भरता तथा विनम्रता जैसे गुणों का स्वयं में अंतर्भाव करना’ सिखाया जाता है ।
४ आ. वहां के सभी शिक्षकों में विनम्रता, प्रेमभाव, दायित्व का भान तथा गुरु के प्रति भाव प्रतीत हुआ । शिक्षकों में ‘हम गुरु का कार्य कर रहे हैं’, यह भाव प्रतीत हुआ ।
४ इ. इस विद्यालय के पास ही उनका एक मंदिर है । वहां की उत्तरदायी साधिका ने हमें मंदिर के भावपूर्ण दर्शन कराए ।
५. इंडोनेशिया का वातावरण गोवा के वातावरण की भांति होना तथा ‘श्री. आनंद कृष्णा के आश्रम के साधक हमारे ही साधक परिवार के हैं’, ऐसा प्रतीत होना
इंडोनेशिया का वातावरण गोवा की भांति ही है । वहां के आम, काजू, कटहल, बिंबल जैसे फल; साथ ही कृषि, पर्वत, समुद्र तथा बीज-बीच में होनेवाली वर्षा देखकर हमें लग रहा था कि ‘हम गोवा में ही हैं ।’ हमें रामनाथी, गोवा के सनातन आश्रम का स्मरण हो रहा था । ‘श्री. आनंद कृष्णा के आश्रम के साधक हमारे ही साधक हैं तथा यह हमारा ही साधक परिवार है’, ऐसा लग रहा था । सच्चिदानंद परब्रह्म गुरुदेवजी ने हमें जो सीख दी है, उसके कारण तथा उनकी कृपा से हमें स्वयं में समष्टि की व्यापकता उत्पन्न होने का आनंद तथा कृतज्ञता लग रही थी ।
– (सद्गुरु) नीलेश सिंगबाळजी एवं (सद्गुरु) डॉ. चारुदत्त पिंगळेजी (३०.१२.२०२३)