पांडित्य दिखानेवाले केवल पुस्तक के समान होना !
सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. जयंत आठवलेजी के ओजस्वी विचार
‘पुस्तक में शाब्दिक ज्ञान होता है, वह पुस्तक स्वयं नहीं समझ पाती, उसी प्रकार पांडित्य दिखाने का जिन्हें शाब्दिक ज्ञान होता है, उन्हें उस ज्ञान की अनुभूति नहीं होती ।’
✍️ – सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. जयंत आठवले, संस्थापक संपादक, ‘सनातन प्रभातʼ नियतकालिक