महर्षि एवं ‘गुरुतत्त्व’ द्वारा परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी द्वारा संकलित सनातन के ग्रंथों को ‘वेद’ संबोधित किया जाना
१. महर्षिजी का सनातन के ग्रंथों को ‘वेद’ संबोधित करना
१ अ. महर्षिजी ने नाडीवाचन में ६ वेदों का उल्लेख : ‘महर्षिजी कहते हैं, ‘ वेदों का खरा कार्य किसी को भी ज्ञात नहीं । महर्षि व्यास वेदों का थोडासा ही भाग पृथ्वी पर लाए हैं । भले ही लोगों को लगता है कि ‘वेद ४ हैं’, तब भी वे वास्तव में ६ हैं । दो वेद अब भी भगवान के पास ही हैं । उन दो वेदों के नाम हैं ‘ॐकार वेद’ और ‘सर्ववेद’ ! ये वेद श्रीविष्णु और शिव के पास हैं ।’
(संदर्भ : नाडीवाचन क्रमांक ६५, १०.३.२०१६)
१ आ. महर्षिजी द्वारा बताया जा रहा शास्त्र अर्थात ‘सप्तर्षि वेद’ ! : महर्षि कहते हैं, ‘अब आप इस शास्त्र की ओर आए हैं, तो यह शास्त्र भी ‘सप्तर्षि वेद’ है ।’
१ इ. महर्षिजी का परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी संकलित सनातन के ग्रंथों को ‘ॐकार वेद’ संबोधित करना : आपके पास ‘ॐकार वेद’ है ।’
(संदर्भ : नाडीवाचन क्रमांक ६५, १०.३.२०१६)
– श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) अंजली गाडगीळ, ईरोड, तमिलनाडु. (११.३.२०१६, सायं. ७.२५)