ज्ञान ही भारतीय जीवन का आधार है ! – श्रीमती इंदुताई कटदरे, पुनरुत्थान विश्वविद्यालय, कर्णावती
लातूर में दो दिवसीय अखिल भारतीय विद्वान सम्मेलन आरंभ !
लातूर (महाराष्ट्र) – आज भारत देश में पश्चिमी संस्कृति के अंधानुकरण के कारण यहां का ज्ञान प्रदूषित हो गया है। वर्तमान परिस्थिति में भारत को एक ज्ञाननिष्ठ देश बनाने के लिए शास्त्रों के मूल सिद्धांतों को से सबको परिचित कराना होगा; क्योंकि ज्ञान ही भारतीय जीवन का आधार है, पुनरुत्थान विद्यापीठ, कर्णावती की कुलाधिपति श्रीमती इंदुताई काटदरे ने मार्गदर्शन करते हुए ये कहा। पुनरुत्थान विश्वविद्यालय की ओर से हरंगुल स्थित जनकल्याण विद्यालय में दो दिवसीय अखिल भारतीय विद्वान सम्मेलन का आयोजन किया गया है। उस समय वह बात कर रही थी ।
इस अवसर पर श्री. बसवराज पाटिल, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के केंद्रीय कार्यकारिणी सदस्य श्री. भैयाजी जोशी, देवगिरि प्रांत के प्रांत संघचालक श्री. अनिल भालेराव एवं सम्मेलन के संयोजक श्री. संदीप रांकावत उपस्थित थे। इस सम्मेलन में देश भर से विभिन्न बुद्धिजीवी, संत और गणमान्य व्यक्ति आये हुए हैं तथा हिन्दू जनजागृति समिति के राष्ट्रीय मार्गदर्शक सद्गुरु (डॉ.) चारुदत्त पिंगले इस सम्मेलन में उपस्थित हैं। दो दिवसीय सम्मेलन में विभिन्न विषयों पर समूह चर्चा होगी और गणमान्य व्यक्तियों का मार्गदर्शन मिलेगा।
श्रीमती इंदुताई कटदरे ने आगे कहा, “पश्चिमी लोगों ने भारतीय ज्ञान पर आक्रमण किया है। मंदिरों के साथ पुस्तकें भी नष्ट कर दी गईं। ज्ञान के क्षेत्र पर आक्रमण के कारण आज देश के विश्वविद्यालयों में जो शिक्षा दी जा रही है वह अभारतीय है। ऐसी अभारतीय शिक्षा के कारण हमारी दृष्टि अर्थव्यवस्था-केन्द्रित और कार्य-केन्द्रित हो गयी है।’
भारत में प्रत्येक विज्ञान एक दूसरे का पूरक है ! – बसवराज पाटिल
इस अवसर पर श्री. बसवराव पाटिल ने कहा, ”दूसरे देशों में शिक्षा केवल उनकी भाषा में ही दी जाती है। इसलिए भारत में भी मातृभाषा में शिक्षा दी जानी चाहिए। तभी यह बच्चों को ठीक से समझ में आ सकता है। आज लाखों युवा इंजीनियर केवल १०,००० रुपये के वेतन पर काम कर रहे हैं, जबकि एमबीए और इसी तरह की उच्च शिक्षा प्राप्त इंजीनियर केवल ५००० रुपये के वेतन पर काम कर रहे हैं। भौतिक शिक्षा में जो भी कमी हो उसे ढूंढकर दूर किया जाना चाहिए।यदि वर्तमान विद्यार्थी वेदों, पुराणों का अर्थ नहीं समझते तो कम से कम उन्हें पंचतन्त्र तो पढ़ाना ही चाहिए। मैंने पंचतंत्र की १२ हजार पुस्तकें लीं और वितरित कीं। इससे निश्चय ही उनमें कुछ संस्कार होने में सहायता होगी । मैं एक जगह एक कार्यक्रम में गया था जहां मुझे अनुभव हुआ कि हमारे पास ८०० से ज्यादा धर्मग्रंथ हैं । प्रत्येक विज्ञान एक दूसरे का पूरक है। हम जहां भी हों, उसका अध्ययन करके, उत्तम कर्म करके ईश्वर तक पहुंच सकते हैं।
क्षणचीत्र :
१. कार्यक्रम का शुभारंभ दीप प्रज्ज्वलन एवं मां सरस्वती की प्रतिमा का पूजन कर किया गया।
२. यहां की प्रत्येक वस्तु एवं कृति एक प्रकार से भारतीय संस्कृति से जुड़ी हुई थी।